“भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 183: पुलिस के समक्ष दिया गया बयान कानूनी रूप से अंतिम नहीं होता”

“भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 183: पुलिस के समक्ष दिया गया बयान कानूनी रूप से अंतिम नहीं होता”


🔷 प्रस्तावना:

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की जगह लागू की गई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS) ने आपराधिक प्रक्रिया में कई महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। इन्हीं में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है धारा 183, जो बयानों की विधिक मान्यता से संबंधित है। इस धारा के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि केवल मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान ही कानूनी रूप से अंतिम और प्रभावी माना जाएगा, न कि पुलिस के सामने दिया गया बयान।


🔷 BNSS की धारा 183 का सार:

➤ पुलिस के सामने दिया गया बयान (Police Statement):
जब कोई व्यक्ति अपराध की जाँच के दौरान पुलिस अधिकारी के समक्ष बयान देता है, तो वह सिर्फ जाँच की प्रक्रिया का हिस्सा माना जाता है।
➡ यह बयान अदालत में स्वतंत्र रूप से साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसे मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज न किया गया हो।

➤ मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान (Statement before Magistrate):
अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से और न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 183 के तहत बयान देता है —
➡ तो वह बयान कानूनन प्रभावी और प्रमाणिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
➡ यह बयान अदालत में अभियोजन या बचाव में निर्णायक हो सकता है।


🔷 इस प्रावधान की आवश्यकता क्यों है?

  1. पुलिस दबाव की आशंका:
    पुलिस के समक्ष दिए गए बयान में कई बार दबाव, धमकी, या प्रलोभन शामिल हो सकते हैं।
    ⏩ इसलिए उसे स्वतः स्वीकार्य प्रमाण नहीं माना जाता।
  2. न्यायिक संरक्षण की आवश्यकता:
    मजिस्ट्रेट के सामने बयान देने में व्यक्ति को संवैधानिक सुरक्षा, कानूनी सलाह, और निष्पक्ष वातावरण मिलता है।
  3. स्वेच्छा और सत्यता का महत्व:
    मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करता है कि बयान बिना किसी दबाव, धोखे या प्रभाव के, और स्वेच्छा से दिया गया है।

🔷 न्यायिक दृष्टिकोण (Case Law Context):

भारतीय न्यायपालिका ने भी कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि:
🔹 पुलिस के समक्ष दिया गया बयान धारा 161 CrPC/BNSS (अब BNSS की नई धारा) के तहत जांच का हिस्सा होता है, न कि पूर्ण साक्ष्य।
🔹 लेकिन यदि वही बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 183 के अंतर्गत दिया जाता है, तो वह Section 164 CrPC की तरह ही मजबूत साक्ष्य बन जाता है।


🔷 निष्कर्ष:

BNSS की धारा 183 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में न्याय और निष्पक्षता को सुदृढ़ करती है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी या गवाह का बयान बिना दबाव के, स्वतंत्र रूप से और न्यायिक निगरानी में दर्ज किया जाए। यह पुलिस द्वारा कथित रूप से किए गए ज़बरदस्ती या झूठे कबूलनामों की घटनाओं को रोकने की दिशा में एक प्रभावी और संरक्षक उपाय है।