OTT प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया पर कानूनी नियंत्रण: अभिव्यक्ति बनाम जवाबदेही का द्वंद्व
(Legal Regulation of OTT Platforms and Digital Media: The Conflict Between Expression and Accountability)
I. भूमिका (Introduction)
वर्तमान डिजिटल युग में ओटीटी (OTT – Over The Top) प्लेटफॉर्म जैसे Netflix, Amazon Prime, Hotstar, Zee5, SonyLiv और अन्य डिजिटल मीडिया सेवाएं तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। यह माध्यम अब न केवल मनोरंजन का प्रमुख स्रोत बन गया है, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर चर्चा, विचार और अभिव्यक्ति का मंच भी बन चुका है। लेकिन इस माध्यम की बढ़ती स्वतंत्रता और सामग्री की व्यापकता ने एक नया कानूनी विमर्श खड़ा कर दिया है — क्या डिजिटल सामग्री पूरी तरह से अनियंत्रित रहनी चाहिए? या इसे पारंपरिक मीडिया की तरह नियमन की ज़रूरत है?
II. OTT प्लेटफॉर्म का स्वरूप और कानूनी स्थिति
1. OTT की परिभाषा:
OTT का अर्थ है ऐसा डिजिटल माध्यम जो इंटरनेट के माध्यम से सीधा उपभोक्ताओं को वीडियो, फिल्में, वेब सीरीज और अन्य सामग्री प्रदान करता है, बिना किसी पारंपरिक प्रसारण प्रणाली (जैसे DTH या केबल) के।
2. कानूनी स्थिति:
2021 से पहले तक OTT प्लेटफॉर्म पर कोई विशिष्ट कानून नहीं था। लेकिन Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021 के माध्यम से भारत सरकार ने OTT और डिजिटल मीडिया के लिए पहली बार नियमन की व्यवस्था लागू की।
III. 2021 के आईटी नियम और OTT पर नियंत्रण
प्रमुख प्रावधान:
- तीन स्तरीय शिकायत निवारण प्रणाली (Three-tier Grievance Redressal Mechanism):
- स्तर 1: स्वयं नियमन (Self-regulation) – प्लेटफॉर्म का आंतरिक शिकायत अधिकारी
- स्तर 2: उद्योग निकाय (Industry Body) – स्व-नियामक संस्था
- स्तर 3: सरकार द्वारा गठित निगरानी तंत्र – I&B Ministry का Oversight Mechanism
- Content Classification:
- U, U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+, A (Adult)
- सभी कंटेंट को उपयुक्त श्रेणी में वर्गीकृत करना अनिवार्य
- प्रदर्शनी चेतावनी और अभिभावकीय नियंत्रण:
- अश्लील, हिंसात्मक या संवेदनशील सामग्री से पहले उचित चेतावनी
- माता-पिता के लिए नियंत्रण सुविधा
- Take Down Orders:
- आपत्तिजनक या अवैध कंटेंट को हटाने का अधिकार सरकार को
- “Emergency Blocking Powers” का प्रावधान
IV. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम नैतिक जिम्मेदारी
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a):
हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।
अनुच्छेद 19(2):
यह स्वतंत्रता युक्तियुक्त प्रतिबंधों के अधीन है —
- राष्ट्र की सुरक्षा
- सार्वजनिक व्यवस्था
- नैतिकता
- न्यायालय की अवमानना
- मानहानि
OTT प्लेटफॉर्म्स पर अक्सर धर्म, राजनीति, सेक्स, जाति, हिंसा जैसे विषयों पर खुलकर सामग्री प्रस्तुत की जाती है, जिससे विवाद और कानूनी कार्यवाही बढ़ती जा रही है।
V. विवादास्पद मामले और कानूनी प्रतिक्रिया
- तांडव वेब सीरीज़ विवाद (2021):
- धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप
- I&B मंत्रालय और कोर्ट की सख्त टिप्पणियां
- मिर्ज़ापुर केस:
- उत्तर प्रदेश में अपराध glorify करने का आरोप
- सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुँचा
- Bombay High Court in Padmaavat (although film):
- रचनात्मक स्वतंत्रता को संवैधानिक संरक्षण मिला
VI. OTT कंटेंट पर सेंसरशिप की बहस
तर्क नियमन के पक्ष में | तर्क नियमन के विरोध में |
---|---|
सामाजिक सौहार्द की रक्षा | रचनात्मक स्वतंत्रता का दमन |
बच्चों और किशोरों की सुरक्षा | सेंसरशिप का भय और आत्म-संयम |
फेक न्यूज़ और अफवाहों पर रोक | डिजिटल लोकतंत्र में बाधा |
अश्लीलता, धार्मिक अपमान से रोक | वैचारिक विविधता की हानि |
VII. समाधान और आगे की राह
- संतुलित नियमन: पूरी सेंसरशिप नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व आधारित स्व-नियमन
- Digital Literacy: दर्शकों में चयन और आलोचना की क्षमता
- पारदर्शी शिकायत प्रणाली: शिकायतों का त्वरित और निष्पक्ष समाधान
- डेटा गोपनीयता का कानून: यूज़र की निजता और डेटा का संरक्षण
- AI आधारित कंटेंट मॉनिटरिंग: तकनीकी मदद से कंटेंट की निगरानी
VIII. निष्कर्ष (Conclusion)
OTT और डिजिटल मीडिया लोकतंत्र की एक नई आवाज़ बनकर उभरे हैं, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति निर्माता और दर्शक दोनों बन सकता है। लेकिन इस असीमित स्वतंत्रता के साथ नैतिकता, ज़िम्मेदारी और वैधानिक मर्यादा का निर्वाह आवश्यक है। सरकार, मंच और दर्शकों – तीनों को मिलकर इस माध्यम को ऐसा रूप देना होगा जो न केवल मनोरंजन करे, बल्कि समाज में सकारात्मक संवाद को भी बढ़ावा दे।