“धारा 47 BNS: विदेशी अपराध के लिए भारत में दुष्प्रेरण – क्या ‘राम’ दोषी है?”

“धारा 47 BNS: विदेशी अपराध के लिए भारत में दुष्प्रेरण – क्या ‘राम’ दोषी है?”

परिचय:

भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 47 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है जो भारत के बाहर किए गए अपराधों के लिए भारत में रहने वाले व्यक्ति की जिम्मेदारी तय करती है, खासकर तब जब वह व्यक्ति भारत में बैठकर किसी अन्य व्यक्ति को विदेश में कोई ऐसा कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है जो भारतीय कानून के तहत अपराध है।


धारा 47 का मूलभाव:

धारा 47 यह कहती है कि—

“अगर कोई व्यक्ति भारत में रहकर किसी अन्य व्यक्ति को भारत के बाहर कोई ऐसा कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, जो अगर वह कार्य भारत में किया जाता, तो वह अपराध होता, तो वह व्यक्ति भारतीय कानून के तहत दोषी माना जाएगा।”


उदाहरण द्वारा समझें:

उदाहरण:

राम भारत में बैठा है और उसने श्याम (जो अमेरिका में है) को चोरी करने के लिए पैसे भेजे। श्याम ने अमेरिका में चोरी की।

अब प्रश्न उठता है –
क्या राम भारतीय कानून के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा, जबकि चोरी भारत में नहीं, अमेरिका में हुई है?

उत्तर:

हां, राम भारतीय न्याय संहिता की धारा 47 के अंतर्गत “दुष्प्रेरण” (Abetment) के अपराध का दोषी होगा, क्योंकि:

  1. उसने भारत में रहते हुए यह कार्य किया है।
  2. जिसे उसने उकसाया (श्याम), उसने ऐसा कार्य विदेश में किया जो यदि भारत में होता, तो वह अपराध होता (जैसे चोरी)।
  3. भारतीय कानून के अनुसार, चोरी एक अपराध है, चाहे वह भारत में हो या नहीं।

धारा 47 की मूल अवधारणा:

  • इस धारा की न्यायिक नीति यह है कि कोई व्यक्ति भारत की सीमाओं के भीतर बैठकर भारत के बाहर अपराध कराने का “सेफ ज़ोन” न बना सके।
  • यह अंतरराष्ट्रीय न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है जिसमें एक राज्य अपने नागरिकों या निवासियों को विदेश में आपराधिक कृत्यों की योजना बनाने से रोकने के लिए कानून बनाता है।

कानूनी तत्व (Essential Ingredients):

  1. दुष्प्रेरक व्यक्ति भारत में होना चाहिए
    (जैसे राम भारत में है)
  2. कृत्य का उकसावा विदेश में किसी को दिया गया हो
    (राम ने श्याम को अमेरिका में चोरी के लिए प्रेरित किया)
  3. जो कृत्य विदेश में किया गया है, वह भारत में भी अपराध हो
    (जैसे चोरी भारत में भी अपराध है, धारा 303 BNS के तहत)
  4. दुष्प्रेरण का कार्य भारत में घटित हुआ हो
    (जैसे पैसे भेजना, योजना बनाना आदि)

महत्वपूर्ण बात:

  • भले ही मुख्य अपराध भारत में घटित न हो, दुष्प्रेरण का अपराध भारत में घटित माना जाएगा और उस पर भारत के न्यायालय अधिकार रखते हैं।
  • यह सिद्धांत अंतर-सीमा अपराधों (Trans-border crimes) की रोकथाम में सहायक है।

संबंधित धाराएँ:

  • धारा 46 BNS – दुष्प्रेरण की परिभाषा
  • धारा 48 BNS – संयुक्त रूप से अपराध करने पर सज़ा
  • धारा 3 BNS – भारत से बाहर हुए अपराधों पर भारतीय कानून की सीमा

न्यायिक दृष्टिकोण:

भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर यह स्पष्ट किया है कि “अपराध की योजना जहाँ बनी हो, वहाँ उसका अधिकार क्षेत्र बनता है।” यदि भारत में योजना बनी, पैसा भेजा गया, निर्देश दिए गए – तो भारतीय अदालत में मामला चल सकता है।


निष्कर्ष:

धारा 47 एक शक्तिशाली प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करती है कि भारत में बैठकर कोई व्यक्ति भारत के बाहर अपराध को उकसाए या सहायता न कर सके। इस धारा के अनुसार:

  • राम, भले ही भारत में बैठा हो,
  • लेकिन उसने अमेरिका में होने वाले अपराध के लिए श्याम को उकसाया और पैसे भेजे,
  • इसलिए राम, भारतीय कानून के तहत दुष्प्रेरण का दोषी होगा।

यह धारा सिर्फ न्याय दिलाने का नहीं, बल्कि नैतिक उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने का भी कार्य करती है।