शीर्षक:
“विकासशील देशों में सांस्कृतिक मूल्यों की उपेक्षा: वैश्वीकरण, मानवाधिकार और पश्चिमी आधिपत्य का प्रभाव”
(Neglect of Cultural Values in Developing Countries: Impact of Globalization, Human Rights, and Western Hegemony)
प्रस्तावना:
विकासशील देशों के सामाजिक ढांचे और सांस्कृतिक परंपराएँ सदियों पुरानी और गहराई से जुड़ी हुई हैं। ये मूल्य जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं—परिवार, धर्म, शिक्षा, नीति और न्याय तक। लेकिन आधुनिक काल में जब मानवाधिकार, लोकतंत्र और वैश्वीकरण की अवधारणाएं पश्चिम से आयात होकर विकासशील देशों में लागू की जा रही हैं, तब यह चिंता गंभीर रूप से उठी है कि इन वैश्विक अवधारणाओं ने स्थानीय सांस्कृतिक मूल्यों की अनदेखी की है। यह लेख विकासशील देशों में सांस्कृतिक मूल्यों की उपेक्षा, इसके कारणों, प्रभावों और समाधान पर गहन विचार प्रस्तुत करता है।
1. सांस्कृतिक मूल्य क्या हैं? (What are Cultural Values?)
सांस्कृतिक मूल्य किसी भी समाज की वह नैतिक, पारिवारिक, धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती हैं। जैसे:
- भारत में परिवार और गुरु का सम्मान,
- अफ्रीकी समाजों में सामूहिकता और बुजुर्गों का सम्मान,
- अरब देशों में इस्लामिक शरीया आधारित जीवन पद्धति आदि।
2. वैश्वीकरण और सांस्कृतिक समरूपीकरण (Globalization and Cultural Homogenization)
- वैश्वीकरण ने पूंजीवाद, उपभोक्तावाद और पश्चिमी जीवनशैली को पूरे विश्व में फैला दिया है।
- इसके परिणामस्वरूप स्थानीय भाषाएं, पोशाक, खानपान, रीति-रिवाज और पारंपरिक ज्ञान धीरे-धीरे हाशिए पर चले गए हैं।
- मल्टीनेशनल कंपनियां और वैश्विक मीडिया (जैसे Netflix, Disney, आदि) पश्चिमी सांस्कृतिक मूल्यों को “मानक” के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
3. मानवाधिकार और पश्चिमी मॉडल (Human Rights and Western Model)
- आधुनिक मानवाधिकार व्यवस्था जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और लैंगिक समानता को प्रायः पश्चिमी मानदंडों के अनुसार व्याख्यायित किया जाता है।
- इससे पारंपरिक समाजों में स्थापित संरचनाएं जैसे संयुक्त परिवार, धार्मिक अनुशासन, और सामाजिक कर्तव्य आधारित व्यवस्था पर प्रश्न उठते हैं।
- उदाहरण:
- भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बढ़ती व्याख्या ने पारिवारिक नियंत्रण को “अधिकारों के उल्लंघन” के रूप में प्रस्तुत किया।
- इस्लामिक देशों में धार्मिक नियमों की आलोचना पश्चिमी “सेक्युलर” दृष्टिकोण से होती है।
4. विकासशील देशों में सांस्कृतिक उपेक्षा के कारण (Causes of Cultural Neglect in Developing Nations)
(क) औपनिवेशिक विरासत:
- पश्चिमी शिक्षा प्रणाली और प्रशासनिक संरचनाएं, औपनिवेशिक युग में थोपे गए ढांचे हैं जो स्थानीय संस्कृति से अलग थे।
- स्वतंत्रता के बाद भी इन व्यवस्थाओं को ही “प्रगतिशील” मान लिया गया।
(ख) अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का दबाव:
- IMF, World Bank, WTO और UN जैसे संस्थान अक्सर नीतिगत शर्तों के माध्यम से विकासशील देशों को पश्चिमी मॉडल अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
- शिक्षा, न्याय, स्वास्थ्य, और प्रशासन में पश्चिमी मानकों को प्राथमिकता दी जाती है।
(ग) शहरीकरण और आधुनिकता का आकर्षण:
- शहरों में पश्चिमी जीवनशैली का बढ़ता प्रभाव ग्रामीण और पारंपरिक सांस्कृतिक मूल्यों को कमजोर करता है।
- युवा पीढ़ी पारंपरिक जीवन पद्धति को पिछड़ा और अव्यवस्थित मानने लगती है।
5. सांस्कृतिक मूल्यों की उपेक्षा के दुष्परिणाम (Consequences of Cultural Neglect)
- पहचान का संकट: नई पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से कटती जा रही है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान धुंधली हो रही है।
- पारिवारिक संरचनाओं का विघटन: पश्चिमी व्यक्तिवाद ने संयुक्त परिवारों को तोड़कर एकल परिवारों को बढ़ावा दिया।
- धार्मिक और नैतिक संकट: नैतिकता, कर्तव्य और समाज के प्रति जिम्मेदारी जैसे तत्व कमजोर हो गए हैं।
- सामाजिक तनाव और मानसिक समस्याएं: सांस्कृतिक संक्रमण से उत्पन्न अस्थिरता के कारण तनाव, अकेलापन और मानसिक बीमारियां बढ़ी हैं।
6. सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रयास (Efforts to Re-establish Cultural Values)
(क) शिक्षा प्रणाली में बदलाव:
- पाठ्यक्रमों में स्थानीय इतिहास, परंपराएं, लोककथाएं और दर्शन को शामिल करना चाहिए।
(ख) सांस्कृतिक संरक्षण की नीतियाँ:
- सरकारों को स्थानीय भाषाओं, त्योहारों, पहनावे और कला के संरक्षण के लिए नीतियाँ बनानी चाहिए।
- उदाहरण: भारत में ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’, ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव’ जैसे कार्यक्रम।
(ग) मीडिया का सकारात्मक उपयोग:
- फिल्में, सीरियल और सोशल मीडिया के माध्यम से सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ाई जा सकती है।
(घ) स्थानीय शासन प्रणाली को सशक्त बनाना:
- पंचायतें, ग्राम सभाएँ और पारंपरिक समुदाय आधारित संस्थाएं सांस्कृतिक मूल्य बनाए रखने में सहायक हो सकती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
विकासशील देशों की सांस्कृतिक विविधता ही उनकी असली पहचान और शक्ति है। परंतु, यदि इस सांस्कृतिक विरासत की उपेक्षा होती रही, तो आने वाली पीढ़ियाँ न तो पूरी तरह पश्चिमी बन पाएंगी, और न ही अपनी जड़ों से जुड़ी रहेंगी। आवश्यक है कि वैश्वीकरण और मानवाधिकार की व्याख्या सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करते हुए की जाए। तभी वास्तविक प्रगति संभव है, जो न केवल आर्थिक हो, बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय भी हो।