भारत में गरीबी और बेरोजगारी की आर्थिक समस्याओं का विश्लेषण एवं समाधान हेतु कानूनी और नीतिगत उपायों पर विस्तृत लेख
(BA LLB अर्थशास्त्र )
🔷 प्रस्तावना:
भारत एक तेजी से विकास करता हुआ देश है, लेकिन आर्थिक विकास के साथ-साथ गरीबी (Poverty) और बेरोजगारी (Unemployment) जैसी समस्याएं अभी भी व्यापक रूप से मौजूद हैं। ये समस्याएं केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और विधिक आयाम भी रखती हैं। गरीबी और बेरोजगारी एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई समस्याएं हैं — एक ओर संसाधनों की कमी से आजीविका प्रभावित होती है, तो दूसरी ओर आजीविका के अभाव में गरीबी बढ़ती है।
BA LLB छात्रों के लिए यह विषय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सामाजिक न्याय, संविधान, कल्याणकारी राज्य और विधिक हस्तक्षेप — इन सभी का आधार इन्हीं समस्याओं का समाधान है।
🔷 भारत में गरीबी की स्थिति का विश्लेषण:
❖ गरीबी की परिभाषा:
गरीबी का अर्थ है — व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य की पूर्ति में असमर्थता।
❖ प्रकार:
- सापेक्ष गरीबी (Relative Poverty): जब व्यक्ति की आय औसत स्तर से कम हो।
- निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty): जब व्यक्ति जीवनयापन के लिए आवश्यक न्यूनतम संसाधन भी प्राप्त नहीं कर पाता।
❖ प्रमुख कारण:
- जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि
- कृषि पर अत्यधिक निर्भरता
- भूमि की असमानता
- शिक्षा की कमी
- लघु उद्योगों की गिरावट
- महिलाओं और अनुसूचित जाति/जनजाति की आर्थिक उपेक्षा
❖ गरीबी से होने वाले प्रभाव:
- कुपोषण, अशिक्षा और बाल श्रम
- सामाजिक असमानता और अपराध
- आर्थिक विकास की गति में बाधा
- लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी की कमी
🔷 भारत में बेरोजगारी की स्थिति का विश्लेषण:
❖ बेरोजगारी की परिभाषा:
जब कार्य करने के इच्छुक और सक्षम व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलता, तो वह बेरोजगारी कहलाती है।
❖ प्रकार:
- प्रकट बेरोजगारी (Open Unemployment): व्यक्ति पूरी तरह बेरोजगार होता है।
- अर्ध-बेरोजगारी (Underemployment): व्यक्ति अपनी योग्यता से कम कार्य कर रहा हो।
- छुपी बेरोजगारी (Disguised Unemployment): विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में कई लोग कार्य में लगे होते हैं, लेकिन उनकी उत्पादकता शून्य होती है।
- मौसमी बेरोजगारी (Seasonal): कृषि और निर्माण जैसे क्षेत्रों में विशेष मौसम में ही काम मिलता है।
- शैक्षिक बेरोजगारी: शिक्षित व्यक्ति को योग्यतानुसार रोजगार न मिलना।
❖ बेरोजगारी के कारण:
- जनसंख्या विस्फोट
- तकनीकी परिवर्तन
- उद्योगों का पिछड़ापन
- शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक कौशल की कमी
- सरकारी नौकरियों की सीमित संख्या
- निजी क्षेत्र में सुरक्षित रोजगार की कमी
🔷 गरीबी और बेरोजगारी के बीच संबंध:
- बेरोजगारी के कारण व्यक्ति की आय नहीं होती जिससे गरीबी बढ़ती है।
- गरीबी के कारण व्यक्ति उचित शिक्षा व प्रशिक्षण नहीं प्राप्त कर पाता, जिससे वह रोजगार पाने में असमर्थ होता है।
- दोनों ही समस्याएं सामाजिक विषमता, सामाजिक संघर्ष, और आर्थिक असंतुलन को जन्म देती हैं।
🔷 गरीबी और बेरोजगारी के समाधान हेतु कानूनी उपाय:
1. संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार — जिसमें सम्मानजनक जीवन और आजीविका शामिल है।
- अनुच्छेद 39(a): समान वेतन और आजीविका के साधनों तक समान पहुँच
- अनुच्छेद 41: बेरोजगारी, बुढ़ापे, बीमारी आदि में सार्वजनिक सहायता
- अनुच्छेद 46: अनुसूचित जातियों/जनजातियों और कमजोर वर्गों की आर्थिक उन्नति
- अनुच्छेद 43: सभी के लिए कार्य और उचित वेतन की व्यवस्था का निर्देश
2. महत्वपूर्ण अधिनियम:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित करना।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: गरीबों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना।
- शहरी बेरोजगारी योजनाएं: जैसे – PM SVANidhi (स्ट्रीट वेंडर्स को सहायता), PMEGP (स्वरोजगार को बढ़ावा), आदि।
- मनरेगा न्यायिक निर्णय: Swaraj Abhiyan v. Union of India (2016) में सुप्रीम कोर्ट ने MGNREGA के प्रभावी क्रियान्वयन पर बल दिया।
🔷 गरीबी और बेरोजगारी के समाधान हेतु नीतिगत उपाय:
1. पंचवर्षीय योजनाओं और नीति आयोग द्वारा प्रयास:
- गरीबी हटाओ (Garibi Hatao) स्लोगन से इंदिरा गांधी ने शुरुआत की।
- बाद की योजनाओं में रोजगार-उन्मुख विकास को प्राथमिकता दी गई।
- नीति आयोग ने ‘Aspirational Districts Program’ शुरू किया — पिछड़े क्षेत्रों में गरीबी कम करने हेतु।
2. कौशल विकास और शिक्षा:
- Skill India Mission के माध्यम से युवाओं को तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा।
- Startup India, Standup India, Digital India — रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करने हेतु।
3. लघु, कुटीर और मध्यम उद्योगों को बढ़ावा:
- MSME सेक्टर को ऋण, सब्सिडी और बाज़ार उपलब्ध कराकर रोजगार सृजन।
4. स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाएं:
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): गरीबों को 5 लाख रुपये तक मुफ्त स्वास्थ्य बीमा।
- ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों का पंजीकरण और कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ना।
🔷 न्यायिक दृष्टिकोण:
- Olga Tellis v. Bombay Municipal Corporation (AIR 1986 SC 180):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “रोजगार का अधिकार” जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का अभिन्न हिस्सा है। - PUCL v. Union of India (Right to Food Case):
अदालत ने कहा कि भोजन का अधिकार, गरीबी उन्मूलन का मूल आधार है और इसे कार्यान्वयन के स्तर पर सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है।
🔷 चुनौतियाँ एवं भविष्य की राह:
❖ चुनौतियाँ:
- योजनाओं का भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन
- लक्ष्यित लाभार्थियों तक योजना का न पहुँच पाना
- सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षणों में पारदर्शिता की कमी
- शहरी गरीबों के लिए प्रभावी योजना की कमी
- बढ़ती जनसंख्या और स्वचालन (Automation)
❖ सुधार की संभावनाएँ:
- Direct Benefit Transfer (DBT) के माध्यम से पारदर्शिता
- सामाजिक सुरक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता
- शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना
- निजी क्षेत्र को रोजगार सृजन के लिए प्रेरित करना
- कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु न्यायिक निगरानी
🔷 निष्कर्ष:
गरीबी और बेरोजगारी भारत की आर्थिक प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। ये समस्याएं न केवल आर्थिक असमानता को जन्म देती हैं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों — समानता, गरिमा, और सामाजिक न्याय — की पूर्ति में भी अवरोध उत्पन्न करती हैं।
सरकार ने विभिन्न कानूनी प्रावधानों, कल्याणकारी योजनाओं, और नीतिगत पहल के माध्यम से इन समस्याओं के समाधान का प्रयास किया है, परंतु अब आवश्यकता है प्रभावी कार्यान्वयन, पारदर्शिता और जवाबदेही की।
BA LLB छात्रों के लिए यह आवश्यक है कि वे इन आर्थिक समस्याओं को विधिक और नीतिगत संदर्भों में गहराई से समझें, ताकि वे आने वाले समय में विधि और समाज के बीच सेतु बन सकें।