वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) के प्रकारः न्यायिक प्रक्रिया के वैकल्पिक साधनों की व्याख्या
(Alternative Dispute Resolution ke Prakār: Nyāyik Prakriyā ke Vaikalpik Sādhano ki Vyākhyā)
प्रस्तावना:
आज के समय में न्यायिक प्रणाली पर अत्यधिक बोझ और मामलों के निपटारे में देरी के कारण वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) प्रणाली का महत्व तेजी से बढ़ा है। ADR एक ऐसा माध्यम है, जो पक्षों को बिना लंबी न्यायिक प्रक्रिया के, कम खर्च और समय में विवाद सुलझाने का अवसर प्रदान करता है। यह प्रक्रिया आपसी सहमति, निष्पक्षता और संवाद पर आधारित होती है।
ADR का अर्थ और उद्देश्य:
वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) का अर्थ है – ऐसे विधिक उपाय या प्रक्रिया, जो परंपरागत अदालतों के बाहर विवादों को सुलझाने के लिए अपनाए जाते हैं। इसका उद्देश्य:
- न्याय तक सुलभ पहुँच प्रदान करना
- समय और खर्च की बचत
- प्रक्रिया की गोपनीयता बनाए रखना
- पक्षों के संबंधों को बिगड़ने से बचाना
- न्यायिक व्यवस्था पर दबाव कम करना
ADR के प्रमुख प्रकार:
1. मध्यस्थता (Arbitration):
यह एक अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया है जिसमें विवाद को एक तटस्थ व्यक्ति (मध्यस्थ) द्वारा तय किया जाता है।
विशेषताएँ:
- मध्यस्थ का निर्णय (Award) बाध्यकारी होता है।
- यह प्रक्रिया गोपनीय होती है।
- इसे Arbitration and Conciliation Act, 1996 द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- वाणिज्यिक विवादों में यह विशेष रूप से उपयोगी है।
2. सुलह (Conciliation):
यह मध्यस्थता से भिन्न होती है। इसमें एक तटस्थ व्यक्ति (सुलहकर्ता) पक्षों को समझौते तक पहुँचने में सहायता करता है, लेकिन कोई बाध्यकारी निर्णय नहीं देता।
विशेषताएँ:
- स्वैच्छिक और लचीली प्रक्रिया
- आपसी समझ और सहमति पर आधारित
- सुलह समझौता न्यायालय द्वारा लागू किया जा सकता है
- कानूनन यह प्रक्रिया भी 1996 के अधिनियम द्वारा शासित होती है।
3. मध्यस्थता/मैडिएशन (Mediation):
यह ADR की सबसे लोकप्रिय और सौम्य विधि है जिसमें एक तटस्थ व्यक्ति (मध्यस्थ) संवाद को सुगम बनाता है लेकिन निर्णय नहीं देता।
विशेषताएँ:
- इसमें पक्षकार स्वयं निर्णय लेते हैं
- प्रक्रिया अनौपचारिक, गोपनीय और सहयोगात्मक होती है
- परिवारिक, उपभोक्ता, श्रम और दीवानी मामलों में उपयोगी
- सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा Mediation Center की स्थापना
4. लोक अदालतें (Lok Adalats):
लोक अदालतें विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित की गई हैं। यह जनता की अदालतें हैं जो मामलों का शीघ्र और मुफ्त निपटारा करती हैं।
विशेषताएँ:
- निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है
- अपील का प्रावधान नहीं होता
- बिना कोर्ट फीस के निपटारा
- छोटे-बड़े सभी दीवानी एवं आपराधिक समझौतावादी मामलों में उपयोगी
5. न्याय पंचायतें (Nyaya Panchayats):
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय पंचायतें एक पारंपरिक ADR प्रणाली रही हैं।
विशेषताएँ:
- स्थानीय स्तर पर विवाद समाधान
- सामाजिक सामंजस्य बनाए रखने में सहायक
- पंचायत राज अधिनियम के तहत गठित
- त्वरित और सुलभ न्याय का साधन
ADR के लाभ:
- समय की बचत: कोर्ट की तुलना में विवाद जल्द सुलझते हैं।
- कम लागत: न्यायिक खर्चों की अपेक्षा कम खर्चीली प्रक्रिया
- गोपनीयता: विवाद का विवरण सार्वजनिक नहीं होता
- संबंधों की रक्षा: पक्षों के बीच मैत्रीपूर्ण समाधान
- न्यायपालिका पर बोझ कम करना: कोर्ट के लंबित मामलों में कमी आती है।
भारत में ADR की विधिक स्थिति:
ADR को भारत के अनुच्छेद 39A में समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता की भावना से प्रोत्साहन मिला है।
CPC (Order X, Rule 1A) में अदालतों को वैकल्पिक विवाद समाधान विधियों की ओर मार्गदर्शन करने की शक्ति दी गई है।
Arbitration & Conciliation Act, 1996 भारत में अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार ADR की प्रक्रिया को सक्षम बनाता है।
महत्वपूर्ण निर्णय:
- Afcons Infrastructure Ltd. बनाम Cherian Varkey Construction (2010): सुप्रीम कोर्ट ने ADR के पक्ष में अदालतों को मार्गदर्शन करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
- Salem Advocate Bar Association बनाम यूनियन ऑफ इंडिया: कोर्ट ने ADR को न्यायिक प्रणाली में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करने की बात कही।
निष्कर्ष:
वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) न केवल न्याय का एक विकल्प है, बल्कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह न्याय तक पहुँच का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। पारंपरिक न्यायिक प्रणाली के समानांतर यह प्रणाली न्याय के नए आयाम खोलती है – जहां सहमति, समझ और संवाद से विवाद समाप्त होते हैं। भारत में ADR प्रणाली का भविष्य उज्ज्वल है और इसे जनसामान्य तक पहुँचाने के निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।