भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अंतर्गत ‘गारंटी अनुबंध’ (Contract of Guarantee)- (Special Contracts)

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के अंतर्गत ‘गारंटी अनुबंध’ (Contract of Guarantee)


1. प्रस्तावना

व्यापार और व्यक्तिगत लेन-देन में अक्सर ऐसी स्थिति आती है, जब किसी व्यक्ति को ऋण या सुविधा देने के लिए ऋणदाता को एक अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है। इस सुरक्षा के रूप में तीसरा व्यक्ति यह वचन देता है कि यदि प्रधान देनदार अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता है, तो वह (जमानतदार) उसे पूरा करेगा। इस प्रकार के समझौते को गारंटी अनुबंध कहते हैं। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 में इसके लिए धारा 126 से 147 तक विस्तृत प्रावधान किए गए हैं।


2. परिभाषा (Section 126)

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 126 के अनुसार –

“गारंटी अनुबंध वह अनुबंध है जिसके अंतर्गत एक पक्ष (जमानतदार) दूसरे पक्ष (ऋणदाता) को यह वचन देता है कि यदि तीसरा पक्ष (प्रधान देनदार) अपने ऋण या दायित्व को पूरा नहीं करता है, तो वह इसे पूरा करेगा।”

इस अनुबंध में तीन पक्ष होते हैं –

  1. प्रधान देनदार (Principal Debtor) – जो वास्तविक ऋण या दायित्व का उत्तरदायी है।
  2. ऋणदाता (Creditor) – जो ऋण या सुविधा प्रदान करता है।
  3. जमानतदार (Surety) – जो प्रधान देनदार के दायित्व को पूरा करने का वचन देता है।

उदाहरण – यदि ‘A’ (Principal Debtor) ने ‘B’ (Creditor) से ऋण लिया है और ‘C’ (Surety) यह वचन देता है कि यदि ‘A’ ऋण नहीं चुकाएगा तो वह चुकाएगा, तो यह गारंटी अनुबंध है।


3. गारंटी अनुबंध के आवश्यक तत्व

क्रमांक आवश्यक तत्व विवरण
1 तीन पक्षों का होना Principal Debtor, Creditor और Surety।
2 तीन अनुबंधों का होना (i) Creditor और Principal Debtor के बीच, (ii) Creditor और Surety के बीच, (iii) Principal Debtor और Surety के बीच।
3 विधिक उद्देश्य अनुबंध का उद्देश्य वैध होना चाहिए।
4 प्रतिफल (Consideration) गारंटी के लिए प्रतिफल आवश्यक है; Principal Debtor को दिया गया लाभ ही Surety के लिए पर्याप्त प्रतिफल है।
5 स्वतंत्र सहमति धोखाधड़ी, दबाव या गलत बयानी से मुक्त होना चाहिए।
6 लिखित या मौखिक गारंटी अनुबंध लिखित या मौखिक दोनों हो सकता है।

4. गारंटी अनुबंध के प्रकार

प्रकार विवरण
1. विशेष गारंटी (Specific Guarantee) किसी एक विशेष लेन-देन के लिए दी गई गारंटी। दायित्व पूरा होते ही समाप्त हो जाती है।
2. निरंतर गारंटी (Continuing Guarantee) कई लेन-देन या निरंतर ऋण के लिए दी गई गारंटी, जब तक रद्द न की जाए, लागू रहती है।
3. सशर्त गारंटी (Conditional Guarantee) किसी शर्त के पूरा होने पर ही प्रभावी होती है।
4. पारस्परिक गारंटी (Mutual Guarantee) दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा एक-दूसरे के लिए दी गई गारंटी।

5. प्रधान देनदार (Principal Debtor) के अधिकार एवं दायित्व

(A) अधिकार –

  1. ऋणदाता से अनुबंध की शर्तों के अनुसार सुविधा प्राप्त करना।
  2. गारंटी समाप्त होने पर जमानतदार से राहत।
  3. ऋणदाता से उचित सूचना प्राप्त करना।

(B) दायित्व –

  1. ऋण या दायित्व का समय पर निर्वहन करना।
  2. गारंटी लागू होने की स्थिति में जमानतदार को पुनर्भुगतान करना।
  3. अनुबंध की शर्तों का पालन करना।

6. ऋणदाता (Creditor) के अधिकार एवं दायित्व

(A) अधिकार –

  1. Principal Debtor और Surety दोनों से भुगतान की मांग करना।
  2. दायित्व न पूरा होने पर सीधे Surety से वसूली।
  3. अनुबंध की शर्तों के अनुसार कानूनी कार्रवाई।

(B) दायित्व –

  1. अनुबंध की शर्तों का पालन।
  2. Principal Debtor के खिलाफ उचित कार्रवाई करना।
  3. Surety को किसी भी परिवर्तन की सूचना देना जो उसके दायित्व को प्रभावित करे।

7. जमानतदार (Surety) के अधिकार एवं दायित्व

(A) अधिकार –

अधिकार विवरण
1. उपरोक्त अधिकार (Right of Subrogation) भुगतान के बाद, Surety को Creditor के सभी अधिकार मिल जाते हैं जो Principal Debtor के खिलाफ हैं।
2. क्षतिपूर्ति का अधिकार (Right to Indemnity) Principal Debtor से भुगतान की वसूली का अधिकार।
3. सह-जमानतदारों के खिलाफ योगदान का अधिकार यदि कई जमानतदार हों, तो भुगतान में समान योगदान लेने का अधिकार।
4. अनुबंध के लाभ का अधिकार Creditor द्वारा Principal Debtor से प्राप्त सुरक्षा का लाभ उठाना।

(B) दायित्व –

  1. Principal Debtor के डिफ़ॉल्ट होने पर Creditor को भुगतान करना।
  2. अनुबंध की सभी शर्तों का पालन करना।
  3. केवल उतनी ही राशि या दायित्व का निर्वहन करना जो अनुबंध में निर्दिष्ट हो।

8. जमानतदार की मुक्ति (Discharge of Surety)

जमानतदार को निम्न परिस्थितियों में दायित्व से मुक्ति मिल सकती है –

  1. अनुबंध की शर्तों में बिना सहमति परिवर्तन।
  2. Principal Debtor का दायित्व समाप्त होना।
  3. गारंटी की समाप्ति या रद्दीकरण।
  4. ऋणदाता द्वारा Principal Debtor को रिहा करना।

9. प्रमुख न्यायिक दृष्टांत

वाद का नाम निर्णय
State Bank of India v. M.P. Narayanan (1989) गारंटी अनुबंध स्वतंत्र और बाध्यकारी है; ऋणदाता सीधे जमानतदार से वसूली कर सकता है।
Bank of Bihar v. Damodar Prasad (1969) Creditor को Surety के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करने का अधिकार है; पहले Principal Debtor पर दबाव डालना आवश्यक नहीं।
Kashiba v. Shripat (1895) Surety द्वारा भुगतान करने पर उसे Creditor के सभी अधिकार मिलते हैं।

10. निष्कर्ष

गारंटी अनुबंध वित्तीय लेन-देन में सुरक्षा और विश्वास का साधन है। इसमें तीनों पक्षों के अधिकार और दायित्व स्पष्ट रूप से निर्धारित होते हैं। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 126 से 147 इस अनुबंध की संपूर्ण रूपरेखा प्रदान करती हैं। एक प्रभावी गारंटी अनुबंध के लिए स्पष्ट शर्तें, वैध उद्देश्य, स्वतंत्र सहमति और प्रतिफल आवश्यक हैं।