भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत ‘बलात्कार’ (Rape): परिभाषा, आवश्यक तत्व एवं दंड – नवीनतम संशोधन एवं न्यायिक दृष्टिकोण
1. प्रस्तावना
बलात्कार (Rape) एक गंभीर यौन अपराध है जो किसी महिला की गरिमा, स्वतंत्रता और शारीरिक स्वायत्तता पर सीधा आघात करता है। यह न केवल व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज के नैतिक ताने-बाने को भी चोट पहुँचाता है। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 375 से 376 तक इस अपराध की परिभाषा, आवश्यक तत्व और दंड का प्रावधान है। समय-समय पर विधायिका ने सामाजिक आवश्यकताओं और न्यायिक व्याख्याओं के अनुरूप इसमें संशोधन किए हैं, विशेषकर Criminal Law (Amendment) Act, 2013 और Criminal Law (Amendment) Act, 2018 के माध्यम से।
2. बलात्कार की परिभाषा (धारा 375 IPC)
2013 संशोधन से पूर्व बलात्कार की परिभाषा सीमित थी, लेकिन संशोधन के बाद इसे व्यापक किया गया।
धारा 375 के अनुसार, यदि कोई पुरुष, किसी महिला के साथ, उसकी इच्छा के विरुद्ध या उसकी सहमति के बिना, या धोखे, भय, नशीले पदार्थ के प्रभाव, मानसिक असमर्थता आदि की स्थिति में, निम्न प्रकार की यौन क्रियाएँ करता है, तो यह बलात्कार माना जाएगा—
- लिंग (Penis) का प्रवेश – महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग में।
- अन्य वस्तु या शरीर के किसी अंग का प्रवेश – योनि, गुदा, मूत्रमार्ग में।
- मुँह से यौन अंग को स्पर्श या चाटना।
- यौनांग को महिला के शरीर के किसी भाग में रगड़ना या प्रवेश कराना।
- यौन उद्देश्य से अंगुली या अन्य वस्तु का प्रवेश।
स्पष्टीकरण –
- प्रवेश आंशिक हो या पूर्ण, अपराध पूर्ण माना जाएगा।
- सहमति का अर्थ है – स्वतंत्र एवं स्वेच्छा से यौन क्रिया हेतु तैयार होना, और केवल “ना” कहना ही पर्याप्त असहमति है।
- 18 वर्ष से कम आयु की महिला के साथ यौन संबंध, चाहे सहमति हो, बलात्कार ही माना जाएगा (Statutory Rape)।
3. बलात्कार के आवश्यक तत्व
- पीड़िता महिला हो – IPC के अनुसार बलात्कार केवल महिला के विरुद्ध होता है।
- आरोपी पुरुष हो – वर्तमान प्रावधान के अनुसार अपराधी पुरुष और पीड़ित महिला होती है (हालांकि, लैंगिक तटस्थता पर बहस चल रही है)।
- यौन प्रवेश (Sexual Penetration) – ऊपर वर्णित किसी भी प्रकार का प्रवेश होना आवश्यक है।
- सहमति का अभाव – सहमति स्वतंत्र, स्वेच्छा और सूचित होनी चाहिए। भय, दबाव, धोखा, नशीले पदार्थ या मानसिक असमर्थता में दी गई सहमति मान्य नहीं।
- आयु संबंधी तत्व – 18 वर्ष से कम उम्र में सहमति अप्रासंगिक है।
- मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक तत्व – अपराध से पीड़िता की गरिमा, मानसिक संतुलन और शारीरिक स्वायत्तता प्रभावित होना।
4. दंड का प्रावधान (धारा 376 IPC)
376(1) – सामान्य बलात्कार
- न्यूनतम 10 वर्ष का कठोर कारावास (2018 संशोधन से पूर्व 7 वर्ष), अधिकतम आजीवन कारावास और जुर्माना।
376(2) – गंभीर परिस्थितियों में बलात्कार (Aggravated Rape)
- जैसे – पुलिस अधिकारी, सशस्त्र बल, सरकारी कर्मचारी, अस्पताल कर्मी, नाबालिग पर, गर्भवती महिला पर, सामूहिक बलात्कार, अपंग महिला, संरक्षक द्वारा।
- दंड – 10 वर्ष से आजीवन कारावास या मृत्यु दंड (कुछ मामलों में)।
376AB – 12 वर्ष से कम आयु की बच्ची के साथ बलात्कार
- न्यूनतम 20 वर्ष का कठोर कारावास से लेकर आजीवन कारावास या मृत्यु दंड। (2018 संशोधन)
376DA/376DB – 16 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार
- आजीवन कारावास या मृत्यु दंड।
5. नवीनतम संशोधन
(A) Criminal Law (Amendment) Act, 2013
- बलात्कार की परिभाषा को विस्तारित किया।
- सहमति की परिभाषा को स्पष्ट किया – “Yes means Yes” और “No means No” सिद्धांत।
- स्टॉकिंग, वोयरिज्म, एसिड अटैक जैसे नए अपराध जोड़े।
- न्यूनतम सज़ा बढ़ाई।
(B) Criminal Law (Amendment) Act, 2018
- नाबालिग लड़कियों (विशेषकर 12 वर्ष से कम) के साथ बलात्कार पर मृत्युदंड का प्रावधान।
- न्यूनतम सज़ा में वृद्धि।
- त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन।
6. न्यायालयीन दृष्टांत (Case Laws)
- Tukaram v. State of Maharashtra (Mathura Rape Case), 1979 – सुप्रीम कोर्ट ने सहमति के मुद्दे पर विवादित निर्णय दिया, जिसके बाद व्यापक विरोध हुआ और बलात्कार कानून में सुधार की मांग बढ़ी।
- State of Punjab v. Gurmit Singh, (1996) – बलात्कार मामलों में पीड़िता की गवाही को अत्यधिक महत्व दिया, यदि वह विश्वसनीय और संगत हो।
- Lillu @ Rajesh v. State of Haryana, (2013) – “Two-finger test” को असंवैधानिक ठहराया।
- Mukesh & Anr. v. State (Nirbhaya Case), 2017 – सामूहिक बलात्कार व हत्या के लिए मृत्युदंड की पुष्टि।
- Independent Thought v. Union of India, (2017) – 15 से 18 वर्ष की विवाहित नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध को भी बलात्कार माना।
7. सहमति (Consent) का महत्व
2013 संशोधन के बाद सहमति का परीक्षण यह है कि –
- क्या महिला ने स्वेच्छा से, बिना भय या दबाव के सहमति दी?
- क्या वह सहमति यौन क्रिया के स्वरूप और परिणाम को समझकर दी गई?
- यदि महिला नशे या मानसिक विकलांगता में है तो उसकी सहमति अमान्य होगी।
8. निष्कर्ष
भारतीय दण्ड संहिता में बलात्कार संबंधी प्रावधान समय के साथ अधिक कठोर और व्यापक हुए हैं, जिससे पीड़िताओं को बेहतर न्याय मिल सके। 2013 और 2018 संशोधन ने न केवल परिभाषा और दंड को सख्त किया, बल्कि सहमति, नाबालिगों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने पर जोर दिया। न्यायालयों ने भी व्याख्याओं के माध्यम से महिला की गरिमा को सर्वोपरि मानते हुए पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया है।
फिर भी, केवल कठोर दंड ही पर्याप्त नहीं है; जागरूकता, लैंगिक शिक्षा, त्वरित जांच और संवेदनशील न्यायिक प्रक्रिया ही बलात्कार जैसे अपराधों को रोकने में प्रभावी साबित हो सकती है।