⚖️ धारा 498A IPC के दुरुपयोग की रोकथाम हेतु सुप्रीम कोर्ट का समर्थन: पारिवारिक कल्याण समितियों (FWC) के गठन पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों को दी मंज़ूरी

⚖️ धारा 498A IPC के दुरुपयोग की रोकथाम हेतु सुप्रीम कोर्ट का समर्थन: पारिवारिक कल्याण समितियों (FWC) के गठन पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों को दी मंज़ूरी

🔍 भूमिका:

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A महिलाओं को वैवाहिक जीवन में उत्पीड़न और क्रूरता से सुरक्षा प्रदान करने का एक शक्तिशाली प्रावधान है। यह प्रावधान पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा किसी महिला के साथ किए गए मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न को दंडनीय बनाता है।
किन्तु वर्षों से न्यायपालिका और समाज के कुछ वर्गों द्वारा इस प्रावधान के दुरुपयोग की शिकायतें सामने आई हैं, जिसमें कई मामलों में इसे बदले की भावना या उत्पीड़न के औज़ार के रूप में प्रयोग किया गया।

इसी परिप्रेक्ष्य में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में ऐसे मामलों की प्रारंभिक जांच और न्यायसंगत समाधान के लिए Family Welfare Committee (FWC) के गठन के निर्देश दिए थे।
अब, सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 22 जुलाई 2025 को इन दिशा-निर्देशों का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया कि धारा 498A के न्यायिक संतुलन हेतु यह कदम आवश्यक और अनुचित गिरफ्तारी को रोकने के लिए उपयुक्त है।


⚖️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  • मुख्य बिंदु: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सुझाई गई FWC प्रणाली एक संवेदनशील, गैर-हस्तक्षेपकारी और त्वरित समाधान प्रणाली है जो 498A मामलों के प्रारंभिक जांच हेतु कारगर हो सकती है।
  • न्यायालय ने माना कि बहुत से मामले असल में आपसी विवादों या गलतफहमियों का परिणाम होते हैं और सीधा आपराधिक मुकदमा दर्ज करने से पहले एक तटस्थ समिति की जांच आवश्यक है।
  • FWC की भूमिका: FWC किसी भी प्राथमिकी या गिरफ्तारी से पहले मामले की तथ्यों की प्रारंभिक जांच करेगी और पुलिस या मजिस्ट्रेट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
  • इसका उद्देश्य है कि निर्दोष लोगों को फंसने से बचाया जा सके और साथ ही सही मामलों में पीड़िता को त्वरित न्याय मिल सके।

📜 इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश:

  1. प्रत्येक जनपद में एक Family Welfare Committee (FWC) का गठन किया जाए जिसमें स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता, NGO सदस्य या सेवानिवृत्त अधिकारी हों।
  2. 498A IPC से संबंधित शिकायतें सबसे पहले इस समिति को सौंपी जाएंगी।
  3. समिति 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट देगी।
  4. रिपोर्ट आने तक गिरफ्तारी नहीं होगी, सिवाय मामलों के जहां जीवन को सीधा खतरा हो।
  5. समिति की रिपोर्ट पुलिस और मजिस्ट्रेट के लिए सलाहकार (advisory) होगी।

🧑‍⚖️ न्यायिक संतुलन की आवश्यकता:

498A IPC दोधारी तलवार बन चुकी है—जहां एक ओर यह महिलाओं की सुरक्षा का अहम अस्त्र है, वहीं दूसरी ओर झूठे आरोपों के मामलों में न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग भी सामने आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि:

“कानून का उद्देश्य किसी निर्दोष को सज़ा दिलाना नहीं, बल्कि सही पीड़िता को न्याय दिलाना है। इसलिए 498A के मामलों में संतुलन आवश्यक है।”


📌 इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव:

  1. न्यायिक पारदर्शिता: FWC के हस्तक्षेप से पुलिस जांच पहले से अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष होगी।
  2. अनावश्यक गिरफ्तारी पर रोक: कई निर्दोष पति/रिश्तेदार प्रारंभिक गिरफ्तारी से बच सकेंगे।
  3. सुलह और पुनर्मिलन की संभावना: प्रारंभिक जांच के दौरान विवाद सुलझ भी सकता है।
  4. महिला सुरक्षा बनी रहेगी: वास्तविक पीड़िता को समिति और पुलिस दोनों से संरक्षण मिलेगा।
  5. कानूनी प्रक्रिया का गैर-दुरुपयोग रुकेगा।

📚 पृष्ठभूमि:

  • धारा 498A 1983 में भारतीय दंड संहिता में जोड़ी गई थी।
  • यह गैर-जमानती अपराध है जिसकी सज़ा 3 वर्ष तक की कैद और जुर्माना है।
  • वर्षों से इस कानून के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने Rajesh Sharma v. State of UP (2017) और Social Action Forum for Manav Adhikar (2018) जैसे कई मामलों में दिशा-निर्देश दिए हैं।

📝 निष्कर्ष:

498A IPC भारतीय महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण विधिक प्रावधान है, लेकिन इसके दुरुपयोग से न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के FWC मॉडल को समर्थन देना एक संतुलित, मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण है, जो न्याय के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द को भी बढ़ावा देगा।