व्हाट्सएप चैट्स का साक्ष्य के रूप में प्रयोगः दिल्ली उच्च न्यायालय ने सख्त प्रमाणन की आवश्यकता दोहराई
विस्तृत लेख:
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि व्हाट्सएप चैट्स को साक्ष्य के रूप में तभी स्वीकार किया जा सकता है जब उन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उचित प्रमाणन (certificate under Section 65B) के साथ प्रस्तुत किया गया हो। इस निर्णय ने डिजिटल साक्ष्यों की वैधता और उनके प्रमाणन की प्रक्रिया को लेकर न्यायिक मानकों को और अधिक सुस्पष्ट किया है।
🔍 प्रकरण की पृष्ठभूमि:
इस केस में याचिकाकर्ता ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष शिकायत दायर की थी जिसमें उन्होंने दस्तावेज़ों के अधूरे प्राप्त होने का दावा किया और व्हाट्सएप चैट्स के स्क्रीनशॉट को अपने दावे के समर्थन में प्रस्तुत किया।
हालांकि, निचली अदालत (जिला आयोग) ने याचिकाकर्ता की देर से लिखित बयान दाखिल करने की याचिका खारिज कर दी थी और इसके बाद राज्य आयोग ने भी उस आदेश को सही ठहराया।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उच्च न्यायालय ने भी उसकी याचिका को ठुकरा दिया।
⚖️ मुख्य कानूनी बिंदु:
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के अनुसार, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (जैसे कि व्हाट्सएप चैट्स) को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने के लिए उसका सत्यापन प्रमाणपत्र (Certificate of Authenticity) आवश्यक है।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल स्क्रीनशॉट प्रस्तुत करना पर्याप्त नहीं है – जब तक कि यह साबित न किया जाए कि यह स्क्रीनशॉट एक प्रामाणिक स्रोत से उत्पन्न हुआ है और किसी तकनीकी छेड़छाड़ से मुक्त है।
- कोर्ट ने कहा कि वह एक अपील की अदालत नहीं है, बल्कि केवल प्राकृतिक न्याय और अधिकार क्षेत्रीय मुद्दों पर ही समीक्षा कर सकती है।
🧑⚖️ न्यायालय का निष्कर्ष:
- बिना प्रमाणन के डिजिटल साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
- उपभोक्ता न्यायालयों में भी प्रमाणिकता और प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
- राज्य आयोग ने अपने पुनरीक्षण अधिकार का सही प्रयोग किया।
- न्यायालय केवल यह देखेगा कि क्या प्रक्रिया उचित रही, न कि सबूत की गुणवत्ता।
📌 महत्वपूर्ण प्रावधान:
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, धारा 65B – इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में मान्यता के लिए प्रमाणन अनिवार्य।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, धारा 38(2)(A) एवं 47B – प्रक्रिया और पुनरीक्षण के अधिकार की व्याख्या।
📚 निष्कर्ष:
यह निर्णय डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की स्वीकार्यता को लेकर न्यायालयों की कड़ी निगरानी और प्रमाणन प्रक्रिया की महत्ता को रेखांकित करता है। यह साफ संदेश देता है कि डिजिटल संवादों को तभी साक्ष्य माना जाएगा जब वे प्रमाणित रूप में प्रस्तुत किए जाएं। इससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और सटीकता को बल मिलेगा।