प्रश्न: हिन्दू विधि का स्रोत क्या है? विभिन्न स्रोतों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हिन्दू विधि (Hindu Law) भारतीय विधिक प्रणाली की प्राचीनतम शाखाओं में से एक है, जिसकी जड़ें वैदिक काल में स्थापित धार्मिक और नैतिक मूल्यों में निहित हैं। हिन्दू विधि के स्रोत वे आधार हैं जिनसे इसकी उत्पत्ति और विकास हुआ है। इन स्रोतों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है – (1) प्राचीन स्रोत (Ancient Sources) और (2) आधुनिक स्रोत (Modern Sources)।
(1) प्राचीन स्रोत (Ancient Sources)
प्राचीन स्रोत मुख्यतः धार्मिक, नैतिक और सामाजिक ग्रंथों पर आधारित हैं। ये निम्नलिखित हैं:
(i) श्रुति (Shruti)
‘श्रुति’ का अर्थ है – “जो सुना गया”। यह वेदों और उपनिषदों का समूह है। श्रुति को हिन्दू विधि का सर्वोच्च और प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसमें धार्मिक अनुष्ठानों, कर्तव्यों, पवित्रता, विवाह, उत्तराधिकार आदि की व्याख्या की गई है।
(ii) स्मृति (Smriti)
‘स्मृति’ का अर्थ है – “जो स्मरण रखा गया”। यह श्रुतियों की पुनः व्याख्या और संशोधन है। इसमें सामाजिक आचरण, कर्तव्य, अपराध और दंड का विस्तृत वर्णन मिलता है। प्रमुख स्मृतियों में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, पाराशर स्मृति आदि सम्मिलित हैं।
(iii) आचार (Aachara)
यह समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार, परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। जब किसी विषय पर स्पष्ट श्रुति या स्मृति नहीं होती, तब आचार को निर्णय का आधार माना जाता है।
(iv) स्वीकृत आत्मसंतोष (Sadachara / Atma Santosh)
यह न्यायाधीश या विद्वान ब्राह्मण की अंतरात्मा की संतुष्टि के आधार पर निर्णय देने की प्रक्रिया है। इसमें विवेक, न्यायबुद्धि और धार्मिक मूल्यों को आधार बनाया जाता है।
(2) आधुनिक स्रोत (Modern Sources)
आधुनिक स्रोत वे हैं जो ब्रिटिश शासन और स्वतंत्र भारत के पश्चात अस्तित्व में आए। ये निम्नलिखित हैं:
(i) विधिक न्यायनिर्णय (Judicial Decisions)
अदालतों के निर्णय हिन्दू विधि के व्यावहारिक स्रोत हैं। विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय कानून की मिसाल (precedent) बन जाते हैं।
(ii) विधायी अधिनियम (Legislative Enactments)
स्वतंत्र भारत में कई क्षेत्रों में हिन्दू विधि का लिपिबद्धीकरण हुआ है। इनमें मुख्यतः निम्नलिखित अधिनियम आते हैं:
- हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955
- हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
- हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956
- हिन्दू अविभाजित पारिवारिक संपत्ति अधिनियम (Hindu Minority and Guardianship Act), 1956
(iii) रीति-रिवाज और परंपराएं (Customs and Usages)
यदि कोई रीति या प्रथा लम्बे समय से प्रचलित है और समाज द्वारा मान्यता प्राप्त है, तो उसे भी हिन्दू विधि का स्रोत माना जाता है, बशर्ते वह अनैतिक या कानून के विरुद्ध न हो।
(iv) विद्वानों की टिप्पणियाँ (Commentaries and Digests)
हिन्दू विधि पर प्राचीन और आधुनिक विद्वानों द्वारा लिखित टीकाएं जैसे कि मिताक्षरा, दायभाग, दयानंद, और वाचस्पति मिश्र द्वारा रचित ग्रंथ हिन्दू विधि के प्रमुख व्याख्यात्मक स्रोत हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
हिन्दू विधि एक विस्तृत और बहुआयामी विधि है, जिसका विकास धार्मिक ग्रंथों, परंपराओं, समाज की आवश्यकताओं और आधुनिक संवैधानिक विचारों के समन्वय से हुआ है। इसके स्रोत न केवल धार्मिक और नैतिक हैं, बल्कि न्यायिक और विधायी रूप से भी सशक्त हैं। वर्तमान में हिन्दू विधि एक प्रगतिशील विधि के रूप में विकसित हो रही है, जो परंपरा और आधुनिकता का संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है।