जेंडर जस्टिस और समानता की दिशा में भारत की यात्रा

जेंडर जस्टिस और समानता की दिशा में भारत की यात्रा

प्रस्तावना :
जेंडर जस्टिस, अर्थात् लैंगिक न्याय, एक ऐसा सामाजिक-न्यायिक सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति के साथ उसके लिंग के आधार पर भेदभाव न किया जाए। यह महिलाओं, पुरुषों, ट्रांसजेंडर और LGBTQ+ समुदाय – सभी के लिए समान अवसर, सुरक्षा और सम्मान की मांग करता है। आधुनिक लोकतंत्र में जेंडर जस्टिस, मानवाधिकार और संवैधानिक नैतिकता का अनिवार्य अंग बन चुका है।


जेंडर जस्टिस का व्यापक अर्थ :
यह सिर्फ महिला अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस समग्र व्यवस्था की बात करता है जिसमें कोई भी व्यक्ति, उसके लिंग के कारण, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा या असमानता का शिकार न बने। इसका उद्देश्य केवल कानून बनाना नहीं, बल्कि सामाजिक मानसिकता को बदलना भी है।


भारत में जेंडर जस्टिस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
भारत में प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाओं की स्थिति में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। जहां एक ओर सीता, सावित्री, और झांसी की रानी जैसी महिलाओं ने साहस का परिचय दिया, वहीं दूसरी ओर बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा और दहेज जैसी प्रथाएं महिलाओं के शोषण का कारण बनीं।


भारत में जेंडर जस्टिस की संवैधानिक नींव :
भारत का संविधान जेंडर जस्टिस का मजबूत स्तंभ है।

  • अनुच्छेद 15(3) महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 42 – मातृत्व राहत और कार्य की न्यायसंगत व मानवीय दशाएं सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 243D व 243T – पंचायती राज और नगर निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण

जेंडर जस्टिस के लिए बने प्रमुख कानून :

  • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013
  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का संरक्षण अधिनियम, 2019

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय :

  1. विषाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ दिशानिर्देश
  2. शायरा बानो बनाम भारत सरकार (2017) – तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया गया
  3. नालसा बनाम भारत सरकार (2014) – ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को संविधान के तहत मान्यता
  4. सुप्रीम कोर्ट का धारा 377 पर निर्णय (2018) – समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाना

वर्तमान परिदृश्य और चुनौतियाँ :

  • घरेलू हिंसा के मामले
  • कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव
  • इंटरनेट और सोशल मीडिया पर लैंगिक उत्पीड़न
  • महिलाओं के खिलाफ ऑनलाइन दुष्प्रचार
  • ट्रांसजेंडर और LGBTQ+ समुदाय को सामाजिक अस्वीकार्यता

सकारात्मक पहल और सुझाव :

  • स्कूल स्तर पर लैंगिक समानता की शिक्षा
  • महिला सुरक्षा और सम्मान के लिए जागरूकता अभियान
  • सरकार द्वारा महिलाओं के लिए स्टार्टअप, उद्यमिता और आरक्षण योजनाएं
  • ट्रांसजेंडर और LGBTQ+ समुदाय के लिए समान अधिकार
  • पुरुषों के खिलाफ झूठे मामलों में न्यायिक संतुलन

निष्कर्ष :
जेंडर जस्टिस की प्राप्ति केवल कानूनों से संभव नहीं है, इसके लिए सामाजिक सोच में बदलाव आवश्यक है। जब तक हर व्यक्ति को, उसके लिंग की परवाह किए बिना, गरिमा और समान अवसर नहीं मिलते, तब तक लोकतंत्र अधूरा है। भारत की यह यात्रा अभी जारी है – और इसकी सफलता समाज के हर नागरिक की सहभागिता पर निर्भर करती है।