सार्वजनिक वित्त (Public Finance) की परिभाषा एवं यह सरकार की भूमिका, बजट और कराधान नीति को कैसे प्रभावित करता है – एक विस्तृत लेख (BA LLB अर्थशास्त्र )

सार्वजनिक वित्त (Public Finance) की परिभाषा एवं यह सरकार की भूमिका, बजट और कराधान नीति को कैसे प्रभावित करता है – एक विस्तृत लेख (BA LLB अर्थशास्त्र )


🔷 प्रस्तावना:

आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सरकार केवल विधि निर्माण एवं शासन ही नहीं करती, बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में भी सक्रिय भूमिका निभाती है। इस भूमिका को प्रभावी रूप से निभाने के लिए सरकार को संसाधनों की आवश्यकता होती है, और इन संसाधनों का नियोजन, संग्रह एवं व्यय ही सार्वजनिक वित्त (Public Finance) का मूल विषय है।

Public Finance को BA LLB के छात्रों के लिए समझना इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह कराधान नीति, सार्वजनिक व्यय, बजट निर्माण और आर्थिक न्याय जैसे विधिक विषयों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है।


🔷 सार्वजनिक वित्त की परिभाषा (Definition of Public Finance):

सार्वजनिक वित्त वह आर्थिक शाखा है जो सरकार की आय, व्यय, ऋण और बजट से संबंधित सभी नीतियों और प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री Dalton के अनुसार:
“Public Finance is concerned with the income and expenditure of public authorities and the adjustment of one with the other.”

अर्थात, सार्वजनिक वित्त सरकारी निकायों की आय और व्यय से संबंधित है और इन दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया से जुड़ा है।


🔷 सार्वजनिक वित्त के प्रमुख घटक (Main Components of Public Finance):

  1. सरकारी आय (Public Revenue):
    इसमें कर (Tax), शुल्क (Fee), जुर्माना (Penalty), लाभांश (Dividend) और अन्य स्रोतों से प्राप्त राजस्व शामिल होते हैं।
  2. सरकारी व्यय (Public Expenditure):
    सामाजिक कल्याण, रक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, अधोसंरचना, पेंशन आदि पर होने वाला खर्च।
  3. सरकारी ऋण (Public Debt):
    जब सरकार की आय उसके खर्च को पूरा नहीं कर पाती तो वह आंतरिक या बाह्य स्रोतों से ऋण लेती है।
  4. सरकारी बजट (Public Budget):
    आय और व्यय का वार्षिक लेखा-जोखा और भविष्य की योजना।
  5. वित्तीय प्रशासन (Financial Administration):
    सरकारी वित्त की योजना, संग्रह, लेखा परीक्षा और नियंत्रण से संबंधित प्रक्रियाएँ।

🔷 सार्वजनिक वित्त में सरकार की भूमिका (Role of Government in Public Finance):

  1. आय संग्रहण (Revenue Generation):
    सरकार विभिन्न प्रकार के करों के माध्यम से राजस्व एकत्र करती है। यह संग्रहण आर्थिक असमानता को कम करने और पुनर्वितरण में सहायक होता है।
  2. सामाजिक कल्याण (Social Welfare):
    शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीब कल्याण योजनाओं में व्यय कर सरकार नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने में भूमिका निभाती है।
  3. आर्थिक स्थायित्व (Economic Stability):
    सरकार सार्वजनिक व्यय और राजकोषीय नीतियों के माध्यम से महंगाई, मंदी, बेरोजगारी जैसी समस्याओं को नियंत्रित करती है।
  4. संसाधनों का आवंटन (Resource Allocation):
    उत्पादन और वितरण में असमानता को दूर करने के लिए सरकार संसाधनों को प्राथमिकताओं के अनुसार आवंटित करती है।
  5. विकास को गति देना:
    पूंजी निर्माण, अधोसंरचना विकास एवं औद्योगिकीकरण में निवेश कर सरकार आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।

🔷 सार्वजनिक वित्त और बजट (Public Finance and Budget):

बजट सरकार का वह औपचारिक दस्तावेज होता है जिसमें आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अनुमानित आय और व्यय को दर्शाया जाता है।

बजट के प्रकार:

  • राजस्व बजट (Revenue Budget): सरकार की नियमित आय और खर्च।
  • पूंजीगत बजट (Capital Budget): दीर्घकालिक निवेश और पूंजीगत परियोजनाएँ।
  • संतुलित बजट (Balanced Budget): जब आय और व्यय बराबर हों।
  • घाटे का बजट (Deficit Budget): जब व्यय अधिक हो और आय कम।

बजट के माध्यम से सरकार:

  • प्राथमिकताओं को तय करती है,
  • कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करती है,
  • कर नीति में बदलाव करती है,
  • घाटे या अधिशेष को दर्शाती है।

विधिक पहलू:

  • अनुच्छेद 112 से 117 (भारतीय संविधान): केंद्र सरकार के बजट, अनुदान प्रस्ताव, और वित्त विधेयकों की प्रक्रिया को विनियमित करते हैं।
  • CAG (Comptroller and Auditor General): व्यय की वैधता की निगरानी करता है।

🔷 सार्वजनिक वित्त और कराधान नीति (Taxation Policy):

कराधान नीति सार्वजनिक वित्त की रीढ़ है। सरकार करों के माध्यम से न केवल राजस्व अर्जित करती है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों को भी साधती है।

कर के प्रकार:

  • प्रत्यक्ष कर (Direct Tax): जैसे – आयकर, निगम कर
  • अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax): जैसे – वस्तु एवं सेवा कर (GST), उत्पाद शुल्क

कर नीति के उद्देश्य:

  • आय का पुनर्वितरण (Redistribution of Income)
  • आर्थिक असमानता को कम करना
  • विकासोन्मुख व्यय के लिए संसाधन जुटाना
  • उत्पादन और खपत को प्रभावित करना

विधिक आयाम:

  • आयकर अधिनियम, 1961
  • GST अधिनियम, 2017
  • कर न्यायाधिकरण एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा कर व्याख्या और विवादों का समाधान

🔷 सार्वजनिक वित्त का विधिक महत्व (Legal Significance of Public Finance):

  • संवैधानिक प्रावधान: भारत का संविधान केंद्र और राज्यों को कर लगाने के अधिकार देता है (अनुच्छेद 265, सातवीं अनुसूची)।
  • न्यायिक नियंत्रण: न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि सरकार कर और व्यय संविधान के अनुसार करे।
  • लोक लेखा समिति (PAC): संसद में सरकारी व्यय की समीक्षा करती है।
  • RTI & पारदर्शिता: सार्वजनिक वित्त को पारदर्शी बनाने हेतु नागरिकों को सूचना का अधिकार है।

🔷 निष्कर्ष:

सार्वजनिक वित्त न केवल सरकार की आय-व्यय की प्रक्रिया है, बल्कि यह एक संवैधानिक, विधिक और आर्थिक यंत्रणा भी है जो शासन के हर पहलू को प्रभावित करती है। बजट निर्माण, कराधान नीति, सामाजिक कल्याण, आर्थिक विकास और न्यायिक नियंत्रण – ये सभी घटक सार्वजनिक वित्त से अभिन्न रूप से जुड़े हैं।

BA LLB के छात्रों के लिए यह समझना अनिवार्य है कि सार्वजनिक वित्त न केवल अर्थशास्त्र की अवधारणा है, बल्कि यह विधिक ढांचे की भी मूल आत्मा है जो वित्तीय उत्तरदायित्व, संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करती है।