शीर्षक: “RTI फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019): जब सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को पारदर्शिता के दायरे में लाने की सिफारिश की”
भूमिका:
भारत में लोकतंत्र की नींव पारदर्शिता, जवाबदेही और जन भागीदारी पर आधारित है। इन मूल्यों को सुदृढ़ करने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) एक ऐतिहासिक कदम रहा है। RTI कानून के माध्यम से नागरिकों को सरकार और सार्वजनिक निकायों से जानकारी प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ। लेकिन एक लंबे समय से यह बहस का विषय रहा है कि क्या राजनीतिक दलों को भी RTI के अंतर्गत लाया जाना चाहिए? इसी संदर्भ में RTI फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019) का मामला अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को भी पारदर्शिता के दायरे में लाने की सिफारिश की।
1. पृष्ठभूमि: सूचना का अधिकार और राजनीतिक दलों की भूमिका
RTI अधिनियम का उद्देश्य जनता को यह अधिकार देना है कि वे सरकार और उसके अंगों से जानकारी प्राप्त कर सकें। लेकिन राजनीतिक दल, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सबसे शक्तिशाली स्तंभ हैं, RTI के तहत सार्वजनिक प्राधिकरणों के अंतर्गत नहीं माने जाते थे। यह स्थिति पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के सिद्धांतों के विरुद्ध मानी जा रही थी।
राजनीतिक दलों को सरकार से भूमि, भवन, कर छूट, चुनाव आयोग से मान्यता, और सार्वजनिक चंदे जैसी सुविधाएं मिलती हैं। अतः यह प्रश्न उठता रहा कि क्या वे “Public Authority” की परिभाषा में आते हैं?
2. मामला: RTI Foundation बनाम Union of India (2019)
इस जनहित याचिका में RTI फाउंडेशन ने मांग की कि सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के धारा 2(h) के अंतर्गत “Public Authority” घोषित किया जाए। याचिकाकर्ता का तर्क था कि राजनीतिक दल:
- जनता के धन का उपयोग करते हैं,
- चुनाव प्रक्रिया में निर्णायक भूमिका निभाते हैं,
- सरकारी संसाधनों का लाभ उठाते हैं,
इसलिए वे जनता के प्रति जवाबदेह हैं।
3. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का ऐतिहासिक निर्णय (2013):
इससे पूर्व 3 जून 2013 को केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने यह ऐतिहासिक निर्णय दिया था कि 6 राष्ट्रीय राजनीतिक दल (कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी) RTI के अंतर्गत आते हैं। लेकिन राजनीतिक दलों ने इस आदेश का पालन नहीं किया।
इसके बाद सरकार ने RTI अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव रखा जिससे राजनीतिक दलों को RTI के दायरे से बाहर किया जा सके। इससे जनचर्चा और असंतोष और अधिक बढ़ गया।
4. सुप्रीम कोर्ट का रुख और सिफारिश (2019):
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई करते हुए माना कि:
- राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली और फंडिंग में पारदर्शिता की अत्यधिक आवश्यकता है।
- चुनावों के दौरान धन का स्रोत, उम्मीदवारों का चयन, आंतरिक लोकतंत्र — इन सब पहलुओं पर निगरानी होनी चाहिए।
- नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि किस दल को कितनी फंडिंग मिली और कहां खर्च हुई।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को प्रत्यक्ष रूप से RTI के अंतर्गत नहीं लाया, बल्कि संसद से सिफारिश की कि वह एक उचित कानूनी ढांचा बनाकर राजनीतिक दलों को पारदर्शिता और जवाबदेही के दायरे में लाए।
5. न्यायालय की टिप्पणी और निर्देश:
- न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाने से लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।
- सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि वे राजनीतिक दलों की फंडिंग और कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के उपाय करें।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को जवाबदेही से मुक्त नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वे जनता के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रभावित करते हैं।
6. मामले का प्रभाव और प्रतिक्रिया:
- राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया और इसे अपनी स्वतंत्रता पर आघात बताया।
- RTI कार्यकर्ता, नागरिक संगठन और पारदर्शिता समर्थक संस्थाएँ इस निर्णय को एक सकारात्मक दिशा में कदम मानते हैं।
- सरकार ने अभी तक कोई ठोस कानूनी प्रावधान नहीं बनाए हैं जिससे राजनीतिक दलों को RTI के अधीन लाया जा सके।
7. आलोचना और चुनौतियाँ:
- राजनीतिक दलों द्वारा सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों की अवहेलना लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है।
- जवाबदेही से बचने के लिए चंदा प्राप्त करने में गुप्तता, इलेक्टोरल बॉन्ड्स की गोपनीयता, और आंतरिक लोकतंत्र की कमी को लेकर आलोचना होती रही है।
- यह तर्क दिया जाता है कि जब सामान्य सरकारी कर्मचारी RTI में जवाबदेह हो सकते हैं, तो नेताओं और दलों को क्यों छूट दी जाए?
8. निष्कर्ष:
RTI फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019) का मामला भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने कोई बाध्यकारी आदेश नहीं दिया, लेकिन उसकी सिफारिशें यह स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए राजनीतिक दलों को भी जवाबदेह और पारदर्शी बनाना आवश्यक है।
उपसंहार:
भारत में यदि लोकतंत्र को वास्तविक अर्थों में “जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा” बनाना है, तो राजनीतिक दलों को भी RTI के दायरे में लाना आवश्यक है। RTI फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019) केस से एक सशक्त संदेश मिला कि लोकतंत्र में कोई भी संस्था पारदर्शिता और उत्तरदायित्व से ऊपर नहीं हो सकती। अब यह संसद, सरकार और नागरिक समाज की जिम्मेदारी है कि वे मिलकर ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली में स्पष्टता और ईमानदारी सुनिश्चित हो सके।