शीर्षक:
“पंजीकृत वसीयत की वैधता को चुनौती देना आसान नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 114 साक्ष्य अधिनियम के तहत विधिक अनुमान को पुनः पुष्टि की”
(Metpalli Lasum Bai बनाम Metapalli Muthaih | सुप्रीम कोर्ट | Civil Appeal No. 5922/2015 | निर्णय तिथि: 21 जुलाई 2025)
परिचय:
संपत्ति विवादों में वसीयत (Will) की वैधता अकसर विवाद का केंद्र बनती है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 114 के तहत पंजीकृत वसीयत के संबंध में वैधता का एक प्रारंभिक विधिक अनुमान (legal presumption of genuineness) स्वीकार किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने Metpalli Lasum Bai बनाम Metapalli Muthaih मामले में इस सिद्धांत को मजबूती से दोहराते हुए वसीयत की प्रामाणिकता को चुनौती देने वाले पक्षकार पर बोझ-ए-प्रमाण (burden of proof) का स्पष्ट निर्धारण किया।
मामले की पृष्ठभूमि:
- वादी (Lasum Bai) ने एक पंजीकृत वसीयत के आधार पर संपत्ति में अपने अधिकार का दावा किया।
- वसीयत को ट्रायल कोर्ट द्वारा विश्वसनीय और विधिवत सिद्ध माना गया था।
- प्रतिवादी (Muthaih) ने वसीयत की वैधता को चुनौती दी, लेकिन कोई संदेहास्पद परिस्थिति (suspicious circumstances) या ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां:
- पंजीकृत वसीयत का विधिक अनुमान:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि वसीयत पंजीकृत है और उसकी निष्पादन प्रक्रिया (execution) विश्वसनीय गवाहों और साक्ष्य द्वारा सिद्ध की गई है, तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत उसकी वैधता का अनुमान स्वतः लगता है। - बोझ-ए-प्रमाण का स्थानांतरण (Shifting of Burden):
जब ट्रायल कोर्ट पंजीकृत वसीयत को स्वीकार कर लेता है और निष्पादन के पर्याप्त प्रमाण मिल जाते हैं, तब वसीयत की वैधता को चुनौती देने वाले पक्ष पर यह बोझ आ जाता है कि वह संदेह उत्पन्न करे या गलत कार्यवाही दर्शाए। - वसीयत का संतुलित वितरण:
इस केस में वसीयत केवल वादी को ही नहीं, बल्कि प्रतिवादी को भी संपत्ति का हिस्सा देती है, जिससे वसीयत की निष्पक्षता और वास्तविकता और अधिक पुष्ट हो जाती है। - कोई संदेहास्पद परिस्थिति नहीं:
प्रतिवादी द्वारा न तो कोई षड्यंत्र, दबाव, धोखाधड़ी या मनोवैज्ञानिक प्रभाव (undue influence) सिद्ध किया गया, और न ही वसीयत की परिस्थितियों को संदेहास्पद सिद्ध किया गया।
सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष:
“In the absence of suspicious circumstances, and where the registered Will is duly proved and accepted by the trial court, the burden lies heavily on the objector to rebut the presumption of genuineness.”
➡️ न्यायालय ने वादी के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि वसीयत वास्तविक, निष्पक्ष और विधिवत सिद्ध है।
विधिक महत्व (Legal Significance):
- धारा 114 साक्ष्य अधिनियम का प्रयोग:
यह निर्णय पुनः स्पष्ट करता है कि पंजीकृत दस्तावेज़ों को तब तक वैध माना जाता है जब तक कि विपरीत पक्ष संदेह या झूठ को सिद्ध न करे। - संपत्ति विवादों में मार्गदर्शन:
यदि वसीयत संतुलित रूप से संपत्ति का वितरण करती है और उसका निष्पादन स्पष्ट रूप से प्रमाणित है, तो अदालतें उसे प्रामाणिक मानेंगी। - दूसरे पक्ष पर जिम्मेदारी:
वसीयत को केवल “मौखिक आरोपों” या “संशय” के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता; विरोधी पक्ष को ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करना होगा।
निष्कर्ष:
Metpalli Lasum Bai बनाम Metapalli Muthaih मामला भारतीय वसीयत कानून में पंजीकृत वसीयतों की कानूनी वैधता और उनकी चुनौती को लेकर एक निर्णायक उदाहरण बनकर सामने आया है। यह फैसला न केवल संपत्ति उत्तराधिकार से जुड़े विवादों में दिशा-निर्देश देता है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि कानून निष्पक्ष और स्पष्ट वसीयतों को संरक्षित करता है।