156(3) CrPC के तहत FIR की मांग से पूर्व 154(1) और 154(3) CrPC के उपायों का उपयोग अनिवार्य – सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
मामला:
Ranjit Singh Bath & Anr बनाम Union Territory Chandigarh & Anr
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 156(3) के तहत मजिस्ट्रेट से प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराने और संज्ञेय अपराध की जांच के लिए निर्देश मांगने से पहले, शिकायतकर्ता को पहले धारा 154(1) और 154(3) के अंतर्गत उपलब्ध उपायों का उपयोग करना अनिवार्य है। यह निर्णय भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की प्रक्रिया संबंधी व्यवस्था को मजबूत करता है और न्यायिक प्रक्रिया के चरणबद्ध अनुपालन को सुनिश्चित करता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
मामले में याचिकाकर्ता Ranjit Singh Bath और अन्य ने मजिस्ट्रेट से धारा 156(3) CrPC के तहत निर्देश देने की मांग की थी, जिससे संबंधित पुलिस थाना प्राथमिकी दर्ज कर जांच आरंभ कर सके। परंतु मजिस्ट्रेट द्वारा यह आदेश देने से पूर्व उच्चतम न्यायालय ने जांच की कि क्या याचिकाकर्ता ने CrPC की धारा 154(1) और 154(3) के तहत पहले से उपलब्ध वैधानिक उपायों का प्रयोग किया था।
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:
- धारा 154(1): यह प्रावधान किसी व्यक्ति को संज्ञेय अपराध के संबंध में पुलिस अधिकारी को शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देता है। यदि अधिकारी प्राथमिकी दर्ज करने से मना करता है, तो व्यक्ति वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष भी जा सकता है।
- धारा 154(3): यदि पुलिस प्राथमिकी दर्ज नहीं करती है, तो शिकायतकर्ता वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (जैसे पुलिस अधीक्षक) के पास लिखित रूप में शिकायत कर सकता है।
- धारा 156(3): यह धारा मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह पुलिस को जांच का निर्देश दे सके, लेकिन यह तब तक नहीं किया जा सकता जब तक शिकायतकर्ता उपयुक्त पूर्व उपायों (154(1) और 154(3)) का प्रयोग नहीं करता।
न्यायालय का निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता को पहले पुलिस अधिकारी और फिर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष शिकायत करनी चाहिए थी, जैसा कि CrPC की धारा 154(1) और 154(3) में प्रावधानित है। केवल इन दोनों उपायों के निष्फल रहने पर ही मजिस्ट्रेट से धारा 156(3) CrPC के अंतर्गत अनुरोध किया जा सकता है।
निर्णय का महत्व:
यह निर्णय न केवल CrPC की प्रक्रिया के अनुपालन की आवश्यकता को दोहराता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यायालय में केवल वही मामले पहुंचें, जिनके अन्य वैधानिक उपाय पहले निष्फल हो चुके हैं। यह पुलिस तंत्र के कार्यात्मक संतुलन को बनाए रखने और न्यायालयों पर अनावश्यक भार को कम करने के लिए एक अहम कदम है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय आपराधिक शिकायतों की प्रक्रिया को स्पष्ट और अनुशासित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह स्पष्ट करता है कि शिकायतकर्ताओं को CrPC में निर्धारित अनुक्रमणिका का पालन करते हुए ही मजिस्ट्रेट के समक्ष जाना चाहिए। इससे विधिक प्रक्रिया का सम्मान बना रहता है और अनावश्यक न्यायिक हस्तक्षेप से बचा जा सकता है।