मुस्लिम विधि में तलाक (Divorce) के प्रकार एवं तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
1. परिचय
मुस्लिम विवाह (निकाह) एक धार्मिक–कानूनी अनुबंध है, जो पति-पत्नी के बीच वैध सहजीवन स्थापित करता है। यद्यपि इस्लाम में विवाह को स्थायी और पवित्र माना गया है, किन्तु पति-पत्नी के बीच आपसी मतभेद, असहयोग या असहनीय परिस्थिति होने पर तलाक (Divorce) को अंतिम उपाय के रूप में मान्यता दी गई है।
कुरआन में तलाक को नापसंद किया गया है, परंतु इसे समाज में अन्याय और अत्याचार से बचाने हेतु एक वैधानिक विकल्प माना गया है।
2. तलाक की परिभाषा
परिभाषा – “तलाक एक ऐसा वैधानिक माध्यम है, जिसके द्वारा पति अपने विवाहित संबंध को समाप्त करता है, और जिसके बाद पति-पत्नी के बीच वैवाहिक अधिकार और कर्तव्य समाप्त हो जाते हैं।”
स्रोत – तलाक के प्रावधान मुख्य रूप से कुरआन, हदीस, इज्मा और फ़िक़्ह में मिलते हैं।
3. मुस्लिम तलाक के प्रमुख प्रकार
मुस्लिम विधि में तलाक को पति द्वारा आरंभित तलाक और आपसी सहमति या न्यायालय द्वारा प्रदान तलाक के रूप में विभाजित किया जाता है।
(A) पति द्वारा आरंभित तलाक
1. तलाक-ए-सुन्नत (Talaq-ul-Sunnat)
- अर्थ – यह तलाक का वह रूप है, जो पैगंबर मुहम्मद के बताए गए नियमों के अनुसार दिया जाता है।
- प्रकार:
- अहसन (Ahsan)
- एक बार “तलाक” उच्चारण, पत्नी की इद्दत अवधि (3 मासिक चक्र) में पुनर्मिलन का अवसर।
- सबसे अच्छा और मान्य तरीका माना जाता है।
- हसन (Hasan)
- लगातार तीन मासिक चक्रों में “तलाक” का उच्चारण।
- तीसरे उच्चारण के बाद विवाह स्थायी रूप से समाप्त हो जाता है।
- अहसन (Ahsan)
2. तलाक-ए-बिद्दत (Talaq-ul-Biddat / Instant Triple Talaq)
- अर्थ – यह तलाक का वह रूप है, जिसमें पति एक ही बैठक में तीन बार “तलाक” बोलकर विवाह समाप्त कर देता है।
- विशेषताएँ:
- तत्काल प्रभाव से वैवाहिक संबंध समाप्त।
- कुरआन और हदीस में इसका स्पष्ट समर्थन नहीं; इसे उमय्यद काल में प्रचलन मिला।
- भारतीय न्यायालयों ने इसे “गैर-इस्लामी” और “अमान्य” घोषित किया है।
3. इलाह (Ila)
- अर्थ – जब पति शपथपूर्वक चार महीने तक पत्नी के साथ सहवास न करने की प्रतिज्ञा करता है।
- परिणाम – चार महीने बाद स्वतः तलाक हो जाता है, यदि प्रतिज्ञा वापस न ली जाए।
4. लिआन (Lian)
- अर्थ – यदि पति पत्नी पर व्यभिचार का झूठा आरोप लगाए और इसे साबित न कर सके, तो पत्नी लिआन का दावा कर सकती है।
- प्रक्रिया – पति-पत्नी न्यायालय के समक्ष एक-दूसरे पर चार बार शपथ लेते हैं।
- परिणाम – न्यायालय विवाह समाप्त कर सकता है।
(B) आपसी सहमति से तलाक
1. खुला (Khula)
- अर्थ – पत्नी द्वारा विवाह समाप्त करने की पहल, जिसमें वह मेहर या अन्य प्रतिफल वापस करके पति से तलाक लेती है।
- आधार – कुरआन और हदीस में मान्यता प्राप्त।
- विशेषता – यह पति की सहमति से होता है, परन्तु न्यायालय के हस्तक्षेप से भी प्रदान किया जा सकता है।
2. मुबारत (Mubarat)
- अर्थ – पति-पत्नी दोनों की आपसी सहमति से विवाह समाप्त करना।
- विशेषता – दोनों पक्ष विवाह समाप्त करने के लिए इच्छुक होते हैं।
- प्रक्रिया – समझौता होने पर तुरंत वैवाहिक संबंध समाप्त हो जाता है।
(C) न्यायालय द्वारा तलाक
- डिज़ॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 के तहत पत्नी को न्यायालय से तलाक लेने के आधार:
- पति का 4 वर्ष से अधिक अनुपस्थित रहना।
- पति का 2 वर्ष से अधिक कारावास।
- पति द्वारा भरण-पोषण न देना।
- पति की क्रूरता।
- पति का मानसिक/शारीरिक रोग।
4. तीन तलाक (Triple Talaq) पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
(A) पृष्ठभूमि
- भारत में तलाक-ए-बिद्दत (Instant Triple Talaq) लंबे समय से विवादित था।
- यह प्रथा पति को तत्काल और अपरिवर्तनीय तलाक का अधिकार देती थी, जिससे महिलाओं के अधिकारों का हनन होता था।
- शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2017) मामला इस प्रथा को चुनौती देने का प्रमुख कारण बना।
(B) शायरा बानो मामला – तथ्य
- याचिकाकर्ता शायरा बानो को उनके पति ने एक ही बैठक में तीन बार “तलाक” कहकर विवाह से अलग कर दिया।
- उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव निषेध), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया।
(C) सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- पाँच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ (न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर, कुरियन जोसेफ, आर.एफ. नरीमन, यू.यू. ललित और अब्दुल नज़ीर) ने 3:2 बहुमत से निर्णय दिया।
- निर्णय का सार:
- तलाक-ए-बिद्दत इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है।
- यह महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- इसे “शून्य (Void) और असंवैधानिक” घोषित किया गया।
(D) विधायी कार्रवाई
- मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 पारित किया गया।
- मुख्य प्रावधान:
- किसी भी रूप में तीन तलाक (मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक) अवैध और शून्य।
- ऐसा करने वाले पति को 3 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।
- पत्नी और बच्चों के लिए भरण-पोषण की व्यवस्था।
- पत्नी को बच्चों की अभिरक्षा (Custody) का अधिकार।
5. तलाक प्रथा पर समकालीन दृष्टिकोण
- इस्लामी विद्वानों और न्यायालयों का मानना है कि तलाक का उद्देश्य सुधार और सामंजस्य होना चाहिए, न कि तात्कालिक विघटन।
- कुरआन तलाक से पहले सुलह, मध्यस्थता और धैर्य की सलाह देता है।
- आधुनिक विधि में महिला अधिकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है।
6. निष्कर्ष
मुस्लिम विधि में तलाक को वैवाहिक विवाद का अंतिम उपाय माना गया है। तलाक-ए-सुन्नत जैसे तरीके इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप और न्यायपूर्ण हैं, जबकि तलाक-ए-बिद्दत जैसी प्रथाएँ कुरआन की भावना और न्याय के सिद्धांतों के विपरीत पाई गई हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का शायरा बानो निर्णय और 2019 का अधिनियम महिलाओं के अधिकारों और गरिमा की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इससे स्पष्ट होता है कि मुस्लिम तलाक प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया धार्मिक मूल्यों, मानवाधिकारों और संवैधानिक सिद्धांतों के संतुलन के साथ आगे बढ़ रही है।