भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 378 के अंतर्गत ‘चोरी’ (Theft) – आवश्यक तत्व, लूट (Robbery) एवं डकैती (Dacoity) में अंतर और न्यायिक दृष्टिकोण

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 378 के अंतर्गत ‘चोरी’ (Theft) – आवश्यक तत्व, लूट (Robbery) एवं डकैती (Dacoity) में अंतर और न्यायिक दृष्टिकोण


1. प्रस्तावना

चोरी (Theft) संपत्ति संबंधी अपराधों में सबसे सामान्य है, जो व्यक्ति की संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन करता है। भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 378 में चोरी की परिभाषा और आवश्यक तत्व दिए गए हैं, जबकि धारा 379 से 382 में इसकी सजा और विशेष परिस्थितियाँ बताई गई हैं। इसके अतिरिक्त, लूट (Robbery – धारा 390) और डकैती (Dacoity – धारा 391) चोरी के उग्र और हिंसक रूप हैं।


2. धारा 378 IPC के अंतर्गत चोरी की परिभाषा

धारा 378 के अनुसार –

“जब कोई व्यक्ति, किसी चल संपत्ति को, किसी अन्य व्यक्ति के कब्जे से, उस व्यक्ति की अनुमति के बिना, और इस आशय से कि वह संपत्ति को बेईमानी से अपने या किसी अन्य के अधिकार में ले जाएगा, तो वह चोरी करता है।”

स्पष्टीकरण:

  • केवल चल संपत्ति (Movable Property) पर लागू।
  • संपत्ति कब्जे (Possession) से हटाई जाए, स्वामित्व से नहीं।
  • बेईमानी का आशय (Dishonest Intention) आवश्यक है।

3. चोरी के आवश्यक तत्व

  1. चल संपत्ति होना
    चोरी केवल चल संपत्ति (जैसे सोना, नकद, आभूषण, वाहन, दस्तावेज़) पर होती है। भूमि या स्थावर संपत्ति पर नहीं।

    • Case: R v. Bussy – स्थावर संपत्ति चोरी के दायरे में नहीं आती।
  2. किसी अन्य के कब्जे में होना
    स्वामित्व नहीं, बल्कि कब्जा मायने रखता है।

    • Case: Pyare Lal Bhargava v. State of Rajasthan, AIR 1963 SC 1094 – सरकारी फ़ाइल को बिना अनुमति कार्यालय से घर ले जाना चोरी माना गया।
  3. कब्जे से हटाना (Moving the property)
    संपत्ति का कोई भी आंशिक या पूर्ण स्थानांतरण ‘कब्जे से हटाना’ माना जाएगा।
  4. बिना सहमति के
    मालिक या वैध कब्जेदार की अनुमति के बिना संपत्ति लेना आवश्यक है।
  5. बेईमानी का आशय
    संपत्ति को इस उद्देश्य से लेना कि उसे स्थायी रूप से मालिक से वंचित किया जाए।

    • Case: Velji Raghavji Patel v. State of Maharashtra, AIR 1965 SC 1433 – बेईमानी का आशय अपराध की आत्मा है।

4. चोरी की सजा (धारा 379 IPC)

  • अधिकतम 3 वर्ष का कारावास, या जुर्माना, या दोनों।
  • विशेष परिस्थितियों (धारा 380, 381, 382) में सजा बढ़ सकती है।

5. लूट (Robbery) – धारा 390 IPC

परिभाषा:
लूट, चोरी या जबरन वसूली (Extortion) का उग्र रूप है, जिसमें—

  1. चोरी के समय या तुरंत बाद, अपराधी व्यक्ति को मृत्यु, चोट या गलत तरीके से बंधन में डालने का भय दिखाए; या
  2. जबरन वसूली के समय, तुरंत संपत्ति सौंपने हेतु व्यक्ति को ऐसी आशंका हो।

मुख्य तत्व:

  • संपत्ति लेना + बल या भय का प्रयोग।
  • अपराध की तात्कालिकता (Immediate use of force)।

सजा (धारा 392) – न्यूनतम 7 वर्ष का कठोर कारावास और जुर्माना।


6. डकैती (Dacoity) – धारा 391 IPC

परिभाषा:
जब पांच या अधिक व्यक्ति, किसी चोरी या लूट को अंजाम देने के लिए, या प्रयास करने के लिए, एक साथ हों, तो वह डकैती कहलाती है।

मुख्य तत्व:

  • 5 या अधिक व्यक्तियों का होना।
  • सभी की सामूहिक मंशा (Common intention)।
  • चोरी/लूट का प्रयास या अपराध।

सजा (धारा 395) – आजीवन कारावास या न्यूनतम 10 वर्ष का कठोर कारावास और जुर्माना।


7. चोरी, लूट और डकैती में अंतर

आधार चोरी (Theft) लूट (Robbery) डकैती (Dacoity)
परिभाषा किसी चल संपत्ति का बेईमानी से बिना सहमति कब्जे से हटाना। चोरी या जबरन वसूली + बल/भय का प्रयोग। चोरी/लूट में 5 या अधिक व्यक्ति शामिल।
बल का प्रयोग आवश्यक नहीं। आवश्यक। आवश्यक, यदि लूट शामिल हो।
व्यक्तियों की संख्या एक या अधिक। एक या अधिक। 5 या अधिक।
सजा अधिकतम 3 वर्ष। न्यूनतम 7 वर्ष। न्यूनतम 10 वर्ष या आजीवन।
गंभीरता कम। अधिक। अत्यधिक।

8. न्यायिक दृष्टांत

  1. Pyare Lal Bhargava v. State of Rajasthan (1963) – सरकारी फ़ाइल को बिना अनुमति घर ले जाना चोरी है, भले ही बाद में लौटा दी जाए।
  2. K.N. Mehra v. State of Rajasthan, AIR 1957 SC 369 – हवाई जहाज़ को अनुमति बिना उड़ाना चोरी है।
  3. Shyam Behari v. State of U.P., AIR 1957 SC 320 – डकैती के दौरान हत्या पर मृत्युदंड की पुष्टि।
  4. Ashfaq v. State (Govt. of NCT of Delhi), (2004) 3 SCC 116 – बल के प्रयोग के साथ चोरी, लूट मानी जाएगी।

9. तुलनात्मक विश्लेषण

  • चोरी में बल या हिंसा का प्रयोग नहीं होता, जबकि लूट में यह आवश्यक है।
  • डकैती सामूहिक अपराध है और समाज के लिए सबसे अधिक खतरा पैदा करती है।
  • IPC में इन अपराधों की गंभीरता के अनुसार दंड निर्धारित है।
  • न्यायालय बेईमानी के आशय और परिस्थितियों पर विशेष ध्यान देते हैं।

10. निष्कर्ष

धारा 378 IPC में चोरी का प्रावधान व्यक्ति की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जबकि लूट और डकैती इससे अधिक गंभीर और हिंसक अपराध हैं। न्यायालयों ने लगातार यह स्पष्ट किया है कि किसी भी संपत्ति-संबंधी अपराध में बेईमानी का आशय, सहमति का अभाव और कब्जे से हटाना प्रमुख तत्व हैं। सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से, इन अपराधों के लिए कठोर दंड और त्वरित न्यायिक प्रक्रिया आवश्यक है ताकि अपराध की प्रवृत्ति को रोका जा सके।