जेंडर जस्टिस: लैंगिक समानता की ओर एक निर्णायक कदम

जेंडर जस्टिस: लैंगिक समानता की ओर एक निर्णायक कदम

परिचय :
जेंडर जस्टिस (Gender Justice) का तात्पर्य है – समाज में सभी लिंगों (महिला, पुरुष, ट्रांसजेंडर आदि) को समान अधिकार, अवसर और गरिमा देना। यह केवल महिलाओं के अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य ऐसे सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी ढांचे को विकसित करना है जो किसी भी प्रकार के लैंगिक भेदभाव को समाप्त करे और न्यायसंगत वातावरण सुनिश्चित करे।


जेंडर जस्टिस की आवश्यकता :
भारत जैसे देश में, जहां पारंपरिक सामाजिक ढांचे में महिलाओं और अन्य लिंगों के साथ अक्सर दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया है, वहां जेंडर जस्टिस का महत्व और भी अधिक हो जाता है। बाल विवाह, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, शिक्षा और रोजगार में असमानता – ये सभी लैंगिक अन्याय के उदाहरण हैं, जिनका उन्मूलन आवश्यक है।


संवैधानिक प्रावधान :
भारतीय संविधान में जेंडर जस्टिस को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान हैं:

  1. अनुच्छेद 14 – कानून के समक्ष समानता
  2. अनुच्छेद 15(1) व (3) – राज्य द्वारा लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक तथा महिलाओं के पक्ष में विशेष प्रावधान की अनुमति
  3. अनुच्छेद 16 – रोजगार में समान अवसर
  4. अनुच्छेद 39(a), 39(d) – पुरुषों और महिलाओं को समान आजीविका और वेतन

महत्वपूर्ण विधियां और न्यायिक निर्णय :

  1. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 – महिलाओं की सुरक्षा के लिए
  2. दहेज निषेध अधिनियम, 1961
  3. यौन उत्पीड़न (कार्यस्थल पर) अधिनियम, 2013
  4. सुप्रीम कोर्ट का विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) निर्णय – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम
  5. सुप्रीम कोर्ट का नालसा बनाम भारत सरकार (2014) – ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ‘थर्ड जेंडर’ के रूप में मान्यता

वर्तमान चुनौतियाँ :

  • पितृसत्तात्मक मानसिकता
  • शिक्षा और जागरूकता की कमी
  • कानूनी उपायों का ठीक से पालन न होना
  • कार्यस्थल और राजनीति में महिला प्रतिनिधित्व की कमी
  • ट्रांसजेंडर और LGBTQ+ समुदाय के लिए सामाजिक अस्वीकार्यता

समाधान और सुधार के उपाय :

  • लैंगिक संवेदनशील शिक्षा का प्रसार
  • महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कौशल विकास कार्यक्रम
  • कठोर कानूनी प्रवर्तन और त्वरित न्याय
  • कार्यस्थलों पर लैंगिक समानता के लिए नीतियों का क्रियान्वयन
  • मीडिया और सिनेमा के माध्यम से सकारात्मक चित्रण

निष्कर्ष :
जेंडर जस्टिस केवल एक सामाजिक आदर्श नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक, मानवाधिकार आधारित और समावेशी विकास की अनिवार्यता है। जब तक सभी लिंगों को समान अवसर, सम्मान और अधिकार नहीं मिलते, तब तक सामाजिक न्याय अधूरा रहेगा। यह समय है कि हम अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाएं और जेंडर जस्टिस को समाज के हर स्तर पर लागू करें।