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“पति से शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार और संदेह करना ‘क्रूरता’ है: बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय तलाक के संदर्भ में”

शीर्षक:
“पति से शारीरिक संबंध बनाने से इन्कार और संदेह करना ‘क्रूरता’ है: बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय तलाक के संदर्भ में”
(Refusal To Establish Physical Relations And Alleging Adultery Is Cruelty: Bombay High Court On Grounds For Divorce)


प्रस्तावना:

भारतीय वैवाहिक कानूनों के अंतर्गत क्रूरता (Cruelty) को तलाक का एक प्रमुख आधार माना गया है। ‘क्रूरता’ केवल शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं, बल्कि मानसिक पीड़ा, अपमान, संदेह और वैवाहिक कर्तव्यों की उपेक्षा को भी इसमें शामिल किया गया है।
इसी संदर्भ में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 18 जुलाई 2024 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि:

“पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से बार-बार इन्कार करना और उस पर विवाहेत्तर संबंधों का संदेह करना, वैवाहिक जीवन में क्रूरता के अंतर्गत आता है और तलाक का वैध आधार बनता है।”

यह निर्णय भारतीय वैवाहिक संबंधों में नैतिक, भावनात्मक और दांपत्य कर्तव्यों के महत्व को रेखांकित करता है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • विवाह वर्ष: 2013
  • विवाहित जोड़े का पृथक्करण: दिसंबर 2014 से अलग रहने लगे
  • तलाक याचिका: 2015 में पति ने पुणे की पारिवारिक अदालत में क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर की थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
  • महिला की अपील: पारिवारिक अदालत के निर्णय को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, साथ ही महिला ने ₹1 लाख मासिक गुजारा भत्ता की मांग की।

न्यायालय की टिप्पणी और निर्णय:

खंडपीठ: न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले

मुख्य टिप्पणियाँ:

  1. पति के साथ संबंध बनाने से इन्कार = मानसिक क्रूरता:
    • पत्नी द्वारा बार-बार पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना करना वैवाहिक जिम्मेदारी की उपेक्षा है।
    • यह नकारात्मक व्यवहार वैवाहिक रिश्ते की नींव को कमजोर करता है और इसे मानसिक क्रूरता माना जाएगा।
  2. बेवफाई का झूठा संदेह = अपमान:
    • पत्नी द्वारा पति पर विवाहेत्तर संबंधों का बार-बार संदेह करना और उसे अन्य लोगों के सामने अपमानित करना भी मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।
  3. तलाक का ठोस आधार:
    • उपर्युक्त आचरण तलाक की धारा 13(1)(i-a) [Hindu Marriage Act, 1955] के अंतर्गत क्रूरता का स्पष्ट आधार बनता है।
  4. महिला की दलील खारिज:
    • महिला ने कहा कि वह अपने पति से अब भी प्यार करती है, इसलिए विवाह तोड़ना नहीं चाहती।
    • लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल प्रेम का दावा काफी नहीं, जब व्यवहार लगातार अपमानजनक और अस्वीकार्य हो।

विधिक संदर्भ:

🔸 हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a):

“यदि किसी पति या पत्नी द्वारा दूसरे के प्रति ऐसा आचरण किया गया हो जो मानसिक या शारीरिक रूप से क्रूरता का कारण बना हो, तो यह तलाक का वैध आधार होगा।”

🔸 महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख:

  1. V. Bhagat v. D. Bhagat, (1994) 1 SCC 337
    “मानसिक पीड़ा और निरंतर संदेह, मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आते हैं।”
  2. Samar Ghosh v. Jaya Ghosh, (2007) 4 SCC 511
    “शारीरिक संबंध से बार-बार इनकार, वैवाहिक जीवन की अस्वीकृति को दर्शाता है।”

सामाजिक और कानूनी महत्व:

  1. दांपत्य कर्तव्यों का महत्व:
    • पति-पत्नी दोनों पर यह नैतिक और वैवाहिक दायित्व होता है कि वे एक-दूसरे को भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक सहयोग दें।
  2. कानून में संतुलन की आवश्यकता:
    • यह निर्णय दिखाता है कि कानून सिर्फ महिला हितों को नहीं, बल्कि पुरुषों की पीड़ा और अधिकारों को भी गंभीरता से लेता है।
  3. कृत्रिम संबंध बनाए रखने की प्रवृत्ति की निंदा:
    • अदालत ने कहा कि अगर संबंधों में वास्तविक प्रेम और समर्पण नहीं बचा है और व्यवहार लगातार दर्दनाक है, तो केवल सामाजिक मर्यादा के कारण विवाह को घसीटना अनुचित है।

निष्कर्ष:

बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय वैवाहिक कानूनों के उस पक्ष को उजागर करता है जो अब तक अपेक्षाकृत कम चर्चित रहा है — पुरुषों के प्रति होने वाली मानसिक क्रूरता
यह निर्णय संदेश देता है कि विवाह केवल सामाजिक संस्था नहीं बल्कि एक जीवंत, परस्पर समर्पित रिश्ता है, और उसमें जब आदर, प्रेम, विश्वास और दांपत्य कर्तव्य नष्ट हो जाते हैं, तो तलाक एक आवश्यक विकल्प हो सकता है।