“मानव जीनोम संपादन और कानूनी दायित्व: उन्नति की सीमाएं और उत्तरदायित्व की रेखाएं”
🔬 प्रस्तावना
मानव जीनोम संपादन (Human Genome Editing) आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी की सबसे क्रांतिकारी खोजों में से एक है। CRISPR-Cas9 जैसी तकनीकों ने वैज्ञानिकों को किसी भी जीव के डीएनए को सटीकता से काटने, हटाने और बदलने की शक्ति दी है। विशेषकर मानव जीनोम संपादन ने दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों के इलाज और स्वास्थ्य में सुधार की नई राहें खोल दी हैं। लेकिन इसी तकनीक से जुड़े कानूनी, नैतिक और सामाजिक दायित्व अनेक गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं।
यह लेख मानव जीनोम संपादन की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि, संभावनाओं, खतरे और उसके कानूनी उत्तरदायित्व की विस्तृत समीक्षा करता है।
🧬 1. मानव जीनोम संपादन क्या है?
मानव जीनोम संपादन वह प्रक्रिया है जिसमें मानव डीएनए के विशिष्ट अनुक्रमों को वैज्ञानिक विधियों से संशोधित, हटाया या प्रतिस्थापित किया जाता है। इसका प्रयोग दो स्तरों पर होता है:
- Somatic Cell Editing – शरीर की सामान्य कोशिकाओं का संपादन, जो पीढ़ी दर पीढ़ी नहीं जाता।
- Germline Editing – प्रजनन कोशिकाओं (sperm या egg) का संपादन, जो अगली पीढ़ियों को प्रभावित करता है।
⚖️ 2. कानूनी दायित्व क्यों आवश्यक हैं?
मानव जीनोम संपादन सीधे मानव जीवन, स्वास्थ्य और भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित करता है। यदि यह बिना विधिक और नैतिक दिशानिर्देशों के किया जाए, तो इससे उत्पन्न हो सकते हैं:
- मानव अधिकारों का हनन
- गोपनीयता और सहमति का उल्लंघन
- जैविक भेदभाव (Genetic Discrimination)
- डिज़ाइनर बेबी कल्चर का विस्तार
- असमान पहुंच, जिससे सामाजिक न्याय पर आघात
📜 3. भारत में मानव जीनोम संपादन और विधि
भारत में अभी तक कोई विशिष्ट अधिनियम केवल मानव जीन संपादन को नियमित नहीं करता, लेकिन कुछ सम्बंधित दिशानिर्देश एवं कानून हैं:
- ICMR (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) द्वारा 2017 में प्रकाशित दिशानिर्देश: “Germline editing is not permitted in India”.
- GEAC (Genetic Engineering Appraisal Committee) – जीएम तकनीकों की निगरानी।
- Biomedical and Health Research Guidelines (2017) – शोध में स्वैच्छिक सहमति और नैतिक अनुमति की अनिवार्यता।
- डिजिटल पर्सनल डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 – आनुवंशिक डेटा को संवेदनशील डेटा की श्रेणी में रखता है।
लेकिन भारत में अभी तक जीन एडिटिंग पर सख्त और समर्पित कानून की कमी है।
🌍 4. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
देश/संगठन | कानूनी स्थिति |
---|---|
USA | FDA के नियमों के तहत Germline Editing निषिद्ध है। |
UK | HFEA के अधीन अनुसंधान की अनुमति है, लेकिन प्रजनन के लिए नहीं। |
चीन | विवादास्पद स्थिति, जहां नियमों के अभाव में 2018 में CRISPR बेबी विवाद हुआ। |
WHO | Global Registry बनाने की सलाह; Germline Editing पर अंतरराष्ट्रीय सहमति की माँग। |
⚠️ 5. कानूनी दायित्व और चुनौतियाँ
- स्वैच्छिक सहमति (Informed Consent)
क्या माता-पिता अपने अजन्मे बच्चे के लिए नैतिक रूप से सहमति दे सकते हैं? - उत्तरदायित्व का निर्धारण
यदि संपादन के परिणामस्वरूप भविष्य में बीमारी या विकृति हो, तो कौन जिम्मेदार होगा – वैज्ञानिक, डॉक्टर, सरकार या निजी कंपनी? - डिजाइनर बेबी और सामाजिक भेदभाव
जब संपादन सुविधा अमीरों तक सीमित हो, तो क्या यह नस्लीय, आर्थिक और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देगा? - गोपनीयता और डेटा सुरक्षा
जीनोमिक डेटा लीक होने पर व्यक्ति के स्वास्थ्य बीमा, रोजगार या विवाह पर प्रभाव पड़ सकता है।
📚 6. आवश्यक कानूनी सुधार और नीति सुझाव
- विशेष अधिनियम – भारत को “Human Genome Editing Regulation Act” जैसा कानून बनाना चाहिए।
- राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण – जो अनुसंधान को अनुमोदित करे और सामाजिक प्रभावों का मूल्यांकन करे।
- CRISPR जैसी तकनीकों पर सार्वजनिक संवाद – पारदर्शिता और नागरिक भागीदारी जरूरी।
- सीमाएं तय हों – चिकित्सा आवश्यकता और सुविधा के बीच स्पष्ट रेखा खींची जाए।
- नैतिक समीक्षा मंडल – अनुसंधान संस्थानों में अनिवार्य हो।
✅ निष्कर्ष
मानव जीनोम संपादन विज्ञान की वह शक्ति है जो जीवन को रूपांतरित कर सकती है — या उसे असमानता, भेदभाव और अनैतिक प्रयोगों की ओर ले जा सकती है। इसलिए इसका प्रयोग अत्यंत जिम्मेदारी, संवेदनशीलता और सख्त कानूनों के तहत किया जाना चाहिए। भारत को इस तकनीक की क्षमता का लाभ उठाते हुए, समग्र कानूनी ढांचा तैयार करना चाहिए, जो मानव गरिमा और अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।