मानव अधिकार और भारतीय विधिक प्रणाली: संवैधानिक प्रतिबद्धता से न्यायिक संरक्षण तक

मानव अधिकार और भारतीय विधिक प्रणाली: संवैधानिक प्रतिबद्धता से न्यायिक संरक्षण तक

परिचय
मानव अधिकार वे मौलिक अधिकार हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को केवल मनुष्य होने के नाते प्राप्त होते हैं। ये अधिकार जीवन, स्वतंत्रता, समानता, गरिमा और सुरक्षा जैसे मूलभूत पहलुओं को संरक्षित करते हैं। भारतीय विधिक प्रणाली ने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए न केवल संवैधानिक प्रावधानों को अपनाया है, बल्कि न्यायपालिका ने इन अधिकारों की व्याख्या और प्रवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाई है।

भारतीय संविधान में मानव अधिकारों की व्यवस्था
भारतीय संविधान में मानव अधिकारों को विशेष स्थान प्राप्त है। भाग-III में उल्लिखित मौलिक अधिकार जैसे –

  • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता
  • अनुच्छेद 19: अभिव्यक्ति, आंदोलन, संगठन की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  • अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता
    इन सभी प्रावधानों को मानव अधिकारों के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके अतिरिक्त, भाग-IV में वर्णित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भी सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की प्राप्ति हेतु महत्वपूर्ण हैं।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993
भारत में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 पारित किया गया। इसके तहत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य मानव अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना, रिपोर्ट प्रस्तुत करना और सरकार को सिफारिश देना है। राज्य स्तर पर भी राज्य मानव अधिकार आयोगों का गठन किया गया है।

न्यायपालिका की भूमिका
भारत की न्यायपालिका ने समय-समय पर मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए लोकहित याचिका (PIL) के माध्यम से कई ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं।

  • मनका गांधी बनाम भारत सरकार (1978): इस मामले में ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ की व्यापक व्याख्या की गई।
  • फ्रांसिस कोरेली बनाम दिल्ली प्रशासन (1981): न्यायालय ने माना कि जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने का अधिकार नहीं, बल्कि गरिमामय जीवन जीने का अधिकार भी है।
  • ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985): फुटपाथ पर रहने वालों को भी गरिमामय जीवन का अधिकार दिया गया।
  • विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997): कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से सुरक्षा हेतु दिशानिर्देश जारी किए गए।

अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार और भारत
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार घोषणापत्र, 1948 (UDHR) को स्वीकार किया है और कई अंतरराष्ट्रीय संधियों जैसे –

  • International Covenant on Civil and Political Rights (ICCPR)
  • International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights (ICESCR)
    पर हस्ताक्षर किए हैं। भारतीय न्यायालय इन अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों को संवैधानिक व्याख्या में उपयोग करते हैं।

मानव अधिकारों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  1. पुलिस और हिरासत में अत्याचार
  2. मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों का शोषण
  3. महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार
  4. जातीय भेदभाव और दलित उत्पीड़न
  5. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मानव अधिकार हनन
    इन सभी क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है और राज्य की संवेदनशील भूमिका अपेक्षित है।

निष्कर्ष
भारतीय विधिक प्रणाली मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक समर्पित ढांचा प्रदान करती है, जिसमें संविधान, संसद, न्यायपालिका और आयोगों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हालांकि, सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक उदासीनता जैसी चुनौतियाँ इस प्रणाली की प्रभावशीलता को बाधित करती हैं। अतः आवश्यक है कि नागरिक समाज, मीडिया और न्यायपालिका मिलकर मानव अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करें, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो।