“पत्नी को पति के वेतन की जानकारी पाने का अधिकार: मद्रास हाईकोर्ट का महत्त्वपूर्ण फैसला”

“पत्नी को पति के वेतन की जानकारी पाने का अधिकार: मद्रास हाईकोर्ट का महत्त्वपूर्ण फैसला”


परिचय
मद्रास हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा है कि वैवाहिक विवाद के दौरान जब पत्नी भरण-पोषण (maintenance) की मांग करती है, तो उसे अपने पति की आय से संबंधित जानकारी जानने का वैध अधिकार है। इस मामले में पत्नी ने पति के नियोक्ता से वेतन संबंधी बुनियादी विवरण की मांग की थी, जिसे नियोक्ता ने पति की आपत्ति के आधार पर देने से मना कर दिया। राज्य सूचना आयोग ने हालांकि पत्नी के पक्ष में आदेश पारित किया, जिसे मद्रास हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया।


मामले की पृष्ठभूमि
इस विवाद में पत्नी ने अदालत में अपने भरण-पोषण के अधिकार को सिद्ध करने के लिए पति की नौकरी और वेतन से संबंधित जानकारी की मांग की थी।

  • पत्नी ने पति के नियोक्ता से आरटीआई (Right to Information) के माध्यम से वेतन और सेवा विवरण माँगा।
  • पति ने आपत्ति जताई कि यह उसकी गोपनीय जानकारी है और इसे साझा नहीं किया जा सकता।
  • नियोक्ता ने जानकारी देने से इनकार कर दिया।
  • अपीलीय प्राधिकारी (Appellate Authority) ने भी हस्तक्षेप करने से मना कर दिया।
  • अंततः, पत्नी ने राज्य सूचना आयोग (State Information Commission) में अपील की।

राज्य सूचना आयोग ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी, पति की ‘थर्ड पार्टी’ (Third Party) नहीं मानी जा सकती और उसने नियोक्ता को जानकारी देने का निर्देश दिया।


हाईकोर्ट का निर्णय
मद्रास हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयोग के आदेश को सही ठहराया और पति की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने यह कहा:

  1. पति की आय का विवरण भरण-पोषण मामलों में एक महत्वपूर्ण कारक है।
  2. पत्नी को यह जानने का अधिकार है कि पति की कुल मासिक आय क्या है, ताकि वह उचित भरण-पोषण की मांग कर सके।
  3. पत्नी को ‘third party’ नहीं माना जा सकता, विशेषकर जब बात वैवाहिक विवाद और वैधानिक अधिकार की हो।
  4. पति की गोपनीयता का अधिकार इस मामले में सीमित है, क्योंकि पत्नी की जीवन-निर्वाह संबंधी आवश्यकताओं की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
  5. अदालत ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि पत्नी को पति की आय जानने का पूरा हक है।

कानूनी महत्व

  • यह निर्णय सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की व्याख्या और वैवाहिक अधिकारों की रक्षा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
  • यह स्पष्ट करता है कि पति की आय से जुड़ी जानकारी निजता (privacy) के नाम पर नहीं रोकी जा सकती, जब पत्नी अपने कानूनी भरण-पोषण का दावा कर रही हो।
  • अदालत का यह भी कहना था कि यदि इस तरह की जानकारी रोकी जाती है, तो यह न्याय से इनकार करने जैसा होगा।

प्रभाव और निष्कर्ष
इस निर्णय से देश भर की उन महिलाओं को राहत मिलेगी जो वैवाहिक विवादों में पति की वास्तविक आमदनी छिपाए जाने के कारण न्याय नहीं पा रही थीं।

  • यह फैसला महिलाओं के सशक्तिकरण, न्याय तक पहुंच, और आर्थिक पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • साथ ही यह ईमानदारी से न्यायिक प्रक्रिया को सुनिश्चित करता है कि पति अपनी वित्तीय स्थिति छिपाकर पत्नी को उसके अधिकारों से वंचित न कर सके।

उपसंहार
मद्रास हाईकोर्ट का यह निर्णय वैवाहिक न्याय और सूचना के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करता है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि व्यक्तिगत गोपनीयता का अधिकार असीमित नहीं है और जब मामला कानूनी दायित्व और पारिवारिक न्याय का हो, तब पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सर्वोपरि होते हैं।