“स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम कर्नाटक राज्य: शेयर एस्क्रो समझौते से संबंधित एफआईआर को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द”
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में Standard Chartered Bank और Starship Equity Holding Ltd. के विरुद्ध दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) को रद्द कर दिया, जो कि दो कंपनियों के बीच एक शेयर एस्क्रो एग्रीमेंट (Share Escrow Agreement) से संबंधित थी। यह निर्णय भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दिया गया, जिसमें न्यायालय अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह निर्णय करता है कि किस मामले में आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना न्याय के हित में नहीं होगा।
पृष्ठभूमि:
मामला एक व्यापारिक लेनदेन से जुड़ा था, जिसमें दो पक्षों के बीच एक शेयर एस्क्रो समझौता किया गया था। इस समझौते के अनुसार, Standard Chartered Bank ने एस्क्रो एजेंट के रूप में कार्य किया था। बाद में Starship Equity Holding Ltd. और अन्य पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ, जिसके चलते Karnataka Police द्वारा एक एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें धोखाधड़ी, विश्वासघात और आपराधिक षड्यंत्र जैसे गंभीर आरोप लगाए गए।
याचिका का मुख्य आधार:
Standard Chartered Bank ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह तर्क दिया कि यह विवाद पूरी तरह नागरिक प्रकृति का है और इसमें किसी प्रकार का आपराधिक मंशा नहीं है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि बैंक ने केवल एस्क्रो एजेंट के रूप में तटस्थ भूमिका निभाई थी, इसलिए उनके विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई करना अनुचित और कानून का दुरुपयोग है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने स्पष्ट किया कि:
- एफआईआर में कोई ऐसा ठोस प्रथम दृष्टया आपराधिक तत्व नहीं है जो यह दर्शाए कि बैंक ने जानबूझकर किसी प्रकार की धोखाधड़ी की हो।
- यह विवाद वाणिज्यिक अनुबंध से संबंधित है, जिसे आपराधिक रंग देकर प्राथमिकी दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
- बैंक की भूमिका केवल एक न्यूट्रल ट्रस्टी/एजेंट के रूप में थी, जिसमें उसका कोई निजी स्वार्थ या दोष नहीं था।
अतः कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के व्यवसायिक अनुबंध विवादों को सिविल फोरम में निपटाया जाना चाहिए, न कि आपराधिक न्याय प्रणाली के माध्यम से।
निष्कर्ष:
यह निर्णय भारत में चल रहे उन मामलों के लिए नजीर बन सकता है जहाँ व्यावसायिक विवादों को आपराधिक मुकदमों का रूप दे दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून की प्रक्रिया का इस प्रकार का दुरुपयोग न्यायिक प्रणाली पर बोझ डालता है और निर्दोष व्यक्तियों को परेशान करता है।