शीर्षक: क्या भारत को व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा कानून की सख्त ज़रूरत है?: डिजिटल युग में निजता की सुरक्षा की चुनौती
🔷 प्रस्तावना:
21वीं सदी की डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को सुविधाजनक तो बनाया है, लेकिन इसके साथ व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा एक गंभीर चिंता बन गई है। सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स, मोबाइल ऐप्स, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवाओं और सरकारी पोर्टलों के माध्यम से हम प्रतिदिन हजारों बार अपना व्यक्तिगत डेटा (Personal Data) साझा करते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है — क्या भारत को एक ठोस और सख्त व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून की आवश्यकता है? इस प्रश्न का उत्तर “हाँ” है, और इस लेख में हम समझेंगे कि क्यों।
🔷 व्यक्तिगत डेटा क्या है?
व्यक्तिगत डेटा वह जानकारी है जिससे किसी व्यक्ति की पहचान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से की जा सकती है। उदाहरण:
- नाम, पता, मोबाइल नंबर, ईमेल
- आधार संख्या, पैन कार्ड
- स्वास्थ्य जानकारी
- बैंकिंग विवरण
- ब्राउज़िंग हिस्ट्री, लोकेशन डेटा, बायोमेट्रिक्स
इस तरह की जानकारी यदि गलत हाथों में चली जाए, तो न केवल निजता भंग होती है, बल्कि धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग, वित्तीय हानि, और सामाजिक कलंक जैसी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
🔷 भारत में वर्तमान कानूनी स्थिति:
भारत में अभी तक कोई विशेष, समर्पित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून लागू नहीं हुआ है। हालाँकि कुछ कानूनों में संबंधित प्रावधान मौजूद हैं:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act):
इसकी धारा 43A और धारा 72A में डेटा सुरक्षा और गोपनीयता उल्लंघन पर दंड का प्रावधान है, परंतु यह सीमित और अप्रभावी है। - भारतीय संविधान – अनुच्छेद 21:
सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy v. Union of India (2017) में निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया, लेकिन इसका विधायी रूप अभी स्पष्ट नहीं है। - डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDP Act):
अगस्त 2023 में संसद द्वारा पारित यह अधिनियम भारत का पहला व्यापक डेटा संरक्षण कानून है, लेकिन इसे भी कमजोर और अधूरा बताया गया है — जैसे कि इसमें डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न हैं, सरकारी एजेंसियों को व्यापक छूट दी गई है।
🔷 क्यों आवश्यक है एक सख्त डेटा सुरक्षा कानून?
- निजता की रक्षा:
डेटा चोरी, निगरानी और ऑनलाइन प्रोफाइलिंग से नागरिकों की व्यक्तिगत आज़ादी और आत्मसम्मान को खतरा है। - तेजी से बढ़ते साइबर अपराध:
डेटा लीक, फिशिंग, पहचान की चोरी, हैकिंग जैसी घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। बिना कानून के इन अपराधों की रोकथाम कठिन है। - विश्वसनीय डिजिटल अर्थव्यवस्था:
यदि नागरिकों को भरोसा हो कि उनका डेटा सुरक्षित है, तो वे अधिक आत्मविश्वास से ऑनलाइन लेन-देन करेंगे, जिससे डिजिटल इंडिया को बल मिलेगा। - निजी कंपनियों पर नियंत्रण:
बड़ी टेक कंपनियाँ यूजर्स का डेटा विज्ञापन और व्यापारिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करती हैं। यदि उनके पास पारदर्शिता और सहमति की बाध्यता न हो तो यह शोषण में बदल सकता है। - वैश्विक अनुपालन और व्यापार:
यूरोप में GDPR (General Data Protection Regulation) जैसी सख्त नीति है। यदि भारत को वैश्विक स्तर पर डिजिटल सेवाएं देना है तो उसे समान स्तर के कानून की ज़रूरत है।
🔷 DPDP Act, 2023 की सीमाएँ और आलोचना:
हालाँकि यह कानून एक कदम आगे है, लेकिन इसमें कई गंभीर कमियाँ हैं:
- सरकारी एजेंसियों को छूट:
राज्यहित और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कारणों से सरकार को डेटा तक असीमित पहुंच दी गई है। - स्वतंत्र नियामक की कमी:
डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड का गठन सरकार द्वारा किया जाएगा, जिससे उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। - कम पारदर्शिता:
डेटा उल्लंघन की सूचना देने की अनिवार्यता अस्पष्ट है, जिससे नागरिकों को अपनी जानकारी के दुरुपयोग की जानकारी नहीं मिल पाती। - कम सज़ा और जुर्माना:
कंपनियों को जुर्माने के डर के बिना ही डेटा बेचने या लीक करने की छूट जैसी स्थिति बन सकती है।
🔷 अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति:
- यूरोप: GDPR ने डेटा सुरक्षा को एक मौलिक अधिकार माना है। यहाँ डेटा प्रोसेसिंग के लिए स्पष्ट सहमति, पारदर्शिता, और यूजर अधिकार अनिवार्य हैं।
- अमेरिका: क्षेत्र विशेष कानून हैं जैसे HIPAA (स्वास्थ्य डेटा), CCPA (कैलिफोर्निया कानून)।
- चीन: अपने नागरिकों के डेटा को देश के बाहर ट्रांसफर करने पर कड़ा नियंत्रण है।
भारत को वैश्विक मानकों के अनुरूप अपने कानूनों को मज़बूत बनाना होगा ताकि उसकी डिजिटल संप्रभुता और नागरिक अधिकार दोनों सुरक्षित रह सकें।
🔷 समाधान और सुझाव:
- स्वतंत्र डेटा संरक्षण प्राधिकरण का गठन
जो न केवल निगरानी रखे बल्कि नागरिकों की शिकायतों का निपटारा निष्पक्ष रूप से करे। - सरकार को भी जवाबदेह बनाना चाहिए
कोई भी एजेंसी “राष्ट्रीय सुरक्षा” के नाम पर मनमानी न कर सके, इसके लिए न्यायिक निगरानी आवश्यक है। - डेटा प्रोसेसिंग में यूजर की सहमति अनिवार्य हो
“स्पष्ट, सूचित और सीमित” consent प्रणाली अपनाई जाए। - डेटा का स्थानीयकरण
विदेशी कंपनियों को नागरिकों का डेटा भारत में ही रखने की बाध्यता होनी चाहिए। - डेटा साक्षरता अभियान
आम लोगों को यह सिखाया जाए कि वे कब, कहां और कैसे अपनी व्यक्तिगत जानकारी साझा करें।
🔷 निष्कर्ष:
डिजिटल युग में डेटा ही नया “धन” है और जो इस धन की रक्षा नहीं कर सकता, वह अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकता। भारत को सख्त, पारदर्शी, और स्वतंत्रता-सम्मत डेटा सुरक्षा कानून की सख्त आवश्यकता है। यदि समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो नागरिकों की निजता, लोकतंत्र की मूल भावना और डिजिटल अर्थव्यवस्था तीनों पर संकट आ सकता है।
इसलिए भारत को GDPR जैसे वैश्विक मानकों पर आधारित, मजबूत और निष्पक्ष डेटा सुरक्षा कानून लागू करना चाहिए — तभी “डिजिटल इंडिया” वास्तव में सुरक्षित और सशक्त भारत बन पाएगा।