कांवड़ यात्रा में ‘क्यूआर कोड’ विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकारों से जवाब मांगा

कांवड़ यात्रा में ‘क्यूआर कोड’ विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड सरकारों से जवाब मांगा

देश की सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उस आदेश पर सवाल उठाए हैं जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को ‘क्यूआर कोड’ (QR Code) प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया है। यह निर्देश अब न्यायिक समीक्षा के घेरे में आ गया है क्योंकि इसे संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों और पूर्ववर्ती अदालती आदेशों के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है।


🔷 याचिका का सारांश:

याचिका दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा और अन्य द्वारा दायर की गई थी। इसमें मांग की गई कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को ‘क्यूआर कोड’ लगाने के लिए बाध्य करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19(1)(ग) (व्यवसाय करने की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क भी दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने सन् 2024 के एक निर्णय में स्पष्ट कहा था कि किसी भी विक्रेता को कांवड़ मार्ग पर अपनी पहचान अनिवार्य रूप से उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसे में अब ‘क्यूआर कोड’ लगाना उसी निर्णय की अवहेलना है।


🔷 सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही:

15 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को नोटिस जारी किया। दोनों सरकारों से एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 22 जुलाई निर्धारित की है, ताकि इस विवाद पर प्राथमिक रूप से विचार किया जा सके और अंतरिम राहत देने की आवश्यकता हो तो उस पर निर्णय हो सके।


🔷 कांवड़ यात्रा और सुरक्षा व्यवस्था:

11 जुलाई से प्रारंभ हुई यह कांवड़ यात्रा आगामी 9 अगस्त तक चलेगी। लाखों की संख्या में श्रद्धालु हरिद्वार, गंगोत्री और अन्य पवित्र स्थलों से गंगाजल लेकर अपने-अपने शहरों तक जाते हैं। इस दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारें यात्रा मार्ग पर सुरक्षा व्यवस्था, ट्रैफिक नियंत्रण और आपात सेवाओं के लिए व्यापक प्रबंध करती हैं।

हालांकि, ‘क्यूआर कोड’ प्रदर्शित करने की अनिवार्यता पर उठ रहे सवालों ने इस बार की व्यवस्था पर संवैधानिक दृष्टिकोण से बहस छेड़ दी है।


🔷 क्यूआर कोड विवाद क्या है?

दोनों राज्य सरकारों द्वारा जारी एक आंतरिक आदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित दुकानों को निर्देश दिया गया कि वे अपनी पहचान और पंजीकरण विवरण के साथ ‘क्यूआर कोड’ बाहर प्रदर्शित करें। इस कदम को सुरक्षा के लिहाज से जरूरी बताया गया।

लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह विभेदकारी है और लक्षित पहचान (Targeted Profiling) की ओर इशारा करता है, जिससे धार्मिक असहिष्णुता और भेदभाव को बढ़ावा मिल सकता है।


🔷 संवैधानिक और सामाजिक प्रश्न:

यह मामला सिर्फ प्रशासनिक आदेश की वैधता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था के मूल सिद्धांतों से भी जुड़ा हुआ है।

मुख्य प्रश्न जो उठ रहे हैं:

  • क्या एक खास धार्मिक यात्रा के दौरान केवल कुछ दुकानदारों पर पहचान उजागर करने का बोझ डाला जा सकता है?
  • क्या यह आदेश भेदभावपूर्ण और पूर्वग्रहयुक्त है?
  • क्या यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का उल्लंघन है?
  • क्या इस तरह की प्रशासनिक कार्रवाई अल्पसंख्यकों में भय का वातावरण उत्पन्न कर सकती है?

🔷 निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि प्रशासनिक आदेशों की वैधता को हमेशा संविधान की कसौटी पर परखा जाएगा। कांवड़ यात्रा जैसे विशाल धार्मिक आयोजन की व्यवस्था महत्वपूर्ण है, लेकिन व्यक्तिगत अधिकारों और संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करके नहीं।

22 जुलाई की सुनवाई इस विवाद में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकती है, जहां यह तय होगा कि सार्वजनिक सुरक्षा बनाम नागरिक स्वतंत्रता के संघर्ष में न्याय का पलड़ा किस ओर झुकेगा।