हिन्दू विधि में गोद लेने की प्रक्रिया और प्रभाव की विवेचना कीजिए। Hindu Law

प्रश्न: हिन्दू विधि में गोद लेने की प्रक्रिया और प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:

परिचय (Introduction)

हिन्दू विधि में गोद लेना (Adoption) एक प्राचीन प्रथा है जिसका मूल उद्देश्य संतानहीन दंपतियों को संतान प्रदान करना तथा पारिवारिक वंश को बनाए रखना होता है। गोद लेना केवल सामाजिक या भावनात्मक आवश्यकता नहीं है, बल्कि हिन्दू विधि के अंतर्गत यह एक विधिक प्रक्रिया है जो कुछ निश्चित शर्तों और विधियों के पालन से ही वैध मानी जाती है।

हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956) हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए गोद लेने की प्रक्रिया और उसके प्रभाव को विनियमित करने वाला प्रमुख अधिनियम है। इस अधिनियम के द्वारा पहली बार गोद लेने को एक विधिक मान्यता दी गई और उसमें लैंगिक समानता को भी बढ़ावा दिया गया।


1. गोद लेने की विधिक प्रक्रिया (Legal Process of Adoption)

हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 6 से 11 तक गोद लेने की वैधता की शर्तें, पात्रता, सीमाएँ और प्रक्रिया स्पष्ट की गई हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित बिंदु महत्वपूर्ण हैं:


(A) गोद लेने की वैधता की शर्तें (Essential Conditions for a Valid Adoption)

(Section 6)

  1. गोद लेने वाले व्यक्ति को गोद लेने का अधिकार होना चाहिए।
  2. गोद दिए जाने वाले बच्चे को गोद दिए जाने का अधिकार होना चाहिए।
  3. गोद देना और लेना दोनों का विधिवत कार्य होना चाहिए।
  4. गोद लेना वास्तविक हस्तांतरण और उद्देश्य के साथ होना चाहिए।

(B) कौन गोद ले सकता है? (Who Can Adopt?)

(Section 7 & 8)

पात्र पुरुष (Male Hindu):

  • वह हिन्दू होना चाहिए।
  • विवाहित हो तो पत्नी की अनुमति आवश्यक है, जब तक कि वह अक्षम, मानसिक रूप से अस्वस्थ, धर्म परिवर्तित, या पति-पत्नी का पृथक्करण न हो गया हो।

पात्र महिला (Female Hindu):

  • वह हिन्दू हो और अकेली, विधवा, तलाकशुदा या पति से पृथक रह रही हो।
  • विवाहित स्त्री अपने पति की अनुमति के बिना गोद नहीं ले सकती जब तक कि वह मृत, अक्षम या धर्म परिवर्तन न कर चुका हो।

(C) कौन गोद लिया जा सकता है? (Who Can Be Adopted?)

(Section 10)

  1. हिन्दू होना चाहिए।
  2. अविवाहित होना चाहिए (यदि बालक या बालिका का विवाह नहीं हुआ हो)।
  3. उम्र 15 वर्ष से कम होनी चाहिए, जब तक कि परंपरा या प्रथा से अपवाद सिद्ध न हो।
  4. पहले कभी गोद न लिया गया हो।

(D) लिंग की सीमा (Restriction on Adoption Based on Gender)

(Section 11)

  • यदि कोई हिन्दू पुरुष पुत्र गोद लेना चाहता है, तो उसके पास कोई जैविक या गोद लिया हुआ पुत्र नहीं होना चाहिए।
  • यदि पुत्री गोद लेना चाहता है, तो ऐसी ही शर्तें लागू होंगी।
  • महिला पुरुष बालक को गोद ले सकती है, लेकिन उसे ऐसा करते समय न्यायालय से अनुमति लेनी पड़ सकती है।
  • गोद लेने के लिए वास्तविक हस्तांतरण आवश्यक है और विधिवत रूप से उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।

2. गोद लेने के प्रभाव (Legal Effects of Adoption)

(Section 12)

गोद लेने के पश्चात गोद लिए गए बालक या बालिका को कई प्रकार के वैधानिक प्रभाव प्राप्त होते हैं। ये निम्नलिखित हैं:


(A) पुत्र या पुत्री के समान अधिकार (Full Legal Status of a Child)

  • गोद लिया गया बालक/बालिका, गोद लेने वाले के पुत्र/पुत्री के समान होता है।
  • उसे सभी उत्तराधिकार, सम्पत्ति, परिवारिक नाम आदि का समान अधिकार प्राप्त होता है।
  • उसे गोद लेने वाले के परिवार का सदस्य माना जाता है।

(B) जन्म परिवार से संबंध विच्छेद (Severance from Natural Family)

  • गोद लिए जाने के पश्चात बालक का संबंध उसके जैविक परिवार से समाप्त हो जाता है।
  • वह अब जैविक परिवार की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं रह जाता।

(C) विवाह की सीमाएं (Restrictions on Marriage)

  • गोद लिए गए बालक को गोद लेने वाले परिवार के सदस्यों के साथ विवाह की वही सीमाएं लागू होती हैं जो जैविक संतान पर होती हैं।
  • जैसे, वह गोद लेने वाले की पुत्री, बहन, माता आदि से विवाह नहीं कर सकता।

(D) उत्तराधिकार का अधिकार (Right to Inherit Property)

  • गोद लिया गया बालक अपने गोद लेने वाले पिता/माता की संपत्ति का वैध उत्तराधिकारी होता है।
  • यदि कोई गोद लिया गया पुत्र है, तो वह समान रूप से संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में हिस्सा प्राप्त कर सकता है।

3. न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Interpretation)

Laxmi Kant Pandey v. Union of India (1984)

इस ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने गोद लेने की प्रक्रिया में बालकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। न्यायालय ने निर्देश दिया कि बालकों के हित में गोद लेने की प्रक्रिया पारदर्शी, न्यायपूर्ण और उनके कल्याण को ध्यान में रखकर होनी चाहिए।

V.T. Swaminathan v. R. Lakshminarayan (1998)

इस मामले में स्पष्ट किया गया कि एक बार गोद लेने की प्रक्रिया पूर्ण हो जाने पर, गोद लिया गया बालक जैविक संतान के बराबर अधिकार रखता है।


4. अंतरराष्ट्रीय गोद लेना (Inter-country Adoption)

हिन्दू दत्तक ग्रहण अधिनियम भारतीय हिन्दू नागरिकों पर लागू होता है। यदि कोई विदेशी नागरिक किसी भारतीय बालक को गोद लेना चाहता है, तो उसे Guardian and Wards Act, 1890 के अंतर्गत कार्यवाही करनी होती है। इसके अंतर्गत उसे पहले बालक का संरक्षक घोषित किया जाता है और फिर विदेश में गोद लेने की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।


निष्कर्ष (Conclusion)

हिन्दू विधि में गोद लेना एक सशक्त और मानवीय प्रक्रिया है, जो पारिवारिक संरचना को मजबूत करती है तथा संतानहीन दंपतियों को सामाजिक एवं भावनात्मक संतोष प्रदान करती है। हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 ने इस प्रथा को स्पष्ट कानूनी रूप दिया, जिससे न केवल बालक के अधिकारों की रक्षा हुई, बल्कि लैंगिक समानता को भी बढ़ावा मिला।

गोद लिए गए बालक को पूरी तरह जैविक संतान के बराबर अधिकार मिलते हैं, और वह गोद लेने वाले परिवार का वैधानिक सदस्य बन जाता है। अतः गोद लेना न केवल एक मानवीय कर्तव्य है, बल्कि एक विधिक प्रक्रिया है जिसे पूरे विधिक और नैतिक उत्तरदायित्व के साथ अपनाया जाना चाहिए।