भारत में शरणार्थियों की स्थिति और उनके अधिकारों का कानूनी विश्लेषण :
प्रस्तावना:
शरणार्थी (Refugee) वह व्यक्ति होता है जो युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक उत्पीड़न, जातीय संघर्ष या मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में शरण लेता है। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में दशकों से शरणार्थियों को शरण देने की परंपरा रही है — चाहे वह तिब्बती हों, बांग्लादेशी, श्रीलंकाई तमिल, या अफगान नागरिक।
भारत में शरणार्थियों की स्थिति अत्यंत जटिल है क्योंकि भारत में आज तक कोई विशेष “शरणार्थी कानून” (Refugee Law) नहीं है। शरणार्थियों को मौजूदा प्रशासनिक नीतियों और कुछ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर संरक्षण प्राप्त होता है, लेकिन उनकी स्थिति कानूनी दृष्टिकोण से अस्थिर और अनिश्चित मानी जाती है।
भारत में शरणार्थियों की स्थिति का कानूनी विश्लेषण:
1. शरणार्थी के रूप में मान्यता (Recognition as Refugee):
भारत ने 1951 के शरणार्थी सम्मेलन (Refugee Convention) और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। अतः भारत अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से शरणार्थियों को मान्यता देने के लिए बाध्य नहीं है।
हालांकि, भारत ने “अविवादित रूप से” गैर-वापसी (non-refoulement) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सिद्धांतों को अपनाया है, जिसका अर्थ है कि किसी भी शरणार्थी को उस देश में वापस नहीं भेजा जाएगा, जहाँ उसे जान का खतरा हो।
2. मौजूदा कानूनी ढांचे के अंतर्गत शरणार्थियों की स्थिति:
भारत में शरणार्थियों की स्थिति को निम्नलिखित सामान्य कानूनों के अंतर्गत देखा जाता है:
- विदेशी अधिनियम, 1946 (The Foreigners Act, 1946):
इस अधिनियम के अनुसार, “विदेशी” वह व्यक्ति है जो भारतीय नागरिक नहीं है। इसमें शरणार्थियों और अन्य विदेशियों में कोई अंतर नहीं किया गया है। अतः शरणार्थियों को भी विदेशी समझा जाता है और उनके खिलाफ हिरासत या निष्कासन (deportation) की कार्यवाही की जा सकती है। - विदेशी पंजीकरण आदेश, 1956 (Registration of Foreigners Order):
इसके अंतर्गत सभी विदेशियों को प्रवेश के बाद एक निर्धारित समयावधि के भीतर पंजीकरण करना होता है। यह प्रक्रिया शरणार्थियों पर भी लागू होती है। - नागरिकता अधिनियम, 1955:
इस अधिनियम के तहत भारत की नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया निश्चित की गई है। कुछ शरणार्थियों (जैसे तिब्बती या अफगान हिंदू-सिख) को विशेषाधिकार स्वरूप भारत में नागरिकता दी गई है। - पासपोर्ट अधिनियम, 1967:
किसी भी विदेशी व्यक्ति के पास भारत में रहने के लिए वैध पासपोर्ट होना अनिवार्य है। शरणार्थियों के पास अक्सर वैध दस्तावेज नहीं होते, जिससे वे इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधी माने जा सकते हैं।
3. भारत में विभिन्न समुदायों के शरणार्थियों की स्थिति:
भारत में शरणार्थियों की स्थिति उनके उत्पत्ति देश, धार्मिक पहचान, और राजनीतिक संदर्भ के आधार पर अलग-अलग है:
- तिब्बती शरणार्थी:
भारत सरकार ने इन्हें व्यवस्थित रूप से पहचान दी है। इन्हें आवास, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। धर्मशाला में तिब्बती सरकार-इन-एक्साइल भी कार्यरत है। - श्रीलंकाई तमिल:
इन्हें तमिलनाडु में शरणार्थी शिविरों में रखा गया है और राज्य सरकार द्वारा सहायता दी जाती है, लेकिन इन्हें नागरिकता या वोट देने का अधिकार नहीं है। - बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान:
इन्हें अवैध प्रवासी मानते हुए सरकार अक्सर निष्कासन की कार्यवाही करती है। सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने की अनुमति दी है। - अफगान हिंदू-सिख और पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यक:
इन्हें विशेष रूप से नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) के अंतर्गत राहत दी गई है।
4. UNHCR की भूमिका:
भारत में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) का कार्यालय कार्यरत है, जो गैर-मान्यता प्राप्त शरणार्थियों (विशेषकर अफ्रीका, म्यांमार और अफगानिस्तान से आए शरणार्थी) को पहचान पत्र (Refugee Card), कानूनी सहायता, और सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराता है।
UNHCR की भूमिका तटस्थ, मानवीय, और गैर-सरकारी है, और यह भारत सरकार की अनुमति से कार्य करता है।
5. शरणार्थियों के अधिकार:
भारत में कोई विशिष्ट शरणार्थी अधिकार अधिनियम न होने के बावजूद, कुछ मौलिक अधिकार भारतीय संविधान के तहत शरणार्थियों को भी मिलते हैं, जैसे:
- अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी के समय कानूनी प्रक्रिया का अधिकार
हालांकि ये अधिकार केवल नागरिकों तक सीमित नहीं हैं, फिर भी इन्हें न्यायिक निर्णयों के माध्यम से शरणार्थियों पर लागू किया गया है।
उदाहरण:
- National Human Rights Commission v. State of Arunachal Pradesh (1996) — सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शरणार्थियों को भी जीवन के मौलिक अधिकार का संरक्षण मिलेगा।
6. भारत में शरणार्थी कानून की आवश्यकता:
भारत में शरणार्थी कानून की अनुपस्थिति कई समस्याओं को जन्म देती है:
- राजनीतिक निर्णय आधारित नीति: सरकारें शरणार्थियों के साथ भिन्न व्यवहार करती हैं, जैसे धार्मिक या भौगोलिक आधार पर भेदभाव।
- कानूनी सुरक्षा की कमी: शरणार्थियों को हिरासत में लिया जा सकता है या निर्वासित किया जा सकता है, क्योंकि उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होते।
- मानवाधिकार उल्लंघन: शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सेवाओं में असमानता बनी रहती है।
इसलिए अनेक मानवाधिकार संगठनों और विशेषज्ञों ने भारत में “एक व्यापक शरणार्थी कानून” बनाने की सिफारिश की है।
निष्कर्ष:
भारत में शरणार्थियों की स्थिति मानवीय दृष्टिकोण से स्वागतपूर्ण रही है, किंतु कानूनी दृष्टिकोण से अनिश्चित और असंरक्षित है। एक स्थायी, धर्म-निरपेक्ष और पारदर्शी “राष्ट्रीय शरणार्थी कानून” का अभाव भारत को बार-बार अंतर्राष्ट्रीय और आंतरिक आलोचनाओं का सामना करने को मजबूर करता है।
समय की आवश्यकता है कि भारत:
- UNHCR के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय शरणार्थी नीति बनाए,
- गैर-मान्यता प्राप्त शरणार्थियों को भी मानवीय आधार पर अधिकार दे,
- और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समझौतों के अनुरूप एक विशेष शरणार्थी कानून लाए जो शरणार्थियों के जीवन, सम्मान और गरिमा की रक्षा कर सके।