शीर्षक: राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980: भारत में आंतरिक सुरक्षा और निरोधात्मक हिरासत की संवैधानिक व्यवस्था
🔶 भूमिका:
भारत जैसे बहु-जातीय, बहु-सांस्कृतिक और संवेदनशील सीमा क्षेत्रों वाले देश के लिए आंतरिक सुरक्षा बनाए रखना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। जब किसी व्यक्ति की गतिविधियाँ देश की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या विदेश संबंधों के लिए खतरा बन जाती हैं, तब राज्य को ऐसे व्यक्ति को बिना मुकदमे के हिरासत में लेने की आवश्यकता पड़ सकती है। इसी उद्देश्य से भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (National Security Act – NSA) लागू किया।
यह अधिनियम सरकार को निरोधात्मक हिरासत (Preventive Detention) की शक्ति प्रदान करता है ताकि संभावित खतरे को रोकने के लिए पहले ही कार्यवाही की जा सके।
🔶 1. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की पृष्ठभूमि:
- स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में विभिन्न निरोध अधिनियम लागू रहे जैसे प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट, 1950, मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (MISA), 1971
- MISA के निरसन के बाद NSA, 1980 लाया गया, जिसे इंदिरा गांधी सरकार ने लागू किया।
- इसका उद्देश्य है: देश की संप्रभुता, एकता, विदेश संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, और अंतरराष्ट्रीय सीमा सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
🔶 2. अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य:
- किसी भी व्यक्ति को ऐसे कार्यों से रोकना जो देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं।
- आतंकवाद, तस्करी, सांप्रदायिक दंगे या देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त व्यक्तियों को बिना मुकदमे के हिरासत में लेना।
- सार्वजनिक शांति, आपूर्ति सेवाओं या राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करना।
🔶 3. NSA के प्रमुख प्रावधान:
विषय | विवरण |
---|---|
लागू तिथि | 23 सितंबर 1980 |
लागू क्षेत्र | संपूर्ण भारत |
धारा 3 | केंद्र या राज्य सरकार किसी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है यदि वह राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बने। |
हिरासत की अवधि | अधिकतम 12 महीने, लेकिन शुरू में 3 महीने तक बिना पुनरीक्षण समिति की राय के |
पुनरीक्षण समिति | एक न्यायिक समिति जो NSA के तहत की गई हिरासत की समीक्षा करती है |
हिरासत का आधार | गुप्त रिपोर्ट या खुफिया जानकारी |
🔶 4. हिरासत की प्रक्रिया:
- किसी व्यक्ति को NSA के अंतर्गत सीधे गिरफ्तार किया जा सकता है, भले ही उसने अभी अपराध न किया हो।
- गिरफ्तार व्यक्ति को 5 दिन (अधिकतम 10 दिन) में हिरासत का कारण बताया जाना आवश्यक है।
- कोर्ट में जमानत नहीं मिलती, क्योंकि यह न्यायिक नहीं, प्रशासनिक हिरासत मानी जाती है।
- व्यक्ति को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) दायर करने का अधिकार होता है।
🔶 5. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की आलोचना और विवाद:
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: व्यक्ति को बिना आरोप सिद्ध हुए लम्बे समय तक हिरासत में रखा जा सकता है।
- राजनीतिक दुरुपयोग: कई बार विपक्षियों, आंदोलनकारियों और पत्रकारों पर NSA लगाकर राजनीतिक हथियार की तरह उपयोग किया गया है।
- न्यायिक निगरानी की कमी: पुनरीक्षण समिति की सिफारिश बाध्यकारी नहीं होती।
- ट्रायल की अनुपस्थिति: व्यक्ति के पास अपने बचाव का मौका सीमित होता है।
🔶 6. सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
- A.K. Gopalan v. State of Madras (1950) – अदालत ने निरोधात्मक हिरासत को वैध माना था।
- Maneka Gandhi v. Union of India (1978) – हिरासत प्रक्रिया में न्यायसंगत, उचित और समान प्रक्रिया की आवश्यकता बताई।
- Khudiram Das v. State of West Bengal (1975) – NSA के दुरुपयोग पर न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
- Joginder Kumar v. State of UP (1994) – हिरासत की न्यायिक समीक्षा अनिवार्य है।
🔶 7. NSA और संविधान:
विषय | NSA की स्थिति |
---|---|
अनुच्छेद 22(3)-(7) | निरोधात्मक हिरासत के विशेष प्रावधान |
मूल अधिकारों पर अपवाद | NSA के तहत अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) सीमित हो सकता है |
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका | हिरासत की न्यायिक समीक्षा का माध्यम |
🔶 8. उपयोग के हालिया उदाहरण:
- CAA विरोध, किसान आंदोलन, दंगे, सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने पर कई लोगों पर NSA लगाया गया।
- 2020-2022 के दौरान कई राज्यों में पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स, और छात्रों पर NSA लगाए जाने की घटनाएं सामने आईं।
🔶 9. सुझाव और सुधार की आवश्यकता:
- निरोधात्मक हिरासत की समयसीमा को कम किया जाए
- पुनरीक्षण समितियों को स्वतंत्र और पारदर्शी बनाया जाए
- राजनीतिक मामलों में उपयोग पर निगरानी की व्यवस्था हो
- मानवाधिकार आयोग को निगरानी और सिफारिश देने की शक्ति दी जाए
- डिजिटल रिकॉर्डिंग और हिरासत कारणों की न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित की जाए
🔶 निष्कर्ष:
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली कानूनी उपकरण है। इसका उद्देश्य संभावित खतरों को रोकना और देश की एकता व अखंडता की रक्षा करना है। किंतु इसकी कठोर प्रकृति के कारण इस अधिनियम का उपयोग अत्यंत विवेक और संतुलन के साथ होना चाहिए, ताकि संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा बनी रहे और विधिक व्यवस्था पर जनविश्वास कायम रह सके।