“नागरिकता की जांच चुनाव आयोग का काम नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा – वोटर लिस्ट में नाम जोड़ना सिर्फ नागरिकता साबित करने से नहीं जुड़ा”
परिचय
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए स्पष्ट किया कि केवल देश की नागरिकता साबित करना ही किसी व्यक्ति को वोटर लिस्ट (मतदाता सूची) में नाम शामिल करने का आधार नहीं हो सकता। अदालत ने यह भी कहा कि नागरिकता की वैधता और जांच करना चुनाव आयोग का कार्यक्षेत्र नहीं है, बल्कि यह गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) का दायित्व है। यह टिप्पणी चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और संवैधानिक सीमाओं की पुनर्परिभाषा के रूप में सामने आई है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान आई जिसमें याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग द्वारा एक व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट में शामिल किए जाने को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि संबंधित व्यक्ति की नागरिकता संदिग्ध है और इसलिए वह मतदाता सूची में शामिल होने का पात्र नहीं है।
चुनाव आयोग ने इस पर जवाब दिया कि वे नागरिकता की जांच करने वाली अथॉरिटी नहीं हैं। वे केवल उपलब्ध दस्तावेजों और सत्यापन के आधार पर मतदाता सूची में नाम जोड़ते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने इस मामले में कहा:
“यदि आप वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने का आधार केवल नागरिकता की जांच को बना देंगे, तो यह एक बहुत बड़ी कसौटी (high threshold) बन जाएगी। यह काम चुनाव आयोग का नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय का है।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग का कार्य यह देखना है कि आवेदक संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का निवासी है, वांछित आयु सीमा को पूरा करता है, और आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करता है।
कोर्ट का रुख और कानूनी संकेत
सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के माध्यम से तीन प्रमुख बातें स्पष्ट की:
- संवैधानिक सीमाएं: चुनाव आयोग की सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा गया कि उसे नागरिकता जांच की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह संविधान और कानून के दायरे से बाहर है।
- नागरिकता का निर्धारण: नागरिकता कानूनों के अंतर्गत नागरिकता का निर्धारण या किसी की नागरिकता पर संदेह करना, गृह मंत्रालय या सक्षम प्रशासनिक अधिकारियों का दायित्व है, न कि चुनाव आयोग का।
- वोटर लिस्ट की प्रक्रिया: वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए निर्धारित प्रक्रिया — जैसे आयु, निवास और आवश्यक दस्तावेजों की जांच — ही पर्याप्त है, जब तक किसी न्यायालय या प्रशासनिक निर्णय से व्यक्ति की नागरिकता रद्द न की गई हो।
प्रभाव और महत्व
इस निर्णय का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह देशभर में मतदाता सूची से संबंधित विवादों में एक मार्गदर्शन प्रदान करता है। यदि हर आवेदक की नागरिकता की गहन जांच चुनाव आयोग से अपेक्षित हो, तो इससे न केवल कार्यभार असामान्य रूप से बढ़ जाएगा, बल्कि चुनावी प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब और विवाद भी होंगे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी चुनाव प्रक्रिया की जटिलताओं और संवैधानिक संतुलन को समझने का मार्ग प्रशस्त करती है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि हर संस्था की एक सीमित भूमिका होती है — और जब नागरिकता जैसे संवेदनशील विषय की बात आती है, तो यह गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है, न कि चुनाव आयोग का।
यह निर्णय भारत में लोकतंत्र की संरचना और संस्थाओं की परस्पर भूमिकाओं को संतुलित बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप है।