अनुबंध के अभिप्रेरक तत्व ‘विचार’ (Consideration) की परिभाषा और महत्व की चर्चा (भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की दृष्टि से विचार की सीमाएँ और अपवाद) Contract Law

अनुबंध के अभिप्रेरक तत्व ‘विचार’ (Consideration) की परिभाषा और महत्व की चर्चा
(भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की दृष्टि से विचार की सीमाएँ और अपवाद)


प्रस्तावना

संविदा कानून में ‘विचार’ (Consideration) को संविदा का हृदय या आत्मा माना जाता है। यह वह मूल्य है जो किसी व्यक्ति को वचन देने के बदले में प्राप्त होता है। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी संविदा को वैध बनने के लिए विचार का होना आवश्यक है। बिना विचार के की गई संविदा सामान्यतः अमान्य होती है, जब तक कि वह कुछ विशेष अपवादों के अंतर्गत न आती हो।


विचार की परिभाषा (Definition of Consideration)

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(d) के अनुसार:

“जब वचन देने वाला किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा, वचन देने वाले या किसी अन्य व्यक्ति की इच्छा से, कोई कार्य करता है या कराने के लिए सहमत होता है, या कुछ त्यागता है या त्यागने के लिए सहमत होता है, तो उस कार्य, त्याग या वचन को ‘विचार’ कहा जाता है।”

इस परिभाषा से स्पष्ट है कि विचार वह मूल्य है जो एक पक्ष दूसरे पक्ष के वचन के बदले देता है। यह मूल्य कुछ करने, न करने, या कुछ त्यागने के रूप में हो सकता है।


विचार के तत्व (Essentials of Consideration)

  1. यह वचन देने वाले की इच्छा से किया गया हो।
  2. यह कार्य, त्याग या वचन वचनकर्ता या किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया जा सकता है।
  3. यह वर्तमान, भूतकालीन या भविष्य की क्रिया हो सकती है।
  4. यह वैध और वास्तविक होना चाहिए।
  5. यह अवैध, असंभव, या अस्पष्ट नहीं होना चाहिए।

विचार का महत्व (Importance of Consideration)

  1. संविदा की वैधता का आधार: विचार के बिना कोई भी संविदा साधारणतः लागू करने योग्य नहीं मानी जाती।
  2. लेन-देन की गारंटी: यह सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्षों को कुछ न कुछ लाभ या हानि हो रही है, जिससे अनुबंध पारस्परिक और न्यायपूर्ण बनता है।
  3. प्रेरणा का स्रोत: विचार, अनुबंध में क्रियाशीलता का स्रोत है। यह पक्षों को अपने वादे को निभाने हेतु प्रेरित करता है।
  4. न्यायिक मान्यता: अदालतें सामान्यतः बिना विचार के संविदा को लागू नहीं करतीं।

न्यायिक दृष्टांत:
Currie v. Misa (1875)
इस प्रसिद्ध अंग्रेज़ी निर्णय में कहा गया कि –

“विचार का अर्थ है किसी पक्ष को लाभ और दूसरे को त्याग या नुकसान।”


विचार की प्रकृति (Nature of Consideration)

भारतीय कानून में विचार की परिभाषा को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है, और इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:

1. विचार अतीत, वर्तमान या भविष्य का हो सकता है

  • भूतकालीन विचार (Past Consideration): यदि कोई कार्य पहले किया गया हो और बाद में उसका प्रतिफल देने का वचन दिया जाए, तो वह वैध होता है।
  • वर्तमान विचार: प्रस्ताव के साथ-साथ लाभ या त्याग होना।
  • भविष्य का विचार: दोनों पक्षों द्वारा कोई कार्य या त्याग भविष्य में करने का वादा।

2. विचार केवल वचनकर्ता तक सीमित नहीं है

भारतीय कानून के अनुसार, तीसरे पक्ष द्वारा किया गया विचार भी मान्य है, जबकि इंग्लैंड में केवल वचन प्राप्तकर्ता द्वारा ही विचार स्वीकार्य होता है।

3. विचार पर्याप्त होना चाहिए, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह उचित (adequate) हो

न्यायालय विचार की मात्रात्मक तुलना नहीं करता, लेकिन वह अवैध या कपटपूर्ण विचार को अस्वीकार कर सकता है।


विचार की सीमाएँ (Limitations of Consideration)

  1. अवैध कार्यों के लिए विचार अमान्य होता है – जैसे चोरी, हत्या आदि के लिए दिया गया विचार।
  2. यदि विचार असंभव या अस्पष्ट है तो संविदा अमान्य होगी।
  3. नैतिक या सामाजिक कर्तव्यों के लिए दिया गया विचार संविदा नहीं बनाता।
  4. कानूनी दायित्व के अंतर्गत किया गया कार्य विचार नहीं माना जाएगा।
    (Case: Rajlukhy Dabee v. Bhootnath Mookerjee, 1900)
    पति का पत्नी को भरण-पोषण देने का पहले से कानूनी दायित्व था, अतः उसे विचार नहीं माना गया।

विचार के अपवाद (Exceptions to Consideration) – धारा 25

भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 25 में कुछ ऐसे अपवाद दिए गए हैं, जहाँ विचार के अभाव में भी संविदा वैध मानी जाती है:

1. प्राकृतिक प्रेम और स्नेह के आधार पर किया गया लेखबद्ध वचन

यदि कोई वचन किसी निकट संबंधी को प्राकृतिक प्रेम और स्नेह के आधार पर दिया गया हो तथा वह लिखित और पंजीकृत हो, तो वह विचार के बिना भी वैध होता है।

उदाहरण: एक पिता द्वारा अपनी बेटी को उपहार देने का लिखित वचन।

2. भूतकालीन सेवा का प्रतिफल

यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी के लिए कोई सेवा करता है और बाद में वह व्यक्ति उस सेवा के बदले में कुछ देने का वचन देता है, तो वह वैध माना जाएगा।

Case Law: Kedar Nath v. Gorie Mohammad (1886)
विकास कार्य हेतु किया गया वादा, भूतकालीन विचार के अंतर्गत वैध माना गया।

3. समय-सीमा से प्रतिबंधित ऋण की पुनः प्रतिपूर्ति का वचन

यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे ऋण को चुकाने का लिखित वचन देता है जिसकी वसूली की वैधानिक समय-सीमा समाप्त हो चुकी हो, तो वह वचन वैध होता है।

4. एजेंसी संबंधी अनुबंधों में विचार की आवश्यकता नहीं होती

भारतीय एजेंसी कानून के अंतर्गत, एजेंट नियुक्त करने के लिए विचार की आवश्यकता नहीं होती।

5. उपेक्षित कार्यों को वैध बनाने हेतु सरकारी कर्तव्यों का निर्वहन

यदि कोई व्यक्ति न्यायिक या वैधानिक कर्तव्य के पालन हेतु कोई कार्य करता है और सरकार उसे बाद में उसका प्रतिफल देने का वचन देती है, तो विचार के अभाव में भी वह वचन वैध हो सकता है।


निष्कर्ष (Conclusion)

संविदा कानून में विचार एक केंद्रीय तत्व है, जो अनुबंधों को वैधानिक रूप से बंधनकारी बनाता है। यह न केवल अनुबंध की वैधता को सुनिश्चित करता है, बल्कि अनुबंध की नैतिकता और निष्पक्षता को भी बल देता है। हालांकि, भारतीय कानून ने कुछ विशेष परिस्थितियों में विचार की आवश्यकता को शिथिल कर दिया है, जिससे व्यवहारिक न्याय संभव हो सके।
इस प्रकार, विचार भारतीय संविदा अधिनियम का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और विवेकपूर्ण अंग है जो कानून को व्यावहारिक और न्यायसंगत बनाता है।