सुप्रीम कोर्ट का महत्त्वपूर्ण निर्णय: NDPS अधिनियम की धारा 32B न्यूनतम सजा से अधिक दंड देने में ट्रायल कोर्ट की शक्ति को सीमित नहीं करती

शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट का महत्त्वपूर्ण निर्णय: NDPS अधिनियम की धारा 32B न्यूनतम सजा से अधिक दंड देने में ट्रायल कोर्ट की शक्ति को सीमित नहीं करती

लेख:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने NDPS अधिनियम, 1985 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) की व्याख्या करते हुए एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि धारा 32B, जो कि न्यूनतम सजा (10 वर्ष) से अधिक सजा देने के लिए विचार किए जाने वाले कारकों की सूची प्रदान करती है, ट्रायल कोर्ट की विवेकाधिकार शक्ति को बाधित नहीं करती। अर्थात्, यदि ट्रायल कोर्ट यह पाता है कि किसी मामले की गंभीरता न्यूनतम सजा से अधिक सजा की मांग करती है, तो वह बिना धारा 32B में उल्लिखित सभी कारकों की उपस्थिति के भी उच्चतर दंड दे सकता है।


🔍 धारा 32B की संक्षिप्त व्याख्या:

NDPS अधिनियम की धारा 32B एक विशेष प्रावधान है, जो न्यायालय को 10 वर्षों की न्यूनतम सजा से अधिक दंड देते समय कुछ कारकों पर विचार करने की अनुमति देता है। इसमें निम्नलिखित स्थितियों का उल्लेख किया गया है:

  • अपराध की साजिशपूर्वक या सुनियोजित योजना के अंतर्गत किया जाना,
  • संगठित अपराध गिरोह का हिस्सा होना,
  • अपराधी का पूर्व रिकॉर्ड,
  • नशीले पदार्थ की मात्रा,
  • सार्वजनिक हित पर प्रभाव,
  • बच्चों या युवाओं को प्रभावित करने की प्रवृत्ति,
  • अपराध की पुनरावृत्ति आदि।

यह धारा उन परिस्थितियों को परिभाषित करती है जो न्यूनतम से अधिक सजा देने के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं।


⚖️ मामले की पृष्ठभूमि:

इस निर्णय का प्रसंग एक ऐसे आपराधिक मामले से जुड़ा है, जिसमें आरोपी को वाणिज्यिक मात्रा में मादक पदार्थ रखने के लिए दोषी ठहराया गया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को 14 वर्षों की सजा दी थी — जो कि न्यूनतम 10 वर्ष से अधिक थी। आरोपी ने उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील करते हुए यह तर्क दिया कि चूंकि ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट रूप से धारा 32B में वर्णित कारकों को विश्लेषित नहीं किया, इसलिए न्यूनतम सजा से अधिक दंड देना अवैध और न्यायविरुद्ध है।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि धारा 32B एक निर्देशक (illustrative) प्रावधान है, न कि आवश्यक (mandatory)


📌 सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा:

धारा 32B केवल न्यायालय को दिशानिर्देश देती है, न कि सीमा रेखा खींचती है। यह ट्रायल कोर्ट को न्यूनतम सजा से अधिक सजा देने से नहीं रोकती, यदि तथ्य और परिस्थितियाँ ऐसा करने का औचित्य प्रस्तुत करती हैं।

न्यायालय इस बात पर स्वतंत्र है कि वह अपराध की प्रकृति, मात्रा, समाज पर प्रभाव और आरोपी की मानसिकता को देखते हुए दंड निर्धारित करे। धारा 32B में वर्णित कारकों का अभाव, न्यायालय को न्यूनतम सजा से अधिक दंड देने से नहीं रोक सकता।


🔎 इस निर्णय का कानूनी महत्व:

यह निर्णय NDPS मामलों में ट्रायल कोर्ट की सजा देने की स्वतंत्रता और विवेकाधिकार को बल प्रदान करता है। यह स्पष्ट करता है कि:

  • धारा 32B अनिवार्य नहीं बल्कि मार्गदर्शक है,
  • न्यायालय केवल उसी आधार पर सीमित नहीं रह सकता कि सूचीबद्ध कारक उपस्थित नहीं हैं,
  • यदि मामला समाज में गंभीर प्रभाव डालता है या यदि नशीले पदार्थ की मात्रा बहुत अधिक है, तो न्यायालय उच्चतर सजा दे सकता है।

🧠 समाज पर प्रभाव और न्यायिक सख्ती:

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि मादक पदार्थों के प्रसार से युवा वर्ग, समाज, और जनस्वास्थ्य को गहरी क्षति होती है। न्यायालयों की यह सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी है कि वे ऐसे मामलों में कठोर रुख अपनाएं ताकि इसका निवारक प्रभाव पड़ सके।

नशीली दवाओं से जुड़े अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि वे केवल कानून नहीं तोड़ते, बल्कि समाज की जड़ों को भी खोखला करते हैं।


📚 निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि NDPS अधिनियम की धारा 32B न्यायालय की सजा निर्धारण की शक्ति को सीमित नहीं करती। यह केवल मार्गदर्शक के रूप में है, न कि बाध्यकारी। ट्रायल कोर्ट को अपराध की प्रकृति, मात्रा, और प्रभाव को देखते हुए कठोर दंड देने की पूरी स्वतंत्रता है।

यह निर्णय NDPS अधिनियम के सख्त प्रवर्तन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण न्यायिक कदम है, जो यह सुनिश्चित करता है कि न्यायालय सामाजिक दायित्व और कानूनी विवेक के साथ कार्य करें और नशीले पदार्थों के अपराधों के प्रति किसी भी प्रकार की नरमी ना बरतें