प्रश्न: भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। क्या प्रस्तावना को संविधान का भाग माना जाता है?
परिचय:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble) संविधान की आत्मा मानी जाती है। यह संविधान के उद्देश्यों, आदर्शों, मूल्यों और दर्शन का संक्षिप्त और सारगर्भित परिचय प्रदान करती है। प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है कि भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है और उसका उद्देश्य अपने समस्त नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता प्रदान करना है। प्रस्तावना, संविधान की प्रस्तावना होते हुए भी इसका अभिन्न अंग है जो संविधान की व्याख्या में दिशा-निर्देशक के रूप में कार्य करती है।
प्रस्तावना का ऐतिहासिक विकास:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूलतः अमेरिका के संविधान से प्रेरित है। यह संविधान सभा द्वारा 22 जनवरी, 1947 को ‘उद्देश्य संकल्प’ के रूप में सर्वप्रथम प्रस्तुत की गई थी, जिसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किया था। बाद में इसे संविधान की प्रस्तावना के रूप में अंगीकार किया गया। संविधान लागू होने के साथ ही 26 जनवरी 1950 को यह प्रभाव में आ गई।
प्रस्तावना की विशेषताएँ:
1. संप्रभुता (Sovereignty):
भारत एक स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र है। इसका अर्थ है कि भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में पूर्ण रूप से स्वतंत्र है। कोई भी विदेशी शक्ति भारत की संप्रभुता में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
2. समाजवाद (Socialism):
समाजवाद का अर्थ है आर्थिक और सामाजिक समानता की स्थापना। यह संपत्ति और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करता है। भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य गरीबी, बेरोजगारी, और असमानता को समाप्त करना है।
3. धर्मनिरपेक्षता (Secularism):
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, अर्थात् राज्य का कोई धर्म नहीं होगा। सभी धर्मों को समान सम्मान मिलेगा और राज्य किसी विशेष धर्म का समर्थन या विरोध नहीं करेगा। धर्म की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार के रूप में नागरिकों को प्रदान की गई है।
4. लोकतंत्र (Democracy):
भारत में जनता को शासक माना गया है। यह एक प्रतिनिधित्वात्मक लोकतंत्र है, जहाँ नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अधीन कार्य करती हैं।
5. गणराज्य (Republic):
गणराज्य का अर्थ है कि राज्य का प्रमुख जनता द्वारा निर्वाचित होता है, और यह उत्तराधिकार के सिद्धांत पर आधारित नहीं होता। भारत में राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुना जाता है।
6. न्याय (Justice):
प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना की बात की गई है। इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक नागरिक को समान अवसर, संसाधनों का न्यायसंगत वितरण और कानून के समक्ष समानता प्राप्त हो।
7. स्वतंत्रता (Liberty):
प्रस्तावना प्रत्येक नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करती है। यह स्वतंत्रता मौलिक अधिकारों के रूप में संविधान में निहित है।
8. समानता (Equality):
प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता और अवसरों की समानता दी गई है। जाति, धर्म, लिंग, भाषा, आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
9. बंधुता (Fraternity):
बंधुता का अर्थ है सभी नागरिकों के बीच भाईचारे की भावना। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
प्रस्तावना का संविधान में स्थान:
🔸 क्या प्रस्तावना संविधान का भाग है?
इस प्रश्न पर भारतीय न्यायपालिका ने विभिन्न मामलों में विचार किया है, जिनमें से प्रमुख हैं:
📌 केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973):
इस ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है। इसे संविधान की प्रस्तावना होते हुए भी उसका मूलभूत ढांचा (Basic Structure) माना गया। अर्थात् प्रस्तावना के मूल तत्वों को संसद संशोधन द्वारा समाप्त नहीं कर सकती।
📌 बेरुबारी संघ मामला (1960):
इससे पूर्व, सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया था कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है क्योंकि यह किसी अधिकार या शक्ति को प्रदान नहीं करती। लेकिन यह निर्णय केशवानंद भारती मामले में पलट दिया गया।
📌 लक्ष्मीकांत पांडेय बनाम भारत सरकार (1984):
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावना को संविधान की व्याख्या का सहायक बताया और कहा कि जब किसी प्रावधान की व्याख्या में अस्पष्टता हो, तो प्रस्तावना को दिशा-निर्देशक सिद्धांत के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
प्रस्तावना में संशोधन:
42वें संविधान संशोधन, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए:
- समाजवादी (Socialist)
- धर्मनिरपेक्ष (Secular)
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता (Unity and Integrity of the Nation)
यह संशोधन इंदिरा गांधी सरकार के शासनकाल में किया गया, जिससे प्रस्तावना की विचारधारा और अधिक स्पष्ट हुई।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक महत्वपूर्ण और मूलभूत दस्तावेज है, जो संविधान के उद्देश्यों और मूल्यों का प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है। यह संविधान की आत्मा है जो संपूर्ण संविधान को दिशा और आधार प्रदान करती है। न्यायपालिका द्वारा इसे संविधान का अभिन्न अंग माना गया है और संविधान की व्याख्या करते समय इसे मार्गदर्शक तत्व के रूप में देखा जाता है। प्रस्तावना, भारतीय संविधान को एक समावेशी, न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान करती है, जो प्रत्येक नागरिक को गरिमा और अधिकारों के साथ जीने का अवसर देती है।