“जेनेटिक इंजीनियरिंग और बायोएथिक्स: विज्ञान, नैतिकता और कानून का टकराव”
भूमिका
जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) — वह तकनीक है जिससे जीवों के जीनोम को कृत्रिम रूप से संशोधित किया जाता है। चाहे वह रोग प्रतिरोधी पौधों की रचना हो या मनुष्यों में आनुवंशिक रोगों का इलाज, यह तकनीक भविष्य की चिकित्सा और कृषि की नींव बन चुकी है। लेकिन इसके साथ जुड़ी बायोएथिक्स (Bioethics) — यानी जैव नैतिकता — कई गहरे और जटिल प्रश्न उठाती है। यह लेख इस टकराव की कानूनी, नैतिक और सामाजिक पड़ताल करता है।
1. जेनेटिक इंजीनियरिंग का परिचय
जेनेटिक इंजीनियरिंग एक बायोटेक्नोलॉजिकल प्रक्रिया है जिसमें जीवों के डीएनए को काटकर, जोड़कर या संशोधित किया जाता है। इसका प्रयोग अनेक क्षेत्रों में होता है:
- चिकित्सा क्षेत्र में – अनुवांशिक बीमारियों का इलाज, जीन थेरेपी, वैक्सीन निर्माण।
- कृषि में – जीएम फसलें, कीट-प्रतिरोधक पौधे, पोषण संवर्धन।
- उद्योगों में – दवा उत्पादन, एंजाइम संश्लेषण।
2. बायोएथिक्स क्या है?
बायोएथिक्स वह अनुशासन है जो जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न नैतिक प्रश्नों का अध्ययन करता है। इसके प्रमुख मूल्य हैं:
- स्वायत्तता (Autonomy) – व्यक्ति की अपनी जैविक जानकारी और शरीर पर नियंत्रण का अधिकार।
- हित (Beneficence) – व्यक्ति या समाज के हित में वैज्ञानिक प्रयोग।
- अहिंसा (Non-maleficence) – कोई नुकसान न हो, यह सुनिश्चित करना।
- न्याय (Justice) – तकनीक का समान और निष्पक्ष उपयोग।
3. जेनेटिक इंजीनियरिंग और नैतिक प्रश्न
- “डिज़ाइनर बेबी” की अवधारणा – क्या यह नैतिक रूप से स्वीकार्य है कि माता-पिता अपने बच्चों के रंग, ऊँचाई, बुद्धिमत्ता चुनें?
- मानव जीन संपादन (Human Gene Editing) – क्या इससे प्राकृतिक मानव पहचान बदल जाएगी?
- क्लोनिंग – क्या यह जीवन की गरिमा और आत्म-स्वायत्तता का उल्लंघन है?
- जानवरों पर प्रयोग – क्या पशुओं के अनुवांशिक रूपांतरण से उनके अधिकारों का हनन होता है?
4. भारत और जेनेटिक इंजीनियरिंग
भारत में जेनेटिक इंजीनियरिंग को नियंत्रित करने के लिए कई प्रावधान मौजूद हैं:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत आनुवंशिक रूप से परिवर्तित जीवों (GMOs) पर नियम।
- GEAC (Genetic Engineering Appraisal Committee) – नई जैव तकनीकों के अनुमोदन के लिए।
- बायोमेडिकल रिसर्च पर ICMR दिशानिर्देश – मानव पर जैव परीक्षण के नैतिक दिशा-निर्देश।
- डीएनए प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक, 2019 – डीएनए डेटा की गोपनीयता और प्रयोग से जुड़ा प्रस्तावित कानून।
5. अंतरराष्ट्रीय बायोएथिक्स मानदंड
- UNESCO की Universal Declaration on Bioethics and Human Rights (2005) – मानव गरिमा, सहमति और गोपनीयता पर बल।
- WHO और WMA दिशानिर्देश – चिकित्सा अनुसंधान में नैतिक व्यवहार के लिए।
- CRISPR टेक्नोलॉजी पर वैश्विक विमर्श – कई वैज्ञानिकों और देशों ने “ह्यूमन जर्मलाइन एडिटिंग” पर रोक की मांग की।
6. प्रमुख नैतिक व कानूनी चुनौतियाँ
चुनौती | विवरण |
---|---|
गोपनीयता | जीन डेटा का दुरुपयोग बीमा, रोजगार या सामाजिक भेदभाव में। |
अनुचित पहुंच | केवल धनी वर्ग ही तकनीक का लाभ उठा सके। |
अवांछनीय प्रयोग | क्लोनिंग या नस्ल सुधार जैसे प्रयोग समाज में असमानता बढ़ा सकते हैं। |
नैतिक सहमति की कमी | अनुसंधान में व्यक्तियों की पूर्व सहमति का अभाव। |
7. समाधान और नीति सुझाव
- स्पष्ट कानून और दिशानिर्देश जो बायोएथिक्स को बाध्यकारी बनाएं।
- नैतिक समीक्षा बोर्डों (Ethics Committees) की पारदर्शिता और जवाबदेही।
- जन-जागरूकता अभियान जिससे लोग अपने जैविक अधिकारों को जान सकें।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग, ताकि विज्ञान वैश्विक नैतिक ढांचे के साथ विकसित हो।
निष्कर्ष
जेनेटिक इंजीनियरिंग एक चमत्कारी तकनीक है, परंतु इसके साथ अनियंत्रित प्रयोग और लाभ की लालसा अगर बिना नैतिक मूल्यों के बढ़े, तो यह मानवता को गहरे संकट में डाल सकती है। इसलिए आवश्यक है कि हम विज्ञान और नैतिकता के बीच संतुलन बनाकर कानूनों को मजबूत करें, ताकि प्रगति मानव गरिमा और सामाजिक न्याय के दायरे में रहे।