शीर्षक: बाल श्रम कानूनः भारत की स्थिति और इसके उन्मूलन की चुनौतियाँ
परिचय
बाल श्रम (Child Labour) भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या है। गरीबी, अशिक्षा और असमानता की जड़ में यह समस्या गहराई तक पैठी हुई है। बाल श्रम का अर्थ है – 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से किसी भी प्रकार के श्रम कार्य में संलग्न होना, जो उनके शिक्षा, स्वास्थ्य और मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न करता है। भारत में इस समस्या से निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं और विभिन्न योजनाओं को लागू किया गया है।
भारत में बाल श्रम की वर्तमान स्थिति
भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 1 करोड़ से अधिक बच्चे श्रम कार्यों में लगे हुए पाए गए। इनमें अधिकांश बच्चे घरेलू काम, ढाबों, चाय की दुकानों, फैक्ट्रियों, ईंट-भट्ठों, खदानों और कृषि कार्यों में संलग्न हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या अधिक गंभीर है क्योंकि वहाँ बच्चों को कम मजदूरी में आसानी से काम पर रखा जा सकता है।
बाल श्रम के प्रमुख कारण
- गरीबी और बेरोजगारी – माता-पिता की आय सीमित होने पर बच्चे परिवार की आय बढ़ाने का साधन बन जाते हैं।
- अशिक्षा और जागरूकता की कमी – शिक्षा के महत्व को न समझने की वजह से बच्चे जल्दी काम पर लग जाते हैं।
- सस्ते श्रमिक की मांग – फैक्ट्रियों और दुकानों में मालिक बाल श्रमिकों को कम मजदूरी में काम कराते हैं।
- बच्चों की तस्करी और मजबूरी – कई बार बच्चों को जबरन श्रम कार्यों में धकेल दिया जाता है।
- कानूनों का कमजोर अनुपालन – बाल श्रम कानूनों के बावजूद उनका सख्ती से पालन नहीं होता।
बाल श्रम से संबंधित प्रमुख कानून
1. बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986
- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक उद्योगों और फैक्ट्रियों में काम पर रखने पर प्रतिबंध लगाता है।
- सुरक्षित उद्योगों में बच्चों के कार्य घंटे और परिस्थितियों को नियंत्रित करता है।
2. बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016
- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सभी प्रकार के रोजगार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया।
- 14-18 वर्ष के किशोरों को खतरनाक उद्योगों में काम करने से रोका गया।
- पारिवारिक व्यवसायों में बच्चों के काम करने की अनुमति केवल स्कूल समय के बाद दी गई।
3. बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005
- बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) का गठन।
4. किशोर न्याय (देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- बाल श्रम, शोषण, तस्करी आदि से संबंधित मामलों में सख्त प्रावधान।
5. संविधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 24 – 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी खतरनाक उद्योग में काम पर लगाने पर रोक।
- अनुच्छेद 39(e) और (f) – बच्चों को मजबूरी और शोषण से बचाने का निर्देश।
- अनुच्छेद 21A – 6-14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
न्यायपालिका की भूमिका
भारतीय न्यायपालिका ने बाल श्रम के खिलाफ कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं:
- एम.सी. मेहता बनाम राज्य तमिलनाडु (1996) – सुप्रीम कोर्ट ने बाल श्रमिकों को पुनर्वास के लिए विशेष कोष बनाने का आदेश दिया।
- बंदुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ (1984) – बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम को रोकने के लिए सरकार को दिशा-निर्देश दिए।
बाल श्रम उन्मूलन के लिए सरकारी योजनाएँ
- राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) – बाल श्रमिकों की पहचान और पुनर्वास के लिए विशेष स्कूलों का संचालन।
- मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal) – बच्चों को स्कूल लाने और शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए।
- सर्व शिक्षा अभियान – 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा।
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना – शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से बाल श्रम को रोकना।
भारत में बाल श्रम की स्थिति की चुनौतियाँ
- ग्रामीण क्षेत्रों में कानून लागू करने में कठिनाई।
- सस्ती मजदूरी के लिए बाल श्रम की मांग।
- गरीबी और अशिक्षा की गहरी जड़ें।
- बाल श्रमिकों की सटीक संख्या का अभाव।
- बाल श्रमिकों के पुनर्वास और पुनःशिक्षा में समस्याएँ।
समाधान के उपाय
- कानूनों का कड़ा अनुपालन और दोषियों के खिलाफ कठोर दंड।
- बच्चों के लिए मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी।
- परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए योजनाएं।
- जनजागरूकता अभियान ताकि लोग बाल श्रम को सामाजिक अपराध समझें।
- NGO और स्वयंसेवी संगठनों की सक्रिय भागीदारी।
- बाल श्रम से जुड़े बच्चों का पुनर्वास और कौशल विकास।
निष्कर्ष
बाल श्रम समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए एक गंभीर बाधा है। बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और संशोधन 2016 ने कानूनी रूप से इसे रोकने का प्रयास किया है, परंतु केवल कानून पर्याप्त नहीं हैं। जब तक गरीबी उन्मूलन, शिक्षा का विस्तार, सामाजिक जागरूकता और सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक बाल श्रम की समस्या को समाप्त करना कठिन होगा।
भारत को बाल श्रम-मुक्त राष्ट्र बनाने के लिए सरकार, समाज, न्यायपालिका और नागरिकों को सामूहिक प्रयास करने होंगे ताकि हर बच्चा शिक्षा, स्वास्थ्य और एक उज्ज्वल भविष्य का अधिकार पा सके।