तलाक की प्रक्रिया: एक विस्तृत लेख (Process of Divorce: A Comprehensive Article)

तलाक की प्रक्रिया: एक विस्तृत लेख (Process of Divorce: A Comprehensive Article)

🔷 भूमिका:

भारतीय वैवाहिक व्यवस्था सामाजिक, धार्मिक और कानूनी मान्यताओं पर आधारित होती है। लेकिन जब पति-पत्नी के बीच संबंध असहनीय हो जाते हैं और साथ रहना संभव नहीं होता, तो विवाह को समाप्त करने के लिए “तलाक” का रास्ता अपनाया जाता है। तलाक की प्रक्रिया दो प्रकार की होती है:

  1. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce)
  2. एकतरफा या विवादित तलाक (Contested Divorce)

🟩 I. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce)

जब पति-पत्नी दोनों तलाक के लिए सहमत होते हैं और उनके बीच कोई विशेष विवाद नहीं होता, तब इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है।

✅ आवश्यक शर्तें:

  • दोनों पति-पत्नी विवाह से असंतुष्ट हों और साथ नहीं रहना चाहते।
  • एक-दूसरे के खिलाफ कोई गंभीर आरोप नहीं लगाते हों।
  • विवाह को समाप्त करने के लिए दोनों पक्ष सहमत हों।

🔸 प्रक्रिया:

  1. संयुक्त याचिका दायर करें: पति-पत्नी फैमिली कोर्ट में संयुक्त रूप से तलाक की याचिका दाखिल करते हैं।
  2. प्रथम सुनवाई: कोर्ट याचिका को स्वीकार करता है और प्रथम बयान दर्ज करता है।
  3. “कूलिंग ऑफ पीरियड” (Cooling-off Period): अदालत एक 6 महीने की अवधि देती है ताकि पक्षों को अपने निर्णय पर पुनर्विचार का अवसर मिले। यह समय अधिकतम 18 महीने तक बढ़ाया जा सकता है। कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट इस अवधि को समाप्त करने की अनुमति भी देता है।
  4. दूसरी सुनवाई और तलाक की मंजूरी: यदि 6 महीने बाद भी दोनों अपने निर्णय पर कायम रहते हैं, तो कोर्ट दूसरी सुनवाई कर तलाक की डिक्री जारी कर देता है।

🟥 II. एकतरफा तलाक (Contested Divorce)

जब केवल एक पक्ष तलाक चाहता है और दूसरा पक्ष सहमत नहीं होता, तो यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

✅ संभावित आधार (Grounds for Divorce):

  • क्रूरता (Cruelty)
  • विवाह में धोखा या विश्वासघात (Adultery)
  • परित्याग (Desertion – कम से कम 2 वर्ष का)
  • मानसिक विकार या गंभीर बीमारी
  • पति/पत्नी का धर्म परिवर्तन
  • पति/पत्नी की मृत्यु की खबर के बिना 7 वर्ष तक ग़ायब रहना

🔸 प्रक्रिया:

  1. तलाक याचिका दायर करें: असंतुष्ट पक्ष फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दाखिल करता है।
  2. कोर्ट द्वारा नोटिस जारी: कोर्ट दूसरे पक्ष को नोटिस भेजता है और उसकी उपस्थिति मांगता है।
  3. जवाब और आपत्तियाँ: दूसरा पक्ष कोर्ट में अपना पक्ष रखता है, जिससे विवाद की प्रकृति स्पष्ट होती है।
  4. सबूत और गवाह: दोनों पक्षों को अपने-अपने पक्ष में साक्ष्य और गवाह प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।
  5. अंतिम निर्णय: साक्ष्य, तर्क और गवाहों के आधार पर कोर्ट तलाक मंजूर करता है या अस्वीकार करता है।

🔷 संबंधित मुद्दे (Ancillary Issues):

1. भरण-पोषण (Maintenance):

  • भारतीय कानून (CrPC की धारा 125 और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 व 25) के अनुसार, कमजोर पक्ष (अक्सर पत्नी) भरण-पोषण की मांग कर सकता है।
  • कोर्ट पति की आय और पत्नी की ज़रूरतों को देखकर भरण-पोषण तय करता है।

2. बच्चे की कस्टडी (Child Custody):

  • तलाक के बाद बच्चे की देखभाल कौन करेगा, इसका निर्णय अदालत बच्चे के कल्याण (welfare) को ध्यान में रखकर करती है।
  • कस्टडी पूर्ण (full), संयुक्त (joint) या आंशिक (visitation rights) रूप में दी जा सकती है।

3. संपत्ति का बंटवारा (Division of Property):

  • हिंदू विवाह अधिनियम में पति-पत्नी की संपत्ति को साझा नहीं माना जाता, लेकिन कोर्ट परिस्थितियों को देखकर कुछ न्यायिक राहत दे सकता है।
  • संयुक्त संपत्ति या पत्नी द्वारा किए गए योगदान के आधार पर निर्णय होता है।

🔚 निष्कर्ष (Conclusion):

तलाक एक संवेदनशील और भावनात्मक विषय है। इसे अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिए। यदि रिश्ता टूटने की कगार पर हो और साथ रहना संभव न हो, तब आपसी समझ और कानून की सहायता से तलाक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। कोर्ट का मुख्य उद्देश्य दोनों पक्षों को न्याय देना और विशेषकर बच्चों के हितों की रक्षा करना होता है।