बीएनएस में संगठित अपराध के प्रावधानों के बाद यूपी गैंगस्टर एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल

बीएनएस में संगठित अपराध के प्रावधानों के बाद यूपी गैंगस्टर एक्ट की प्रासंगिकता पर उठे सवाल
— एक कानूनी विवेचना

🔍 भूमिका

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), 2023 के लागू होने के साथ ही देश के आपराधिक कानूनों में एक नया अध्याय जुड़ गया है। इसमें पहली बार “संगठित अपराध” को विस्तार से परिभाषित किया गया है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब BNS में संगठित अपराधों के लिए विस्तृत कानूनी प्रावधान हैं, तो फिर राज्य स्तर पर लागू उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट, 1986 की क्या आवश्यकता रह जाती है?

⚖️ कोर्ट की टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विजय सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा कि अब जबकि BNS की धारा 111 में संगठित अपराध को लेकर विस्तृत प्रावधान है, जिसमें अपहरण, हत्या, डकैती, वसूली, मानव तस्करी, साइबर अपराध, अवैध तस्करी आदि शामिल हैं, तो यूपी गैंगस्टर एक्ट के प्रावधानों की उपयोगिता पर पुनः विचार करना जरूरी है।

कोर्ट ने कहा कि अब ये दोनों कानून एक ही उद्देश्य की पूर्ति करते प्रतीत हो रहे हैं, जिससे गैंगस्टर एक्ट की धाराएं अप्रासंगिक हो सकती हैं।

⚔️ याचिका और तर्क

याचिकाकर्ता विजय सिंह पर मिर्जापुर में गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज है। वकील अजय मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि BNS लागू होने के बाद, अब संगठित अपराधों के लिए पर्याप्त कानूनी ढांचा है। इसलिए पुराने गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज मुकदमे को निरस्त किया जाना चाहिए।

सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि याची संगठित अपराधों में सक्रिय है और गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई उचित है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह विषय अब “विचारणीय” बन गया है और सभी पक्षकारों से जवाब मांगा है।

📜 बीएनएस की धारा 111 – एक नजर

BNS, 2023 की धारा 111 संगठित अपराध को विशेष रूप से परिभाषित करती है और इसमें शामिल है:

  • अपहरण
  • डकैती
  • सुपारी किलिंग
  • आर्थिक और साइबर अपराध
  • मानव तस्करी
  • अवैध वस्तुओं की तस्करी
  • और इनसे संबंधित किसी भी व्यक्ति की सहायता या संरक्षण

यह प्रावधान न केवल मुख्य अपराधियों पर लागू होते हैं, बल्कि संगठित अपराध में सहयोग देने, संरक्षण प्रदान करने या शरण देने वालों को भी सख्त सजा का प्रावधान करते हैं।

🤔 गैंगस्टर एक्ट की प्रासंगिकता

उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 को उन मामलों में लागू किया गया था जहां आरोपी पर संगठित रूप से अपराध करने की प्रवृत्ति हो। लेकिन तब भारतीय दंड संहिता (IPC) में संगठित अपराध के लिए कोई स्पष्ट परिभाषा या सजा का प्रावधान नहीं था।

अब BNS में जब विशेष और व्यापक ढांचा सामने आ चुका है, तो एक ही तरह के दो कानूनों का समानांतर अस्तित्व संवैधानिक द्वैतवाद को जन्म दे सकता है।

📌 निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह अवलोकन एक महत्वपूर्ण संवैधानिक और कानूनी बहस की ओर संकेत करता है। अगर BNS की धारा 111 पर्याप्त है, तो गैंगस्टर एक्ट की समीक्षा और संभावित निरस्तीकरण की जरूरत हो सकती है। यह मामला न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि अन्य राज्यों में लागू ऐसे विशेष अपराध नियंत्रण कानूनों की उपयोगिता पर भी सवाल खड़ा करता है।

📝 संभावित असर

  • भविष्य में एकरूप कानूनी ढांचे की ओर कदम
  • राज्य और केंद्र के कानूनों में समन्वय की आवश्यकता
  • दोहराव वाले कानूनों की समाप्ति की शुरुआत