शीर्षक: “गिरीश देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना आयोग: निजी जानकारी बनाम सार्वजनिक हित – RTI कानून की संवेदनशील संतुलन रेखा”
भूमिका:
भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) ने नागरिकों को शासन के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक सशक्त उपकरण प्रदान किया है। यह कानून नागरिकों को सरकारी कार्यप्रणालियों, निर्णयों, और सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग की जानकारी पाने का संवैधानिक अधिकार देता है। किंतु इसी कानून में यह भी सुनिश्चित किया गया है कि निजता का अधिकार (Right to Privacy) भी सुरक्षित रहे। इस संतुलन का गहन परीक्षण गिरीश रमेशचंद्र देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना आयोग व अन्य (2013) मामले में हुआ। इस निर्णय ने RTI के दायरे में आने वाली व्यक्तिगत जानकारी की सीमाओं को स्पष्ट किया और सार्वजनिक हित की कसौटी को केंद्र में रखा।
1. मामले की पृष्ठभूमि:
इस मामले में याचिकाकर्ता गिरीश देशपांडे ने एक सरकारी कर्मचारी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (Annual Confidential Report – ACR), वेतन विवरण, वेतन वृद्धि, प्रमोशन, स्थानांतरण, और अनुशासनात्मक कार्रवाई से संबंधित विवरण RTI के अंतर्गत मांगे थे।
संबंधित लोक सूचना अधिकारी (PIO) और सूचना आयोग (CIC) ने इन जानकारियों को देने से इंकार कर दिया क्योंकि यह जानकारी व्यक्तिगत प्रकृति की थी और उसे साझा करना व्यक्ति की निजता का उल्लंघन होता।
2. कानूनी प्रश्न:
प्रमुख प्रश्न यह था कि—
क्या एक सरकारी कर्मचारी की सेवा से संबंधित निजी जानकारी, RTI अधिनियम के अंतर्गत सार्वजनिक की जा सकती है, यदि वह सार्वजनिक हित में नहीं है?
3. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2013):
न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा:
- ACR, प्रमोशन, वेतन और अनुशासनात्मक कार्रवाई से संबंधित जानकारी निजी जानकारी (Personal Information) के अंतर्गत आती है।
- ऐसी जानकारी देना RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) का उल्लंघन होगा, जब तक कि स्पष्ट सार्वजनिक हित न हो।
- यदि यह जानकारी सार्वजनिक करने से किसी तीसरे व्यक्ति की निजता का उल्लंघन होता है, तो उसे नहीं दिया जा सकता, जब तक कि वह जनहित में अत्यंत आवश्यक न हो।
4. RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) का विश्लेषण:
यह धारा कहती है कि ऐसी जानकारी जिसे देने से—
- किसी व्यक्ति की निजता का अतिक्रमण हो,
- और जिसका कोई सार्वजनिक हित से सीधा संबंध न हो,
— वह जानकारी RTI अधिनियम के अंतर्गत नहीं दी जाएगी।
सार्वजनिक हित को ही एकमात्र आधार माना गया है, जिससे निजता पर अतिक्रमण किया जा सकता है।
5. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
- “हर सरकारी कर्मचारी भी एक व्यक्ति है, जिसकी निजता को संरक्षित किया जाना चाहिए।”
- सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति सरकारी सेवा में है, उसे अपनी व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- यदि कोई सूचना मांगी गई है जो किसी अनियमितता, भ्रष्टाचार या सार्वजनिक धन के दुरुपयोग से संबंधित है, तब ही वह RTI में दी जा सकती है।
6. प्रभाव और विधिक महत्व:
- यह निर्णय RTI अधिनियम और निजता के अधिकार के बीच एक संतुलन स्थापित करता है।
- इसने सरकारी कर्मचारियों को यह अधिकार दिया कि उनकी व्यक्तिगत जानकारी तब तक गोपनीय रहेगी, जब तक उसका कोई सार्वजनिक हित स्पष्ट न हो।
- यह निर्णय भविष्य के RTI मामलों में न्यायिक दृष्टांत (judicial precedent) बन गया है।
7. आलोचना और बहस:
- कुछ RTI कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय की आलोचना की, यह कहते हुए कि इससे सरकारी पारदर्शिता में कमी आएगी।
- उनका तर्क था कि प्रमोशन, वेतन या अनुशासनात्मक कार्रवाई जैसी जानकारी को सार्वजनिक करने से लोकसेवा में जवाबदेही बढ़ सकती है।
- दूसरी ओर, निजता समर्थकों ने इस निर्णय का स्वागत किया और इसे निजता के मौलिक अधिकार की रक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना।
8. संबंधित निर्णय: पुट्टास्वामी केस (2017):
बाद में के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। इससे गिरीश देशपांडे मामले की वैधता और भी सशक्त हुई, क्योंकि अब निजता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।
निष्कर्ष:
गिरीश देशपांडे बनाम भारत संघ (2013) का निर्णय RTI कानून की सीमाओं को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट करता है कि RTI एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसकी सीमा वहीं तक है जहाँ तक वह किसी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन नहीं करता। यह निर्णय दर्शाता है कि “जनहित” और “निजता” के बीच संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है।
उपसंहार:
सूचना का अधिकार और निजता का अधिकार—दोनों लोकतंत्र के मूल स्तंभ हैं। गिरीश देशपांडे केस ने भारतीय न्याय प्रणाली को यह अवसर दिया कि वह दोनों के बीच की सीमारेखा को स्पष्ट रूप से परिभाषित करे। यह निर्णय आने वाले समय में सूचना मांगने और देने की प्रक्रिया में नैतिक संतुलन और संवैधानिक मार्गदर्शन का कार्य करता रहेगा।