शीर्षक: डिजिटल इंडिया में सूचना का अधिकार (RTI): पारदर्शिता, जवाबदेही और चुनौतियों की नई दिशा
प्रस्तावना:
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (Right to Information Act, 2005) भारत में नागरिकों को सरकार और सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का संवैधानिक औजार प्रदान करता है। यह कानून शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने का एक सशक्त माध्यम रहा है। वहीं, 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए “डिजिटल इंडिया” अभियान ने देश को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा। ऐसे में यह प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि डिजिटल युग में RTI अधिनियम कितना प्रभावी साबित हो रहा है?
डिजिटल इंडिया का प्रभाव RTI पर:
डिजिटल इंडिया ने RTI की प्रभावशीलता को कई तरह से बढ़ाया है:
- सूचना की सहज उपलब्धता:
कई सरकारी वेबसाइटों और पोर्टलों पर अब suo motu disclosure (स्वतः प्रकाशन) के अंतर्गत सूचनाएं पहले से ही उपलब्ध कराई जा रही हैं, जिससे RTI आवेदन की आवश्यकता घट गई है। - ऑनलाइन RTI फाइलिंग:
अब नागरिक केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों के विभागों में ऑनलाइन RTI आवेदन दायर कर सकते हैं। इससे ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले नागरिक भी सुविधा से जानकारी माँग सकते हैं। - डिजिटलीकृत रिकॉर्ड्स:
सरकारी दस्तावेजों, फाइलों और सूचनाओं का डिजिटलीकरण तेजी से बढ़ा है जिससे सूचना प्रदान करने में विलंब और बहानेबाजी की संभावनाएं कम हुई हैं। - ई-गवर्नेंस और पारदर्शिता:
डिजिटल इंडिया ने सरकारी कामकाज को ई-गवर्नेंस के माध्यम से पारदर्शी बनाया है। ई-टेंडरिंग, ई-पेमेंट, ई-ऑक्शन जैसी व्यवस्थाओं ने भ्रष्टाचार में कटौती की है, और अब नागरिक इनका डेटा आसानी से देख सकते हैं।
प्रभावशीलता की चुनौतियाँ:
हालांकि डिजिटल इंडिया ने RTI को मजबूत किया है, फिर भी कई बाधाएं बनी हुई हैं:
- डिजिटल साक्षरता की कमी:
ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत से लोग कंप्यूटर, मोबाइल या इंटरनेट चलाना नहीं जानते, जिससे ऑनलाइन RTI फाइल करना उनके लिए मुश्किल है। - तकनीकी असमानता:
हर राज्य या विभाग की वेबसाइट पर समान गुणवत्ता या उपलब्धता नहीं है। कई विभागों की वेबसाइटें अपडेट नहीं होतीं या सूचनाएं अधूरी होती हैं। - RTI पोर्टलों की तकनीकी समस्याएं:
कई बार ऑनलाइन RTI पोर्टल तकनीकी खराबी से जूझते हैं, जिससे आवेदन दायर करने में असुविधा होती है। - सूचना अधिकारियों की उदासीनता:
डिजिटलीकरण के बावजूद, बहुत से PIOs (Public Information Officers) जानबूझकर सूचनाएं रोकते हैं या अधूरी जानकारी देते हैं। - डेटा गोपनीयता बनाम पारदर्शिता:
डिजिटल युग में सूचना साझा करने के साथ-साथ नागरिकों की गोपनीयता का मुद्दा भी सामने आता है। कभी-कभी जानकारी देने से सुरक्षा या निजता का प्रश्न उठता है।
न्यायपालिका की भूमिका:
भारतीय न्यायपालिका ने सूचना का अधिकार को Article 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का एक अविभाज्य अंग माना है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने RTI को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से और अधिक सशक्त बनाने पर जोर दिया है। हाल ही में न्यायपालिका ने सरकारी वेबसाइटों पर proactive disclosure की आवश्यकता को दोहराया है।
डिजिटल युग में सुधार की संभावनाएँ:
- एकीकृत राष्ट्रीय RTI पोर्टल:
सभी राज्यों और विभागों को एक ही पोर्टल पर लाकर नागरिकों को एक स्थान से RTI आवेदन करने की सुविधा देनी चाहिए। - स्थानीय भाषा में सूचना:
वेबसाइटों पर जानकारी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाए, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग लाभान्वित हो सकें। - AI और बिग डेटा का उपयोग:
सूचना को अधिक सहज और खोज योग्य बनाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जा सकता है। - डिजिटल साक्षरता अभियान:
ग्राम पंचायत स्तर तक डिजिटल साक्षरता और RTI जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
निष्कर्ष:
डिजिटल इंडिया ने RTI अधिनियम को और अधिक प्रभावी और सहज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज नागरिक कहीं से भी ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता की मांग कर सकते हैं। परंतु, तकनीकी अवसंरचना, डिजिटल साक्षरता और प्रशासनिक इच्छाशक्ति में कमी जैसी बाधाओं को दूर किए बिना RTI की पूर्ण प्रभावशीलता संभव नहीं है। यदि इन चुनौतियों को योजनाबद्ध तरीके से हल किया जाए तो RTI अधिनियम डिजिटल भारत में नागरिकों को सशक्त बनाने का एक बेहद शक्तिशाली उपकरण बन सकता है।