⚖️ संपत्ति विवादों में समानांतर आपराधिक कार्यवाही पर रोक | पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय
प्रकरण: समान मुद्दों पर सिविल मुकदमे की लंबितता के बीच CrPC की धारा 145 के तहत कार्यवाही की वैधता | CRPC धारा 145, 146(1), 482 और ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 52
🔹 भूमिका:
भारतीय न्याय प्रणाली में सिविल और आपराधिक न्यायालयों की अपनी अलग-अलग भूमिकाएँ और अधिकार क्षेत्र हैं। किंतु कई बार एक ही विवाद — जैसे संपत्ति पर कब्जा या स्वामित्व — को लेकर दोनों तरह की अदालतों में कार्यवाहियाँ लंबित हो जाती हैं। यह स्थिति “फोरम शॉपिंग”, विरोधाभासी निर्णयों, और न्यायिक संसाधनों की बर्बादी को जन्म देती है। इसी पृष्ठभूमि में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि:
यदि किसी संपत्ति को लेकर टाइटल, कब्जा, या बिक्री विलेख की वैधता से संबंधित सिविल वाद लंबित है, तो उसी विवाद को लेकर CrPC की धारा 145 के तहत आपराधिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती।
🔹 मामले के तथ्य:
- वाद-विवाद संपत्ति के स्वामित्व (title), कब्जे (possession) और बिक्री विलेख (sale deed) की वैधता को लेकर था।
- संबंधित पक्षों के बीच एक सिविल मुकदमा पहले से ही लंबित था।
- इसी बीच एक पक्ष द्वारा CrPC की धारा 145 के तहत कार्यवाही भी शुरू कर दी गई थी, जो कि आपराधिक न्यायालय द्वारा संपत्ति के शांतिपूर्ण कब्जे को लेकर आदेश पारित करने की प्रक्रिया है।
- सवाल यह था कि क्या समान मुद्दों पर सिविल मुकदमे की लंबितता के बावजूद CrPC की धारा 145 के तहत समानांतर कार्यवाही की जा सकती है?
🔹 कानूनी विश्लेषण:
- धारा 145, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC):
यह धारा किसी विवादित संपत्ति को लेकर दो पक्षों के बीच शांति भंग की आशंका के आधार पर मजिस्ट्रेट को अधिकार देती है कि वह कब्जे की स्थिति बनाए रखने हेतु आदेश जारी करे। - धारा 146(1), CrPC:
यह मजिस्ट्रेट को संपत्ति को कुर्क करने और रिसीवर नियुक्त करने का अधिकार देती है, यदि वह यह पाता है कि कब्जे का प्रश्न विवादित और जटिल है। - धारा 482, CrPC:
उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ हैं जिनके माध्यम से वह न्याय के हित में अनावश्यक आपराधिक कार्यवाहियों को निरस्त कर सकता है। - धारा 52, ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट:
Lis Pendens का सिद्धांत – यदि कोई संपत्ति विवाद सिविल कोर्ट में लंबित है, तो उस पर कोई भी अधिकार-हस्तांतरण (transfer) विवाद की परिणति तक अवैध हो सकता है।
🔹 अदालत की टिप्पणियाँ:
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा:
- जब संपत्ति का स्वामित्व, कब्जा या विक्रय विलेख जैसे मूल प्रश्न सिविल न्यायालय में विचाराधीन हैं, तो CrPC की धारा 145 के अंतर्गत समानांतर कार्यवाही शुरू करना अनुचित है।
- इससे विरोधाभासी निर्णय सामने आ सकते हैं, जिससे न्यायिक असंगति उत्पन्न होती है।
- यह सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप होगा।
- CrPC की कार्यवाही आपातकालीन प्रकृति की होती है, किन्तु जब विस्तृत परीक्षण सिविल कोर्ट कर रही हो, तब आपराधिक अदालत को पीछे हट जाना चाहिए।
🔹 प्रभाव और महत्व:
✅ न्यायिक सिद्धांतों का संरक्षण:
यह निर्णय बताता है कि सिविल मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि मामलों की निष्पक्ष, तर्कसंगत और पूर्ण सुनवाई हो सके।
✅ फोरम शॉपिंग पर रोक:
किसी पक्ष को दोहरी कार्यवाही के जरिए अपनी सुविधा अनुसार निर्णय प्राप्त करने की छूट नहीं दी जा सकती।
✅ न्यायिक संसाधनों की बचत:
समान मुद्दों पर दोहरी कार्यवाही से कोर्ट की ऊर्जा और समय की बर्बादी होती है, जिससे बचा जाना चाहिए।
✅ संविधान का सम्मान:
यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21 — “न्याय का अधिकार” — को और अधिक व्यावहारिक रूप में लागू करता है, जिसमें निष्पक्ष व त्वरित न्याय की गारंटी दी गई है।
🔚 निष्कर्ष:
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि:
“जब किसी संपत्ति विवाद में सिविल न्यायालय पहले से ही सक्षम रूप से विचार कर रही हो, तब उसी विवाद पर CrPC की धारा 145 के तहत आपराधिक कार्यवाही की अनुमति नहीं दी जा सकती।”
इस निर्णय ने न्यायिक प्रणाली में अंतर-न्यायिक समन्वय, संगति और न्यायिक अनुशासन को बढ़ावा दिया है। यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे अदालतें अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर न्याय के व्यापक सिद्धांतों की रक्षा करती हैं।