शीर्षक: बार-बार एक ही मुद्दा उठाने का खेल बंद करें: सुप्रीम कोर्ट की कड़ी चेतावनी
प्रस्तावना:
भारत की न्यायपालिका का उद्देश्य है न्याय को त्वरित, निष्पक्ष और पारदर्शी रूप में प्रदान करना। इसके लिए अदालती प्रक्रिया की गरिमा और अनुशासन बनाए रखना अनिवार्य होता है। यदि कोई पक्ष या अधिवक्ता बार-बार एक ही मुद्दे को दोहराते हुए अदालती कार्यवाही में बाधा उत्पन्न करता है, तो यह न केवल न्यायिक संसाधनों का दुरुपयोग है, बल्कि न्याय के मूल उद्देश्य के भी विपरीत है। हाल ही में ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन से जुड़े एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सेवायत पक्ष को इस विषय में सख्त चेतावनी दी।
मामले की पृष्ठभूमि:
वृंदावन स्थित प्रसिद्ध ठाकुर बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन लंबे समय से विवाद का विषय बना हुआ है। मंदिर की सेवायत (गोस्वामी) परंपरा के तहत प्रबंधन होता आया है, लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक मंदिर प्रबंधन समिति का गठन किया, जिसका उद्देश्य मंदिर की व्यवस्था को अधिक व्यवस्थित और पारदर्शी बनाना है। इस सरकारी हस्तक्षेप का सेवायत पक्ष ने विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
27 जुलाई को सेवायत पक्ष ने इस समिति के गठन और सरकारी अध्यादेश के खिलाफ याचिका दाखिल की, जबकि इसी मुद्दे पर पहले भी सुनवाई हो चुकी थी और यह मामला न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष लंबित था।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी:
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सेवायत पक्ष को कड़ी फटकार लगाई। पीठ ने स्पष्ट कहा – “बार-बार एक ही मुद्दा उठाने का खेल बंद करें, अन्यथा अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।”
पीठ ने यह भी कहा कि अदालती प्रक्रिया में इस प्रकार की हेराफेरी या दोहराव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता नवीन पहवा और के. नटराजन ने सरकार की ओर से यह बताया कि सेवायत पक्ष पहले ही इस मामले को अन्य पीठ में स्थानांतरित करने की कोशिश कर चुका है।
पीठ की चेतावनी और न्यायिक मर्यादा:
मुख्य न्यायाधीश ने सेवायत पक्ष के वकीलों को यह कहते हुए चेताया कि यदि यह स्थिति दोबारा उत्पन्न होती है, तो संबंधित अधिवक्ताओं के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही पर विचार किया जाएगा। यह एक बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी थी, जिससे यह संकेत स्पष्ट हुआ कि न्यायालय अब अदालती समय और प्रक्रिया के दुरुपयोग को बिल्कुल सहन नहीं करेगा।
इस तीन सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे। पीठ की कड़ी टिप्पणी के बाद एक समय ऐसा भी आया जब मुख्य न्यायाधीश ने एक अधिवक्ता के विरुद्ध अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दे दिया, किंतु न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा के हस्तक्षेप से कार्यवाही को तत्काल आगे नहीं बढ़ाया गया।
सेवायत पक्ष की प्रतिक्रिया:
इस सख्त प्रतिक्रिया से सेवायत पक्ष के अधिवक्ता असहज हो गए। उन्हें इस सुनवाई से न्याय की आशा थी, लेकिन न्यायालय की तीखी प्रतिक्रिया ने उनके कानूनी रुख पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। अदालती प्रक्रिया में बार-बार एक ही विषय को उठाकर सहानुभूति या निर्णय बदलवाने की रणनीति को न्यायालय ने साफ तौर पर अस्वीकार कर दिया।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- न्यायिक अनुशासन का उल्लंघन: अदालतों में बार-बार एक ही मुद्दे को उठाना न्यायिक अनुशासन और कार्य प्रणाली का स्पष्ट उल्लंघन है।
- अदालती संसाधनों की बर्बादी: सुप्रीम कोर्ट जैसी सर्वोच्च संस्था के समय और संसाधनों का इस प्रकार दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है।
- न्यायपालिका की गरिमा: अदालत ने यह दिखाया कि वह अपनी गरिमा और कार्य संस्कृति को बनाए रखने के लिए सख्त कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगी।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की यह कड़ी चेतावनी न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय आने वाले समय में उन सभी कानूनी पक्षों के लिए सबक बनेगा जो अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग कर न्याय में देरी लाते हैं। बांके बिहारी मंदिर जैसे धार्मिक व संवेदनशील मुद्दों पर भी जब कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है, तो न्यायालय को मजबूर होकर सख्त रुख अपनाना पड़ता है। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भारत की न्यायपालिका अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करेगी और अदालती मर्यादा की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगी।