अवसादग्रस्त विवाह, पर उकसावे का नहीं दोषः दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आत्महत्या के मामले में पत्नी और उसके भाइयों को बरी करने का निर्णय
(Shiv Shankar v. State (NCT of Delhi), Crl.A. 69 of 2021, निर्णय दिनांक: 10 जुलाई 2025)
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि एक असंतुष्ट या अवसादग्रस्त विवाह (Unhappy/Dejected Marriage) अपने आप में भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावे) के तहत अपराध नहीं बनाता जब तक कि कोई प्रत्यक्ष और निकट कारण (proximate cause) या उकसावे का तत्व (element of instigation) स्पष्ट रूप से सिद्ध न हो।
यह निर्णय न्यायमूर्ति स्वर्ण कंवर द्वारा दिया गया, जिसमें पति की आत्महत्या के मामले में पत्नी और उसके भाइयों की बरी (Acquittal) को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता, मृतक का भाई शिव शंकर, ने यह अपील दाखिल की थी कि पत्नी और उसके भाइयों ने मृतक को इस हद तक प्रताड़ित किया कि उसने आत्महत्या कर ली।
🔍 मामले के प्रमुख तथ्य:
- मृतक ने आत्महत्या कर ली और एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें कुछ पारिवारिक कलहों का उल्लेख था।
- सुसाइड नोट दिनांकहीन था, जिससे इसकी प्रामाणिकता और आत्महत्या के समय के साथ संबंध पर संदेह उत्पन्न हुआ।
- नोट में ऐसा कोई स्पष्ट विवरण नहीं था जिससे यह साबित हो सके कि पत्नी या उसके भाइयों ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया या उत्पीड़ित किया हो।
- याचिकाकर्ता पक्ष यह सिद्ध नहीं कर पाया कि मृतक को निरंतर मानसिक उत्पीड़न या अत्यधिक दबाव में रखा गया हो।
⚖️ दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य टिप्पणियां:
- “सिर्फ यह तथ्य कि विवाह सफल नहीं था, या पति-पत्नी के बीच तनाव थे, आत्महत्या के लिए उकसावे के अपराध का आधार नहीं बनते।”
- आत्महत्या नोट में ऐसा कोई निकट कारण (proximate cause) नहीं बताया गया, जिससे आरोपी पक्ष की जिम्मेदारी प्रत्यक्ष रूप से स्थापित हो सके।
- “यह एक दुखद और अवसादग्रस्त विवाह हो सकता है, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि आत्महत्या के लिए उकसाया गया था।”
📜 धारा 306, IPC की व्याख्या:
भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को आत्महत्या के लिए उकसाता है, तो वह दंडनीय अपराध है। किंतु, इसके लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि:
- आरोपी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाया हो,
- उस उकसावे और आत्महत्या के बीच सीधा संबंध हो,
- मानसिक उत्पीड़न इतना गंभीर हो कि पीड़ित को आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता न दिखे।
🏛️ न्यायालय का निष्कर्ष:
इस केस में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:
- आत्महत्या करने के पीछे जो भी कारण रहे हों, सिर्फ पारिवारिक असंतोष, बहसें या तनाव – उकसावे का कानूनी आधार नहीं बनाते।
- अभियोजन यह सिद्ध करने में असफल रहा कि आत्महत्या के लिए कोई कानूनी रूप से संज्ञेय उकसावा हुआ था।
- इसलिए, ट्रायल कोर्ट द्वारा पत्नी और उसके भाइयों को दोषमुक्त करार देना न्यायोचित था।
🔚 न्यायिक संदेश:
यह निर्णय एक बार फिर से न्यायपालिका के उस दृष्टिकोण को रेखांकित करता है कि आत्महत्या के मामलों में “उकसावे” को बहुत ही गंभीर और सटीक आधार पर सिद्ध करना अनिवार्य है। हर दुखद वैवाहिक संबंध कानूनन अपराध में परिवर्तित नहीं होता, जब तक कि उसमें स्पष्ट और प्रभावी उकसावे का तत्व मौजूद न हो।