केवल आरोप नहीं, साक्ष्य चाहिए — धोखाधड़ी का अप्रमाणित दावा विशेष निष्पादन (Specific Performance) को नहीं रोक सकता: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह | मध्यप्रदेश उच्च न्यायालयजिस प्रकरण में न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह ने विशेष निष्पादन की डिक्री को बरकरार रखा, वह “Smt Ramvati Bai Kewat v. Smt Tara Gotia (FA 242/2017)” है, जिसका निर्णय 9 जून 2025 को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर
परिचय:
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि जब कोई विक्रेता (vendor) अदालत में विशेष निष्पादन (specific performance) के आदेश को इस आधार पर चुनौती देता है कि उसके हस्ताक्षर को धोखे से कोरे कागज पर लिया गया था और कोई विचार (consideration) नहीं दिया गया था, तो केवल यह कहना पर्याप्त नहीं होगा। ऐसे गंभीर आरोपों को साक्ष्य द्वारा सिद्ध करना आवश्यक है।
प्रकरण का सार:
इस मामले में विक्रेता ने यह दावा किया कि:
- दस्तावेज़ों पर उसके हस्ताक्षर को कोरे कागज पर धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया।
- विक्रय समझौते के बदले में कोई विचार/राशि (consideration) नहीं दी गई।
लेकिन इस दावे के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया, और यह दावा भी काफी विलंब से अदालत में लाया गया।
कोर्ट का निर्णय:
न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह ने यह फैसला सुनाते हुए कहा:
❝कोई भी पक्ष यदि यह कहता है कि उसके साथ धोखाधड़ी हुई है, तो उसे यह सिद्ध करना होगा कि किस प्रकार, कब, और किसने धोखा दिया। केवल यह कहना कि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कोरे कागज पर करवाए गए और कोई पैसा नहीं दिया गया, बिना प्रमाण के स्वीकार नहीं किया जा सकता।❞
अतः, अदालत ने विशेष निष्पादन की डिक्री को बरकरार रखा, और विक्रेता की अपील खारिज कर दी।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- विशेष निष्पादन (Specific Performance) एक ऐसा उपाय है जिसे अनुबंध कानून में दिया गया है जब कोई पक्ष अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करता।
- यदि कोई यह कहता है कि अनुबंध धोखाधड़ी से हुआ, तो उसे यह साबित करना होगा कि वह वास्तव में छल-कपट का शिकार हुआ।
- अदालतें केवल मौखिक आरोपों के आधार पर पहले दिए गए आदेशों को निरस्त नहीं करती।
- देरी से लिया गया और बिना साक्ष्य का दावा अदालत की दृष्टि में अविश्वसनीय माना जाता है।
न्यायिक दृष्टिकोण:
यह फैसला न्यायालय के उस सुसंगत सिद्धांत को दोहराता है कि:
- “He who alleges, must prove.” (जो आरोप लगाए, उसे सिद्ध भी करना होगा।)
- दस्तावेजों को गैरप्रामाणिक बताना तभी स्वीकार्य होगा जब उसके पीछे मजबूत और विश्वसनीय साक्ष्य हों।
निष्कर्ष:
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई पक्ष अदालत में किसी दस्तावेज़ के वैध होने पर आपत्ति करता है, तो केवल “धोखाधड़ी” का दावा करना पर्याप्त नहीं है।
बल्कि, उस दावे को समय पर और प्रमाण के साथ प्रस्तुत करना अनिवार्य है। वरना, विशेष निष्पादन जैसे राहत उपायों को रोका नहीं जा सकता।