सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर की वैधता
(Validity of Electronic Records and Digital Signatures under the IT Act, 2000)
तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम के साथ इसका संबंध (Relation with Indian Evidence Act)
(Long Answer)
प्रस्तावना (Introduction):
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) भारत में डिजिटल युग के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी आधार प्रदान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य न केवल साइबर अपराधों को नियंत्रित करना है, बल्कि यह इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन को कानूनी मान्यता भी प्रदान करता है। अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (Electronic Record) और डिजिटल हस्ताक्षर (Digital Signature) की वैधता सुनिश्चित करना शामिल है। इन दोनों अवधारणाओं ने दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता, सुरक्षा और वैधानिकता को एक नया आयाम दिया है। इसके अतिरिक्त, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में भी इन परिवर्तनों के अनुरूप संशोधन कर इन्हें साक्ष्य के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
1. इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की वैधता (Validity of Electronic Records):
a) परिभाषा (Definition):
आईटी अधिनियम की धारा 2(1)(t) के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में “डेटा, रिकॉर्ड या सूचना जो इलेक्ट्रॉनिक रूप में उत्पन्न, भेजी, प्राप्त या संग्रहित की गई हो” शामिल है।
b) कानूनी मान्यता (Legal Recognition):
- धारा 4 – यह धारा कहती है कि जब किसी कानून के अंतर्गत किसी सूचना को लिखित रूप में देने, संग्रहित करने या भेजने की आवश्यकता हो, तब यदि वह सूचना इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध हो, और उस तक पहुँचना संभव हो, तो उसे भी वैध माना जाएगा।
- इसका अर्थ है कि किसी पत्र, रिपोर्ट, अनुबंध, चालान आदि का डिजिटल स्वरूप (PDF, Word, Email, etc.) भी लिखित दस्तावेज़ की तरह मान्य होगा।
c) उपयोगिता:
- ईमेल, ई-गवर्नेंस, ई-कॉमर्स, डिजिटल चालान, ऑनलाइन अनुबंध आदि अब पूरी तरह से कानूनी दस्तावेज़ माने जाते हैं।
- यह व्यापारिक और प्रशासनिक कार्यों को पारदर्शी, तेज और सुरक्षित बनाता है।
2. डिजिटल हस्ताक्षर की वैधता (Validity of Digital Signatures):
a) परिभाषा (Definition):
आईटी अधिनियम की धारा 2(1)(p) के अनुसार, “डिजिटल हस्ताक्षर” का अर्थ है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में संलग्न किसी प्रमाणन तकनीक द्वारा प्रमाणित इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर।
b) कानूनी मान्यता:
- धारा 5 – जब किसी दस्तावेज़ या अनुबंध को कानूनन हस्ताक्षरित करने की आवश्यकता होती है, तो यदि वह दस्तावेज़ डिजिटल हस्ताक्षर से प्रमाणित है, तो उसे भी वैधानिक मान्यता प्राप्त होगी।
- यह हस्ताक्षर असली व्यक्ति की पहचान, डेटा की अखंडता और प्रामाणिकता को सुनिश्चित करता है।
c) सर्टिफाइंग अथॉरिटीज (Certifying Authorities):
- डिजिटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र (Digital Signature Certificate – DSC) केवल अधिकृत Certifying Authority (CA) द्वारा ही जारी किया जा सकता है।
- आईटी अधिनियम के तहत भारत सरकार ने Controller of Certifying Authorities (CCA) की स्थापना की है, जो इन CA को विनियमित करता है।
3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम के साथ संबंध (Relationship with Indian Evidence Act, 1872):
आईटी अधिनियम के लागू होने के बाद, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में संशोधन कर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल साक्ष्य को विधिवत साक्ष्य के रूप में मान्यता दी गई।
a) धारा 65A और 65B – इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का साक्ष्य (Admissibility of Electronic Records):
- धारा 65A – यह इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की साक्ष्य मान्यता के लिए विशेष नियमों की व्यवस्था करता है।
- धारा 65B – इसमें यह प्रावधान है कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, जैसे ईमेल, सीडी, कंप्यूटर फाइल, मोबाइल रिकॉर्ड आदि, यदि उचित तरीके से 65B प्रमाणपत्र के साथ प्रस्तुत किया जाए, तो वह साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह प्रमाणपत्र यह साबित करता है कि रिकॉर्ड को जिस डिवाइस से उत्पन्न किया गया है, वह विश्वसनीय है।
- यह प्रमाणपत्र दस्तावेज़ प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति द्वारा तैयार किया जाता है, जिसे उस डिवाइस या प्रक्रिया की जानकारी हो।
b) अन्य धाराएँ:
- धारा 17 (Admission): इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को स्वीकृति (Admission) के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
- धारा 22A: जब कोई मौखिक साक्ष्य किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से संबंधित हो, तो वह तब तक स्वीकार्य नहीं होगा, जब तक रिकॉर्ड प्रस्तुत न किया जाए।
- धारा 45A: न्यायालय में डिजिटल फॉरेंसिक विशेषज्ञों की राय को विशेषज्ञ साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
4. व्यावहारिक प्रभाव (Practical Implications):
a) न्यायालयों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता:
- अब कोर्ट में ईमेल, सीसीटीवी फुटेज, बैंकिंग ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड, मोबाइल रिकॉर्डिंग, व्हाट्सएप चैट आदि साक्ष्य के रूप में स्वीकार किए जाते हैं, बशर्ते वे 65B प्रमाणपत्र के साथ हों।
b) व्यापारिक अनुबंधों की विश्वसनीयता:
- व्यापार में अब डिजिटल अनुबंध व ई-सिग्नेचर को वैध माना जाता है, जिससे दूरस्थ पार्टियों के बीच अनुबंध सरल और सुरक्षित हो गया है।
c) ई-गवर्नेंस में सहायता:
- सरकारी सेवाओं जैसे पासपोर्ट आवेदन, पैन कार्ड, टैक्स फाइलिंग आदि में अब डिजिटल दस्तावेजों व हस्ताक्षरों का व्यापक उपयोग हो रहा है।
5. सीमाएँ और चुनौतियाँ (Limitations and Challenges):
a) तकनीकी ज्ञान की कमी:
कई नागरिकों और अधिकारियों को डिजिटल हस्ताक्षर या प्रमाणपत्रों की तकनीकी जानकारी नहीं होती, जिससे कार्य में बाधा आती है।
b) 65B प्रमाणपत्र की जटिलता:
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को स्वीकार्य बनाने के लिए 65B प्रमाणपत्र आवश्यक है, जिसकी अनुपस्थिति में कई मामलों में साक्ष्य को अस्वीकार कर दिया जाता है।
c) फर्जी डिजिटल साक्ष्य:
डिजिटल तकनीक के माध्यम से साक्ष्य में छेड़छाड़ की संभावना बनी रहती है, जिसके लिए प्रभावी फॉरेंसिक व्यवस्था आवश्यक है।
उपसंहार (Conclusion):
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ने डिजिटल दस्तावेजों और डिजिटल हस्ताक्षरों को वैधानिक दर्जा देकर भारतीय विधिक प्रणाली में एक क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। इसने व्यापार, प्रशासन और न्यायिक प्रणाली को डिजिटल रूप में सशक्त किया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में किए गए संशोधन इस परिवर्तन को पूर्णता प्रदान करते हैं।
निष्कर्षतः, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर अब भारतीय विधि में पूर्णत: मान्य और सशक्त साक्ष्य के रूप में स्थापित हो चुके हैं। यह न केवल समय और संसाधनों की बचत करता है, बल्कि डिजिटल इंडिया की परिकल्पना को भी साकार करता है। किंतु इसकी प्रभावशीलता तकनीकी जागरूकता, प्रशिक्षण, और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने वाली प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है।