सोशल मीडिया और निजता का अधिकारः एक कानूनी विश्लेषण (Social Media and the Right to Privacy: A Legal Analysis)

सोशल मीडिया और निजता का अधिकारः एक कानूनी विश्लेषण
(Social Media and the Right to Privacy: A Legal Analysis)


प्रस्तावना

21वीं सदी की सबसे क्रांतिकारी उपलब्धियों में सोशल मीडिया का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्लेटफॉर्म न केवल संवाद और सूचना के आदान-प्रदान का माध्यम बना है, बल्कि यह व्यक्तियों की पहचान, विचार और सामाजिक जीवन का हिस्सा भी बन चुका है। किंतु सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग ने निजता (Privacy) के अधिकार को एक चुनौतीपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया है। आधुनिक डिजिटल युग में, जहां हर क्लिक, पोस्ट और शेयर के माध्यम से जानकारी का विशाल भंडार इंटरनेट पर फैला हुआ है, वहीं व्यक्ति की निजता पर संकट भी गहराता जा रहा है।


निजता का अधिकार: संवैधानिक परिप्रेक्ष्य

भारत में “निजता का अधिकार” (Right to Privacy) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न अंग माना गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) के ऐतिहासिक निर्णय में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। यह निर्णय डिजिटल निजता को भी शामिल करता है – जिसमें व्यक्तिगत डेटा, संचार, खोज इतिहास, लोकेशन आदि शामिल हैं।


सोशल मीडिया का प्रभाव और निजता पर संकट

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे Facebook, Instagram, X (पूर्व में Twitter), WhatsApp, YouTube, Snapchat आदि ने व्यक्ति की सोच, भावनाओं, रहन-सहन और संबंधों को सार्वजनिक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसके मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  1. डिजिटल प्रोफाइलिंग
    सोशल मीडिया पर पोस्ट, तस्वीरें, वीडियो और टिप्पणियाँ व्यक्तियों के डिजिटल व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं, जिससे कंपनियां और सरकारें उपयोगकर्ता की आदतों और व्यवहार का विश्लेषण कर सकती हैं।
  2. डेटा लीक और गलत उपयोग
    कई मामलों में सोशल मीडिया कंपनियों पर उपयोगकर्ता डेटा को तीसरे पक्ष को बेचने या लीक करने के आरोप लगे हैं।
    जैसे – Cambridge Analytica कांड में फेसबुक से करोड़ों उपयोगकर्ताओं का डाटा बिना अनुमति के राजनीतिक विश्लेषण के लिए उपयोग किया गया।
  3. सरकारी निगरानी और सेंसरशिप
    सरकारें भी सोशल मीडिया निगरानी के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करती हैं, जो कभी-कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता दोनों का उल्लंघन कर सकती हैं।
  4. फेस रिकग्निशन और ट्रैकिंग
    सोशल मीडिया पर डाले गए फोटो व वीडियो का प्रयोग पहचान प्रणाली के लिए किया जाता है। जिससे व्यक्ति की लोकेशन, गतिविधि और नेटवर्क को ट्रैक किया जा सकता है।

सोशल मीडिया पर निजता हनन के प्रमुख उदाहरण

  • Deepfake Technology: किसी की आवाज़ और चेहरे का उपयोग कर नकली वीडियो बनाना, जो बिना अनुमति के निजी छवि को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • Cyberstalking और Doxxing: सोशल मीडिया पर लोगों की जानकारी निकालकर उन्हें डराना या बदनाम करना।
  • Trolling और Public Shaming: किसी की पुरानी पोस्ट या निजी जीवन की जानकारी का मज़ाक उड़ाना या उसे सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करना।

भारतीय कानूनों की भूमिका

भारत में निजता की रक्षा के लिए विभिन्न कानून अस्तित्व में हैं, किंतु सोशल मीडिया के संदर्भ में ये सीमित या अधूरी भूमिका निभा रहे हैं।

1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act)

  • धारा 66E: निजी छवि के उल्लंघन पर सजा।
  • धारा 43A: कंपनियों द्वारा व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा में चूक होने पर दंड।
  • धारा 69A: सरकार को सोशल मीडिया सामग्री को ब्लॉक करने की शक्ति।

2. भारतीय दंड संहिता (IPC)

  • धारा 354D: पीछा करना (stalking)
  • धारा 499-500: मानहानि (Defamation)
  • धारा 509: किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली हरकतें

3. व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक (Digital Personal Data Protection Act, 2023)

  • यह नया कानून डाटा संग्रहण, उपयोग और संरक्षण से संबंधित है।
  • इसमें सोशल मीडिया कंपनियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वे डाटा के संचालन में पारदर्शिता रखें और उपयोगकर्ता की सहमति अनिवार्य हो।

न्यायिक दृष्टिकोण

  • PUCL बनाम भारत संघ (1997): टेलीफोन टैपिंग को निजता का उल्लंघन माना गया।
  • श्रेया सिंगल बनाम भारत संघ (2015): इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए धारा 66A को असंवैधानिक करार दिया गया।
  • पुट्टस्वामी केस (2017): निजता को मौलिक अधिकार घोषित कर सरकार और निजी संस्थानों की शक्तियों को सीमित किया गया।

अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण

  • यूरोपीय संघ का GDPR (General Data Protection Regulation) – विश्व का सबसे सख्त डेटा संरक्षण कानून।
  • अमेरिका में Fourth Amendment – निजता की रक्षा करता है, परंतु सोशल मीडिया को लेकर स्पष्टता नहीं है।
  • UNHRC की रिपोर्ट (2021) में डिजिटल स्पेस में निजता की रक्षा को मानवाधिकार माना गया।

नियमन की आवश्यकता और चुनौतियाँ

  1. स्पष्ट और कड़े सोशल मीडिया कानून
    सोशल मीडिया कंपनियों को जिम्मेदार ठहराना आवश्यक है ताकि वे डेटा सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करें।
  2. न्यायालयीन निगरानी और प्रभावी तंत्र
    एक स्वतंत्र नियामक संस्था की आवश्यकता है जो सोशल मीडिया गतिविधियों की निगरानी करे।
  3. जन-जागरूकता और डिजिटल साक्षरता
    उपयोगकर्ताओं को यह जानना आवश्यक है कि उनके द्वारा साझा की गई जानकारी का कैसे दुरुपयोग हो सकता है।
  4. टेक्नोलॉजी बनाम स्वतंत्रता का संतुलन
    डेटा निगरानी और सुरक्षा के नाम पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन न हो, इसका विशेष ध्यान रखना होगा।

निष्कर्ष

सोशल मीडिया और निजता का संबंध आधुनिक डिजिटल युग की सबसे जटिल कानूनी चुनौतियों में से एक है। जहां एक ओर सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का माध्यम है, वहीं दूसरी ओर यह निजता के हनन का भी स्रोत बनता जा रहा है।
इसलिए आवश्यकता है एक संवेदनशील, संतुलित और सशक्त कानूनी ढांचे की, जो न केवल सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को जवाबदेह बनाए बल्कि नागरिकों की निजता, स्वतंत्रता और गरिमा की प्रभावी रक्षा भी सुनिश्चित करे। आने वाले वर्षों में भारत के कानून और न्याय व्यवस्था की सबसे बड़ी कसौटी यही होगी कि वे डिजिटल युग में व्यक्ति की निजता को किस हद तक सुरक्षित रख पाते हैं।