“पॉक्सो अधिनियम, 2012: बाल यौन शोषण के विरुद्ध भारत की सख्त विधिक प्रतिक्रिया”
🔹 प्रस्तावना (Introduction)
बच्चों का यौन शोषण भारतीय समाज की एक कड़वी सच्चाई है, जो लंबे समय तक उपेक्षित रहा। विभिन्न अध्ययन और रिपोर्ट यह दर्शाते हैं कि बड़ी संख्या में बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार होते हैं, किंतु कानूनी सुरक्षा की स्पष्ट व्यवस्था नहीं होने के कारण उनके लिए न्याय प्राप्त करना कठिन था। इसी गंभीर परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने “प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेज एक्ट, 2012” अर्थात् पॉक्सो अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012) पारित किया। यह अधिनियम बच्चों के विरुद्ध होने वाले यौन अपराधों से उनकी सुरक्षा हेतु एक विशेष और सख्त कानून है।
🔹 अधिनियम की आवश्यकता और उद्देश्य
1. यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
2. बच्चों के प्रति संवेदनशील, संरक्षित और गोपनीय न्यायिक प्रक्रिया प्रदान करना।
3. अपराधियों को कड़ी सज़ा और दंड के प्रावधानों द्वारा न्यायिक प्रतिरोध देना।
4. बच्चों को यौन अपराधों की रिपोर्टिंग हेतु प्रोत्साहित करना, बिना डर के।
🔹 अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
✅ 1. परिभाषा और दायरा
- यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के सभी व्यक्तियों को “बालक/बालिका” मानता है।
- अधिनियम लैंगिक तटस्थ (Gender-Neutral) है, अर्थात् पीड़ित लड़का, लड़की या ट्रांसजेंडर कोई भी हो सकता है।
✅ 2. अपराधों का वर्गीकरण
POCSO अधिनियम बच्चों पर होने वाले यौन अपराधों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटता है:
श्रेणी | विवरण |
---|---|
धारा 3-5 | बलात्कार जैसे गंभीर यौन उत्पीड़न (Penetrative Sexual Assault) |
धारा 7-9 | गैर-प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) |
धारा 11-13 | यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न हेतु उत्प्रेरण (Sexual Harassment & Abetment) |
धारा 14 | बाल पोर्नोग्राफी का निर्माण, प्रचार, और संग्रह |
✅ 3. विशेष न्यायालय की स्थापना (Special Courts)
- प्रत्येक जिले में विशेष पॉक्सो अदालत की स्थापना की जाती है जो इस अधिनियम के तहत मामलों का त्वरित निपटारा करती है।
- अधिनियम में मुकदमे के एक वर्ष के भीतर समाप्त करने की बात कही गई है।
✅ 4. प्रक्रिया की गोपनीयता और संवेदनशीलता
- बच्चे की पहचान, नाम, पता, स्कूल आदि को गोपनीय रखा जाना अनिवार्य है।
- बयान दर्ज करते समय महिला पुलिस अधिकारी की उपस्थिति, माता-पिता की उपस्थिति, और वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी गई है।
✅ 5. दंड के कठोर प्रावधान
- अपराध की प्रकृति के अनुसार 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।
- 2019 के संशोधन में कुछ मामलों में मृत्युदंड (death penalty) का भी प्रावधान जोड़ा गया।
🔹 2019 का संशोधन (Amendment of 2019):
POCSO अधिनियम को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए 2019 में संशोधन किया गया, जिसमें:
- बलात्कार के मामलों में मृत्युदंड की संभावना जोड़ी गई।
- बाल अश्लीलता (Child Pornography) को एक विशिष्ट अपराध माना गया।
- तेजाब हमलों को भी यौन अपराध के दायरे में शामिल किया गया।
🔹 महत्त्वपूर्ण न्यायिक निर्णय
🔸 State of Maharashtra v. Bandu @ Daulat (2013)
न्यायालय ने कहा कि यदि पीड़ित बालक की गवाही स्पष्ट और विश्वसनीय हो, तो बिना मेडिकल साक्ष्य के भी अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है।
🔸 Alakh Alok Srivastava v. Union of India (2018)
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे पॉक्सो अदालतें स्थापित करें और बाल पीड़ितों की सहायता हेतु विशेष काउंसलिंग की व्यवस्था करें।
🔹 आलोचनाएं और चुनौतियाँ
- कम रिपोर्टिंग: समाज में यौन अपराधों की रिपोर्टिंग को अभी भी कलंक समझा जाता है।
- झूठे मामले: कई बार बदले की भावना से झूठे केस दर्ज किए जाते हैं।
- प्रशिक्षण की कमी: पुलिस व न्यायपालिका के कुछ सदस्य बच्चों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं।
- धीमी न्याय प्रक्रिया: कई मामलों में समयसीमा के बावजूद मुकदमे लटक जाते हैं।
🔹 सुझाव
- बाल न्याय से जुड़े अधिकारियों को नियमित संवेदनशीलता प्रशिक्षण दिया जाए।
- स्कूलों और संस्थानों में यौन शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
- झूठे मुकदमों की जाँच के लिए निष्पक्ष समिति की व्यवस्था हो।
🔹 निष्कर्ष (Conclusion):
पॉक्सो अधिनियम, 2012 बच्चों के यौन उत्पीड़न के विरुद्ध भारत की एक क्रांतिकारी और कठोर कानूनी पहल है। यह अधिनियम बच्चों की गरिमा, आत्मसम्मान और भविष्य की रक्षा करता है। यद्यपि इसकी प्रभावशीलता तभी सिद्ध होगी जब कानून का सख्ती से पालन, समाज में जागरूकता, और न्यायपालिका की संवेदनशीलता एक साथ कार्य करें। बच्चों की सुरक्षा केवल कानून से नहीं, समाज की सामूहिक नैतिक प्रतिबद्धता से सुनिश्चित की जा सकती है।