“अवैध घुसपैठ पर ‘पुश-बैक नीति’ को सुप्रीम कोर्ट की सहमति: ABMSU बनाम भारत संघ”
मामले का नाम (Case Name):
All B.T.C. Minority Students Union (ABMSU) Vs. Union of India & Others
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
विषय: असम सरकार की ‘पुश-बैक नीति’ को चुनौती देने वाली याचिका
फैसला: याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
परिचय:
अवैध प्रवासन, विशेषकर बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ, असम जैसे सीमावर्ती राज्यों के लिए लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। असम सरकार ने इससे निपटने के लिए एक कठोर नीति – ‘पुश-बैक नीति’ – अपनाई है, जिसके तहत अवैध घुसपैठियों को राज्य में प्रवेश करने से पहले ही सीमा से बाहर कर दिया जाता है। इस नीति के खिलाफ All B.T.C. Minority Students Union (ABMSU) ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि:
ABMSU ने याचिका में कहा कि असम सरकार की यह ‘पुश-बैक नीति’ न केवल बांग्लादेश से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता) के भी विरुद्ध है। याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क था कि यह नीति शरणार्थियों के लिए लागू अंतरराष्ट्रीय मानकों और भारत की नैतिक जिम्मेदारियों के प्रतिकूल है।
कोर्ट की कार्यवाही और निर्णय:
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला राजनीतिक और नीति-निर्धारण (policy-making) से संबंधित है, जिसमें न्यायपालिका केवल तभी हस्तक्षेप करती है जब कोई स्पष्ट रूप से असंवैधानिक या मनमाना निर्णय हो। चूंकि ‘पुश-बैक नीति’ सरकार की सीमा सुरक्षा और आंतरिक प्रबंधन की नीति से जुड़ा है, इसलिए इसे चुनौती देने वाली याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना गया और रिट याचिका खारिज कर दी गई।
प्रमुख तर्क और विचार:
- ABMSU की दलीलें:
- अवैध घुसपैठियों को मानवाधिकार और शरण का अवसर मिलना चाहिए।
- बिना उचित प्रक्रिया (due process) के किसी को भी वापस भेजना संविधान के विरुद्ध है।
- भारत को अंतरराष्ट्रीय customary शरणार्थी कानूनों का पालन करना चाहिए।
- सरकार की स्थिति:
- यह एक संवेदनशील सुरक्षा मुद्दा है।
- सीमाओं पर अवैध गतिविधियों को रोकना राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
- यह नीति राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसंख्या नियंत्रण और आंतरिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
- सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
- यह मामला कार्यपालिका के नीति-निर्धारण क्षेत्र में आता है।
- कोर्ट की भूमिका तब सक्रिय होती है जब कोई स्पष्ट संवैधानिक उल्लंघन या मनमानी दिखती है, जो इस मामले में नहीं था।
निष्कर्ष:
यह निर्णय उन मामलों में न्यायिक संयम का उदाहरण है, जहां कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में न्यायपालिका हस्तक्षेप से बचती है। हालांकि ABMSU ने मानवीय और संवैधानिक पहलुओं को उठाया, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में सरकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
प्रासंगिक संविधान अनुच्छेद:
- अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- अनुच्छेद 32: रिट याचिका दायर करने का अधिकार
संदेश:
यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के संतुलन के प्रश्न को पुनः उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय दर्शाता है कि जब सरकार की नीति कानूनी और संवैधानिक ढांचे के भीतर हो, तो न्यायालय नीति में हस्तक्षेप नहीं करता।