प्रश्न: भारत के संघीय ढांचे (Federal Structure) की विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। क्या भारत एक सच्चा संघीय राष्ट्र है?
परिचय:
भारत का संविधान एक विस्तृत और सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है। यह शक्ति-विभाजन भारतीय शासन प्रणाली को संघात्मक (Federal) स्वरूप प्रदान करता है। किंतु भारत का संघीय ढांचा विशुद्ध रूप से संघीय (purely federal) नहीं है, बल्कि यह संघात्मक और एकात्मक (unitary) तत्वों का मिश्रण है। भारत को “संघ राज्यों का संघ” (Union of States) कहा गया है – न कि “राज्यों का संघ” – जो इसकी विशिष्टता को दर्शाता है।
संघीयता की परिभाषा (Definition of Federalism):
संघवाद (Federalism) एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शक्तियाँ दो या दो से अधिक स्तरों की सरकारों में विभाजित होती हैं – जैसे कि केंद्र और राज्य। हर स्तर की सरकार को अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्रता प्राप्त होती है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया इसके पारंपरिक उदाहरण हैं।
संविधान में संघीय ढांचे की विशेषताएँ:
1. शक्ति का द्वैध वितरण (Dual Polity):
भारत में दो स्तर की सरकारें हैं – केंद्र और राज्य। दोनों की कार्यक्षेत्र और अधिकार संविधान द्वारा परिभाषित किए गए हैं। यह संघवाद की बुनियादी विशेषता है।
2. लिखित संविधान (Written Constitution):
भारत का संविधान विस्तृत और लिखित है, जो संघीय व्यवस्था की आवश्यक विशेषता है। यह केंद्र और राज्यों की शक्तियों, कार्यों, अधिकारों और प्रतिबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
3. शक्ति वितरण (Division of Powers):
अनुच्छेद 246 और सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का वितरण तीन सूचियों में किया गया है—
- संघ सूची (Union List) – केंद्र के लिए
- राज्य सूची (State List) – राज्यों के लिए
- समवर्ती सूची (Concurrent List) – दोनों के लिए
4. संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of Constitution):
भारत का संविधान सर्वोपरि है। किसी भी कानून या कार्यवाही को संविधान के विरुद्ध नहीं चलाया जा सकता। केंद्र और राज्य दोनों को संविधान के अधीन रहकर कार्य करना होता है।
5. स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary):
संविधान ने न्यायपालिका को स्वतंत्रता प्रदान की है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का समाधान कर सकते हैं।
6. संविधान में कठोरता (Rigidity of Constitution):
संविधान में कुछ संशोधन ऐसे हैं जिनमें राज्यों की सहमति आवश्यक होती है (जैसे – अनुच्छेद 368 के तहत कुछ संशोधन)। यह संघीय तत्व की पुष्टि करता है।
एकात्मक विशेषताएँ (Unitary Features of Indian Constitution):
भारत का संविधान केवल संघात्मक नहीं है, बल्कि उसमें कई एकात्मक विशेषताएँ भी निहित हैं जो इसे “संघीय संरचना के साथ एकात्मक प्रवृत्ति” बनाती हैं। प्रमुख एकात्मक लक्षण निम्नलिखित हैं:
1. ‘राज्यों का संघ’ (Union of States):
अनुच्छेद 1 में भारत को “राज्यों का संघ” कहा गया है। भारत में राज्य अपनी मर्जी से संघ में शामिल नहीं हुए, जैसा कि अमेरिका में हुआ था।
2. राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति:
केंद्र सरकार को संसद के माध्यम से राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन, नाम परिवर्तन या विलय की शक्ति प्राप्त है (अनुच्छेद 3)। यह विशुद्ध संघीय राज्यों में नहीं होता।
3. समवर्ती सूची में वरीयता (Primacy in Concurrent List):
समवर्ती सूची के किसी विषय पर यदि राज्य और केंद्र दोनों कानून बनाते हैं और उनमें टकराव होता है, तो केंद्रीय कानून को वरीयता दी जाती है।
4. आपातकालीन प्रावधान (Emergency Provisions):
आपातकाल की स्थिति (अनुच्छेद 352, 356, 360) में केंद्र को असाधारण शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, और राज्यों की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। यह संघीय ढांचे को एकात्मक रूप में परिवर्तित कर देता है।
5. राज्यपाल की नियुक्ति (Appointment of Governor):
राज्यपाल, जो राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। यह केंद्र द्वारा राज्य प्रशासन पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण है।
6. वित्तीय निर्भरता (Financial Dependence):
राज्य अपनी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए केंद्र पर निर्भर रहते हैं। अधिकतर कराधान शक्तियाँ केंद्र के पास हैं। यह आर्थिक संघवाद की सीमा को दर्शाता है।
न्यायिक दृष्टिकोण:
📌 केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973):
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत का संविधान संघात्मक है और इसकी मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता।
📌 एस.आर. बोंमई बनाम भारत संघ (1994):
इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “संघीय ढांचा” संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा है, और अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग असंवैधानिक होगा।
क्या भारत एक सच्चा संघीय राष्ट्र है?
भारत एक विशुद्ध संघीय राष्ट्र नहीं है, जैसा कि अमेरिका है। भारत का संघवाद “सहकारी संघवाद” (Cooperative Federalism) और “केंद्राभिमुख संघवाद” (Centripetal Federalism) पर आधारित है।
- भारत में केंद्र को अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- संविधान की व्याख्या केंद्र की प्रधानता की ओर संकेत करती है।
- राज्य पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हैं – वे संविधान की परिधि में ही कार्य कर सकते हैं।
इसलिए, भारत एक “अद्वितीय संघीय ढांचा” (Unique Federal Structure) वाला देश है, जो संविधान द्वारा प्रदत्त संघात्मक विशेषताओं के साथ-साथ एकात्मक लक्षणों को भी समाहित करता है।
निष्कर्ष:
भारत का संघीय ढांचा अद्वितीय है। इसमें संघात्मकता के सभी आवश्यक लक्षण मौजूद हैं – जैसे दोहरी सरकार, शक्ति का वितरण, स्वतंत्र न्यायपालिका, और लिखित संविधान। साथ ही, एकात्मक तत्व – जैसे केंद्र की प्रमुखता, आपातकालीन शक्तियाँ, और राज्यपाल की नियुक्ति – इसे “संघीय के साथ-साथ एकात्मक” बनाते हैं। न्यायपालिका के अनुसार, यह संरचना “भारत की आवश्यक आवश्यकता” है – जिससे विविधता में एकता बनाए रखी जा सके।
इसलिए, यह कहा जा सकता है कि भारत एक सच्चा संघीय राष्ट्र नहीं है, बल्कि “संघात्मक व्यवस्था वाला एकात्मक राष्ट्र” है, जो भारत की भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार सर्वोत्तम रूप से अनुकूल है।