शीर्षक:
“मुकदमा बहाली में वकील की गलती का सहारा नहीं लिया जा सकता”: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का स्पष्ट निर्देश
[Smt. Shashi Gupta v. Narinder Kumar Sood, 2025 (Pb & Hr HC), I.CR-1370-2007]
परिचय:
भारतीय न्यायप्रणाली में जब कोई वादी अदालत में उपस्थित नहीं होता, तो मुकदमा अनुपस्थिति के कारण खारिज (Dismissed in Default) किया जा सकता है। ऐसे में यदि वादी मुकदमा पुनः बहाल (Restoration of Suit) कराना चाहता है, तो उसे विधिक समय-सीमा और उचित कारणों का पालन करना आवश्यक होता है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने Smt. Shashi Gupta v. Narinder Kumar Sood मामले में स्पष्ट किया कि केवल वकील की गलती को बहाली का आधार नहीं माना जा सकता।
मामले की पृष्ठभूमि:
मामले में याचिकाकर्ता शशि गुप्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि उसका पूर्व में अनुपस्थिति के कारण खारिज हुआ मुकदमा फिर से बहाल किया जाए। उसने तर्क दिया कि उसे अपने वकील द्वारा मुकदमे की तारीखों और कार्यवाही की जानकारी नहीं दी गई, इसलिए वह अदालत में उपस्थित नहीं हो सकी।
प्रमुख मुद्दे:
- क्या मुकदमे की बहाली केवल वकील की गलती के आधार पर की जा सकती है?
- क्या याचिकाकर्ता ने विधिक समय-सीमा में बहाली की अर्जी दी?
- भारतीय विधि में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए क्या नियम हैं?
अदालत के विचार एवं निर्णय:
- वादकारिणी की जिम्मेदारी:
कोर्ट ने दो टूक कहा कि “यह पक्षकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने मुकदमे की कार्यवाही पर नजर रखे।”
वादी यह नहीं कह सकती कि उसे वकील ने जानकारी नहीं दी, इसलिए वह मुकदमे में उपस्थित नहीं हुई। यह एक स्वतंत्र उत्तरदायित्व है, जिसे टाला नहीं जा सकता। - वकील पर दोष डालना अनुचित:
अदालत ने स्पष्ट किया कि पक्षकार को वकील की गलती का बहाना बनाकर मुकदमा बहाली की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह कहना कि वकील ने तारीख नहीं बताई, एक अपर्याप्त और अस्वीकार्य आधार है। - सीमित अवधि का पालन:
अदालत ने सीमा अधिनियम (Limitation Act), 1963 की अनुच्छेद 122 का हवाला देते हुए कहा कि“यदि कोई मुकदमा अनुपस्थिति के कारण खारिज हुआ हो, तो उसकी बहाली के लिए अधिकतम 30 दिनों के भीतर अर्जी दाखिल करनी होती है, और यह अवधि उसी दिन से शुरू होती है जिस दिन मुकदमा खारिज हुआ।”
इस प्रकरण में, याचिकाकर्ता ने इस 30-दिन की सीमा का पालन नहीं किया, जिससे उसकी बहाली की याचिका समयबद्ध नहीं रही। - कोई ठोस कारण नहीं:
अदालत ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता की ओर से कोई वैध और उचित कारण प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह दिखाया जा सके कि समय-सीमा का उल्लंघन क्यों हुआ।
न्यायालय का निष्कर्ष:
“मुकदमे की बहाली कोई स्वचालित अधिकार नहीं है। यह तभी संभव है जब न्यायालय को यह विश्वास हो जाए कि वादी ने न्यायालय की अवमानना नहीं की है और उसके पास अनुपस्थिति का पर्याप्त कारण है।”
अतः, अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:
- वादी की लापरवाही और समयसीमा का उल्लंघन बहाली की मांग को अस्वीकार करने के लिए पर्याप्त हैं।
- वकील की गलती को बहाली का वैध आधार नहीं माना जा सकता।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय उन वादकारियों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि केवल वकील के भरोसे मुकदमा नहीं छोड़ा जा सकता। मुकदमे की प्रगति की जिम्मेदारी पक्षकार की भी है और उसे नियमित रूप से अपने वकील से संपर्क बनाकर रखना चाहिए। यह फैसला प्रक्रियात्मक अनुशासन, समय की पाबंदी और व्यक्तिगत उत्तरदायित्व को पुनः स्थापित करता है।
निष्कर्ष:
Smt. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood का यह निर्णय भारतीय न्यायिक परिपाटी में यह दोहराता है कि मुकदमे की बहाली कोई स्वचालित प्रक्रिया नहीं, बल्कि वह पक्षकार की सजगता, जिम्मेदारी और समय के प्रति संवेदनशीलता पर आधारित होती है। अज्ञानता या वकील पर दोषारोपण, विधिक उत्तरदायित्व से मुक्ति नहीं दिला सकता।