दिवालियापन और ऋण वसूली कानून: भारतीय परिप्रेक्ष्य में एक विस्तृत अध्ययन (Bankruptcy and Insolvency Law: A Comprehensive Study in Indian Context)
🔶 प्रस्तावना (Introduction)
दिवालियापन और ऋण वसूली कानून (Bankruptcy and Insolvency Law) आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ होते हैं, जो कर्जदार और लेनदार दोनों के अधिकारों एवं दायित्वों को संतुलित करते हैं। भारत में इस कानून की प्रमुख भूमिका कॉर्पोरेट दिवालियापन, व्यक्तिगत दिवालियापन, और ऋण समाधान की प्रक्रिया में देखी जाती है। यह कानून वित्तीय अनुशासन स्थापित करने और व्यवसायों को पुनर्गठित करने या नियंत्रित रूप से समाप्त करने में सहायक होता है।
🔶 भारत में दिवालियापन कानून का ऐतिहासिक विकास (Historical Development of Insolvency Laws in India)
- ब्रिटिश कालीन कानून – भारत में दिवालियापन कानून की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान हुई। प्रमुख कानून थे:
- Presidency-Towns Insolvency Act, 1909
- Provincial Insolvency Act, 1920
- आधुनिक युग में परिवर्तन
2016 में एक बड़ा बदलाव आया जब भारत सरकार ने दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 – IBC) लागू की। यह एक समग्र कानून था जो विभिन्न पुराने कानूनों को हटाकर एकीकृत प्रक्रिया लेकर आया।
🔶 प्रमुख अधिनियम: दिवाला और ऋण शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC, 2016)
मुख्य उद्देश्य:
- दिवालियापन और ऋण समाधान की प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाना।
- बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ऋण वसूली की शक्ति प्रदान करना।
- व्यवसायों के पुनर्गठन को बढ़ावा देना।
मुख्य प्रावधान:
- कॉर्पोरेट दिवालियापन प्रक्रिया (CIRP) – कंपनियों के लिए ऋण समाधान प्रक्रिया।
- व्यक्तिगत दिवालियापन और साझेदारी फर्म – व्यक्तियों और साझेदारी फर्मों के लिए प्रक्रिया निर्धारित।
- राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) – प्रमुख न्यायिक प्राधिकरण जो मामले सुनता है।
- सूचना उपयोगिता (Information Utility) – वित्तीय लेनदेन की डिजिटल जानकारी संग्रहण हेतु संस्था।
- इंसॉल्वेंसी प्रोफेशनल्स (IP) – समाधान प्रक्रिया को संचालित करने वाले अधिकृत व्यक्ति।
🔶 ऋण वसूली के अन्य कानून (Other Debt Recovery Laws)
1. ऋण वसूली न्यायाधिकरण अधिनियम, 1993 (RDDBFI Act, 1993)
- बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण वसूली हेतु DRT (Debt Recovery Tribunal) और DRAT (Debt Recovery Appellate Tribunal) की स्थापना।
2. सार्फेसी अधिनियम, 2002 (SARFAESI Act)
- बैंकों को बिना कोर्ट की अनुमति के संपत्ति को जब्त करने की शक्ति देता है यदि उधारकर्ता ऋण नहीं चुका पाता।
🔶 कॉर्पोरेट दिवालियापन की प्रक्रिया (Process of Corporate Insolvency under IBC)
- दावा प्रस्तुत करना – लेनदार द्वारा NCLT में दिवालियापन हेतु याचिका।
- CIRP की शुरुआत – NCLT द्वारा प्रक्रिया की स्वीकृति के बाद समाधान प्रक्रिया आरंभ।
- इंसॉल्वेंसी प्रोफेशनल की नियुक्ति – समाधान पेशेवर द्वारा लेनदारों की समिति (CoC) बनाई जाती है।
- समाधान योजना – कंपनी के पुनर्गठन या परिसमापन की योजना तैयार होती है।
- स्वीकृति या अस्वीकृति – योजना को लेनदारों की मंजूरी मिलने पर उसे लागू किया जाता है।
🔶 व्यक्तिगत दिवालियापन (Individual Insolvency)
- ऐसे व्यक्ति जो ऋण चुकाने में असमर्थ होते हैं उनके लिए समाधान योजना, परिसमापन, और ऋण से मुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित की जाती है।
- NCLT की बजाय Debt Recovery Tribunal (DRT) इसके लिए अधिकृत है।
🔶 IBC, 2016 की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of IBC, 2016)
- समयबद्ध समाधान (180/270 दिन)
- एकीकृत कानूनी ढांचा
- लेनदारों को प्राथमिकता
- समाधान को पुनर्गठन पर केंद्रित करना
- क्रॉस-बॉर्डर दिवालियापन का भी प्रावधान
🔶 चुनौतियाँ और आलोचना (Challenges and Criticism)
- प्रक्रिया में देरी – न्यायाधिकरणों पर बढ़ते दबाव के कारण समय-सीमा का उल्लंघन।
- स्वतंत्रता का प्रश्न – समाधान पेशेवरों की निष्पक्षता पर सवाल।
- क्रॉस-बॉर्डर केस की कमी – सीमापार दिवालियापन के स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव।
🔶 सुधारात्मक कदम (Recent Reforms and Amendments)
- IBC (Amendment) Act, 2021 – प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी योजना (Pre-packaged Insolvency Process – PIP) का प्रावधान।
- MSME क्षेत्र को दिवालियापन में विशेष राहत।
- समाधान प्रक्रिया को तेज करने हेतु डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का विकास।
🔶 निष्कर्ष (Conclusion)
भारत में दिवालियापन और ऋण वसूली कानून आर्थिक स्थायित्व और वित्तीय अनुशासन को बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण साधन बन चुका है। Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 ने इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। हालांकि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन सुधारात्मक कदमों के साथ यह प्रणाली भविष्य में अधिक पारदर्शी, समयबद्ध और कुशल हो सकती है।